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गांवों से शुरु हुआ किसान आंदोलन अब राजनेताओं को उंगली पर नचा रहा है

Logic Taranjeet 23 February 2021
गांवों से शुरु हुआ किसान आंदोलन अब राजनेताओं को उंगली पर नचा रहा है

तीन कृषि कानूनों को लेकर तीन महीनों से किसान सड़क पर है। किसानों ने सड़क पर एक बहुत बड़े किसान आंदोलन को खड़ा कर दिया है। इसकी चर्चा सिर्फ दिल्ली या भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रही है। पिछले तीन महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसानों ने डेरा डाला हुआ है और इस कड़कड़ाती ठंड, बारिश और पुलिस के डंडों का किसानों ने जमकर बहादुरी से सामना किया है। सरकार ने कई तरीके अपना लिए लेकिन किसानों का ये आंदोलन टस से मस नहीं हुआ है। इन तीन महीनों में किसानों का ये आंदोलन गांव कस्बों से निकल कर अंतरराष्ट्रीय बन गया है।

पिछले तीन महीने में क्या-क्या हुआ?

किसानों ने सबसे पहले जहां दिल्ली चलो की बात करी तो वहीं 3 महीनों में 11 बार सरकार और किसानों के बीच बातचीत हुई और दोनों ही अपनी मांगों पर अड़े रहे। सरकार ने कहा कि कृषि कानूनों को रद्द नहीं कर सकते हैं, तो वहीं किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। इसी बीच सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसान संगठनों ने 26 जनवरी को होने वाली गणतंत्र दिवस परेड के जैसे ही अपनी ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान किया। लेकिन जब 26 जनवरी को पुलिस से कई दौर की बातचीत के बाद परेड का रूट तय हुआ और इजाजत मिली तो कई प्रदर्शनकारी रूट बदलकर लाल किले की तरफ चल पड़े। इनके पीछे ट्रैक्टरों की भीड़ भी चल पड़ी और लाल किले में घुस गई। पुलिस और सुरक्षाबलों पर हमला हुआ और जमकर हिंसा हुई।

अब आंदोलन को लेकर पहले से ही एक धारणा बनाई जा रही थी, सरकार समर्थक कुछ लोग लगातार आंदोलन को एंटी नेशनल या फिर खालिस्तानी करार दे रहे थे। हालांकि बात कुछ जम नहीं रही थी, यानी ये पैंतरा काम नहीं कर रहा था। लेकिन हिंसा होने के बाद ऐसे तमाम लोगों और खुद सरकार को बड़ा मौका मिल गया। भाजपा के तमाम मंत्री और मुख्यमंत्री आंदोलनकारियों पर हमलावर हो गए। रातोंरात प्रदर्शन स्थल खाली कराने के आदेश भी जारी हुए। मीडिया चैनल खबरें चलाने लगे कि, गाजीपुर बॉर्डर खाली हो रहा है,  से लोग घर जा रहे हैं। हजारों की संख्या में सुरक्षाबल तैनात किए। एक पल के लिए लगा कि वाकई में किसान आंदोलन खत्म होने जा रहा है, क्योंकि किसान नेताओं ने भी हिंसा के बाद अपना रुख नरम कर लिया था।

शायद ऐसा हो भी जाता, लेकिन इसी बीच राकेश राकेश टिकैत की आंखों में आंसू आए और इन आंसुओं का दर्द पूरे यूपी और हरियाणा के किसानों के दिल पर हुआ, यहीं से किसान महापंचायतों का दौर शुरू हो गया और आंदोलन पहले से दोगुनी ताकत के साथ खड़ा हुआ। इस बीच विदेशी हस्तियों ने भी किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किए, जिनके जवाब में पुलिस ने टूलकिट नाम का एक डॉक्यूमेंट सामने रखा और बताया कि कैसे आंदोलन को पूरी दुनिया में फैलाने की प्लानिंग की गई थी। इस मामले को लेकर अब क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारियां भी हो रही हैं।

विपक्षी नेताओं का मिला खूब सम

अब 26 जनवरी की घटना के बाद वो विपक्षी नेता भी खुलकर किसानों के समर्थन में आ गए, जो अभी तक हिचकिचा रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि खुद किसान संगठनों ने उन्हें मंच देने से साफ इनकार कर दिया था। कांग्रेस पार्टी ने खुलकर किसानों के साथ खड़े होने का ऐलान किया, साथ ही संसद के बजट सत्र में भी ये मुद्दा गूंजता रहा। जहां प्रधानमंत्री ने आंदोलन करने वालों को आंदोलनजीवी(Agitator) और परजीवी कहकर बुलाया, साथ ही विपक्ष के सांसदों को जवाब देते हुए कहा कि इन कानूनों में कोई अनिवार्यता नहीं है, जिसे चाहिए वो ले, जिसे नहीं चाहिए वो पुरानी व्यवस्था पर चल सकता है।

आखिर किसे मिल रहा महापंचायतों का फायदा?

फिर अगर विपक्ष की भूमिका की बात करें, तो विपक्ष अब किसानों के इस मुद्दे को पकड़कर रखना चाहता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) लगातार किसान महापंचायतों को संबोधित कर रहे हैं और उनके अलावा आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी भी किसान महापंचायतों में हिस्सा ले रहे हैं। जिनमें हजारों की संख्या में किसान आ रहे हैं। वहीं राजस्थान में कांग्रेस की तरफ से सचिन पायलट ने मोर्चा संभाला है। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस को किसानों के साथ खड़े रहने का फायदा उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और प्रदर्शन करने वाले अन्य राज्यों में भी मिल सकता है।

वहीं आरएलडी को भी यूपी में अपना वोट बैंक फिर से हासिल करने में मदद मिल सकती है। किसानों के फायदे की अगर बात करें तो, सरकार पूरी तरह से अपने कानूनों के साथ खड़ी है, वहीं मीडिया का एक बड़ा तबका भी किसानों को तवज्जो नहीं दे रहा है। ऐसे में विपक्षी नेताओं का समर्थन कहीं न कहीं किसानों के लिए एक फायदे का सौदा है। विपक्ष के बड़े नेताओं की किसान सभाओं को नेशनल मीडिया भी पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर पा रहा, वहीं सरकार पर भी एक तरह का दबाव बन रहा है।

बंगाल समेत पांच राज्यों में चुनाव, भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं और अब राजनीतिक हो चुके किसान आंदोलन का असर इन चुनावी राज्यों पर भी होगा। इसे लेकर बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि अब पश्चिम बंगाल में भी किसान महापंचायत होगी। इस बयान के बाद भाजपा नेता भी अलर्ट मोड पर हैं और जाट नेताओं को साधने की तैयारी शुरू हो चुकी है। क्योंकि पश्चिम बंगाल, जहां भाजपा ने अपना पूरा लाव लश्कर उतारा हुआ है, वहां पर किसानों का प्रदर्शन पहुंच जाता है तो चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।

सिर्फ बंगाल ही नहीं, किसान नेता सरकार पर दबाव बनाने और चुनावी राज्यों में किसानों को एकजुट करने की तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए असम और तमिलनाडु  (Tamil Nadu) पर भी नजर है और इन राज्यों में भी किसान जनसभाएं और महापंचायतें बुलाने की तैयारी है। कुछ साल पहले तमिलनाडु के किसानों का प्रदर्शन दिल्ली में पूरा देश देख चुका है। ऐसे में अगर एक बार फिर तमिलनाडु के किसानों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई तो ये भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकता है।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.