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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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क्यों मोदी के वादे के खिलाफ जा रहे हैं योगी क्या बदलने वाले हैं यूपी के हालात?

प्रधानमंत्री ने इन तीन वादों में कितनों को पूरा किया, ये बहस का विषय है। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुल्लेआम इन वादों की धज्जियां उढ़ा रहे हैं।
Logic Taranjeet 12 November 2021
क्यों मोदी के वादे के खिलाफ जा रहे हैं योगी क्या बदलने वाले हैं यूपी के हालात?

भरोसा जिंदगी में बेहद ही अहम होता है, लेकिन हमेशा कहते हैं कि नेता जनता का भरोसा तोड़ते है जिस कारण वो उनका भरोसा खो देते हैं। लेकिन अगर कोई नेता चुनाव के वक्त जो वादा करता है और लगातार उसका उल्टा काम करता है, तो वो धोखेबाज कहलाया जाता है। ऐसा ही कुछ भाजपा सरकारों के साथ भी हो रहा है। लगातार जो लुभावने वादे चुनाव के वक्त किए थे वो इस वक्त हकीकत से बेहद दूर नजर आ रहे हैं। अभी फिलहाल हम बात करेंगे यूपी के बारे में क्योंकि वहां पर सियासी तनाव है दरअसल कुछ महीनों में चुनाव है। अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से ‘सबका साथ, सबका विकास’ का वादा किया था यानी कि वो सभी को साथ लेकर चलेंगे और देश के विकास में भागीदार बनाएंगे। इसमें हर धर्म, जाति के लोग थे। फिर जब साल 2019 में उन्हें पहले से भी ज्यादा बड़ा जनादेश मिला तो उन्होंने और अपने दो वादों में तीसरा वादा जोड़ दिया ‘सबका विश्वास’ यानी की सबका भरोसा भी वो जीतेंगे।

अब प्रधानमंत्री ने इन तीन वादों में कितनों को पूरा किया, ये बहस का विषय है। लेकिन अगर देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी के प्रदर्शन को देखा जाए तो बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती है, क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुल्लेआम इन वादों की धज्जियां उढ़ा रहे हैं। वो तो ये दिखावा भी नहीं करते कि वो इन तीनों में किसी एक वादे पर विश्वास करते हैं। इसकी बजाय उन्होंने इन वादों को जानबूझकर तोड़ा है और ये दिखाया है कि मुसलमान उन पर भरोसा करें या न करें इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वो समुदाय जिसका हिस्सा उत्तर प्रदेश की आबादी में 20 फीसदी है। उसके खिलाफ उनकी बातें खुलकर सामने आती है।

झूठे ट्वीट्स करने में अव्वल है मुख्यमंत्री

बेशक मुसलमानों को बदनाम करना, उन्हें निशाना बनाना, उनके खिलाफ जहर उगलना योगी सरकार का शुरू से ही काम रहा है ताकि भाजपा के कट्टर वोट बैंक को बरकरार रखा जा सके। अब उनकी सरकार को 5 साल पूरे होने को आए हैं और अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। अब दूसरी बार चुनाव जीतने के लिए उन्होंने वोटर्स के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज धार देनी शुरू कर दी है। हर गुजरते दिन के साथ आदित्यनाथ और ज्यादा बेशर्मी से मुस्लिम विरोधी प्रचार करने में लगे हुए हैं। कभी-कभी उनके ट्वीट्स और बातें झूठ पर भी आधारित होती है। जैसा उन्होंने एक बार कहा था कि राज्य में साल 2017 से पहले सिर्फ अब्बा जान कहने वालों को ही राशन मिल रहा था। वो अपने सांप्रदायिक भाषणों में लगातार मुसलमान, पाकिस्तान और तालिबान को शामिल करते हैं।

1 नवंबर को उन्होंने ट्वीट किया था कि अगर तालिबान भारत की तरफ बढ़ता है तो हम हवाई हमले के लिए तैयार हैं। कोई भी देश भारत की तरफ आंख उठाकर नहीं देख सकता है। इस बात का कोई तथ्य ही नहीं है क्योंकि तालिबानों के भारत की तरफ बढ़ने की कोई योजना ही नहीं है है। ना तो भारत की रक्षा एजेंसियों ने इस खतरे की तरफ कोई इशारा किया है और ना ही तालिबान ने। बल्कि तालिबान ने कहा है कि वो भारत के साथ दोस्ताना रिश्ते रखना चाहते हैं।

जब दुबई में टी-20 विश्व कप के मैच में भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान से 10 विकेटों से हारी तो मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी को उसमें भी मुस्लिम षडयंत्र नजर आया था। मोहम्मद शामी पर साफ हमला करते हुए शलभ मणि ने ट्वीट किया कि यहां तक कि रॉ और आईबी भी इतनी आसानी से गद्दारों को ढूंढ नहीं पाते है, जितनी आसानी से एक क्रिकेट मैच ने उनका पता लगा लिया।

आगरा में एक कॉलेज के कश्मीर स्टूडेंट्स, जिन पर ऐसा करने का संदेह है उन्हें पुलिस की मौजूदगी में अदालत के परिसर के अंदर पीटा भी गया है। इससे पहले 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने एक ही दिन में पांच ट्विट किए और इनमें उन्होंने विपक्षी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर हिंदू विरोधी और राम द्रोही होने के आरोप लगाए। ये भी आरोप लगाया कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में उन्होंने रोड़े अटकाए है। वो विश्वासघाती हैं।

नाम बदलना मनपसंदीदा काम

आदित्यनाथ की सांप्रदायिक राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा है उत्तर प्रदेश के मुस्लिम लगने वाले नामों को बदला जाए। उनकी सरकार ने फैजाबाद रेलवे स्टेशन को अयोध्या कंटोनमेंट रेलवे स्टेशन नाम देने का फैसला किया। साल 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले मुगलसराय शहर को पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर नाम दे दिया गया था। साल 2018 में इलाहाबाद जैसे ऐतिहासिक नगर को प्रयागराज नाम दिया गया। हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस याचिका को रद्द कर दिया जिसमें उसे प्रयागराज हाई कोर्ट नाम देने की मांग की गई थी।

हिंदुत्व के सहारे ही लड़ेंगे चुनाव

जब सांप्रदायिक राजनीति को हवा देने की बात आती है तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को दूसरे राज्यों के मामलों में दखल देने से भी गुरेज नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वो खुद को एक राष्ट्रीय नेता मानते हैं जिसे हिंदुत्व की रक्षा करनी है। पिछले साल नवंबर में तेलंगाना में हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करते हुए उन्होंने कहा था कि इस शहर का नाम बदलकर भाग्यनगर कर दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद हमने फैजाबाद का नाम अयोध्या और इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर दिया। हैदराबाद का नाम भाग्यनगर क्यों नहीं रखा जा सकता?

क्यों लगातार मुस्लिम विरोधी बयान दे रहे हैं योगी?

योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में मुस्लिम विरोधी बयान क्यों दे रहे हैं? क्या ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि भाजपा साल 2017 की तरह इस बार भी राज्य में जीत दर्ज कर पाएगी? ये मानने के कारण हैं कि आदित्यनाथ राज्य के अप्रिय हालात से कुछ परेशान हैं। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन रही है। उनकी रैलियों में खूब भीड़ जमा हो रही है हालांकि उन्होंने काफी देर से चुनाव प्रचार करना शुरू किया है। कई गैर यादव ओबीसी जातियां और यहां तक दलित भी भाजपा से छिटककर सपा में जा रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी के कई प्रभावशाली नेता भी सपा में चले गए हैं।

यहां तक कि जिस कांग्रेस को राजनीतिक पर्यवेक्षक एक जमींदोज पार्टी बता रहे थे, उसमें भी पिछले कई महीनों से नया जोश आ गया है। लखीमपुर खीरी में किसानों पर जीप चढ़ाने वाली घटना के बाद जब प्रियंका गंधी ने दिलेरी से विरोध दर्ज कराया तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस समर्थकों में ऊर्जा भर गई और राज्य में उनकी हालिया जन रैलियां बेहद प्रभावशाली रही हैं। विभिन्न राज्यों के उपचुनावों में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन से पक्की तौर से उसके कार्यकर्ताओं की हिम्मत बंधी होगी।

बदल रहा है मिजाज

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन ने भाजपा सांसदों, विधायकों और कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं और इस आंदोलन ने जाटों और मुसलमानों के बीच की दूरियों को कम किया है। साल 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को इन दूरियों से बहुत फायदा मिला था। वहीं राष्ट्रीय लोक दल के युवा अध्यक्ष जयंत चौधरी एक लोकप्रिय नेता बनकर उभर रहे हैं और उन्होंने इस इलाके में भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहरों में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए वो भाईचारा सभा ​भी कर रहे हैं। अगर इनमें बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और कोविड-19 की बदइंतजामी को जोड़ दिया जाए तो भाजपा के लिए बहुत उम्मीद भरे हालात नजर नहीं आते।

इन सबके बावजूद क्या योगी आदित्यनाथ की मुस्लिम विरोधी राजनीति कामयाब होगी? ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन जितनी ज्यादा मुस्लिम विरोधी राजनीति उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ द्वारा की जाएगी, उतना प्रधानमंत्री मोदी को नुकसान होगा क्योंकि उन्होंने ही सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बात की थी। हालांकि मुसलमान इस वादे पर भरोसा नहीं करता है लेकिन जनता की नजर में ये बात खटकेगी जरूर।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.