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पेट्रोल-डीजल के खेल में असली खेला तो केंद्र सरकार ने कर दिया है!

केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 5 और डीजल पर 10 रुपये कम कर दिए हैं, तुरंत ही भाजपा शासित राज्यों ने वैट में भी कमी कर दी और जनता को थोड़ी राहत और दी।
Logic Politics Tadka Taranjeet 15 November 2021
Petrol diesel price reduce PM Modi

सालों से बढ़ते आ रहे पेट्रोल-डीजल के दामों ने लोगों की जेबों में आग लगा दी हुई है। हालांकि दिवाली से ठीक एक दिन पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क यानी की एक्साइज ड्यूटी में कुछ कमी की है। जिससे थोड़ा सा लोगों को राहत मिला है। जैसे ही ऐलान हुआ कि केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 5 और डीजल पर 10 रुपये कम कर दिए हैं, तुरंत ही भाजपा शासित राज्यों ने वैट में भी कमी कर दी और जनता को थोड़ी राहत और दी। इस पूरे मामले में जहां भाजपा सरकारें एक बार फिर से हीरो बन गई तो वहीं विपक्षी सरकारों को जनता के सामने विलेन बना कर पेश कर दिया गया है। क्योंकि विपक्षी सरकारों ने वैट में किसी तरह की कमी नहीं की है। महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, मेघालय, अंडमान और निकोबार, झारखंड और ओडिशा इन सभी राज्यों में गैर-भाजपा सरकारें हैं और इनमें वैट की कमी नहीं की गई है।

पेट्रोल और डीजल के लगातार बढ़ रहे दामों पर मोदी सरकार को घेरने वाला विपक्ष अब केंद्र सरकार की ओर से एक्साइज ड्यूटी घटाए जाने को चुनावी स्टंट बताने का काम कर रहा है। लेकिन, कहना गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल के चक्रव्यूह में कांग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों को ही फंसा दिया है।

क्या है पेट्रोल-डीजल पर टैक्स का गणित?

मोदी सरकार के 7 सालों के कार्यकाल में पेट्रोल-डीजल के दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। जिसकी वजह से लगातार विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रही है और लोगों पर भी इसका असर नजर आ रहा है। लेकिन अब अगले साल होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों जिनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है को देखते हुए उत्पाद शुल्क यानी की एक्साइज ड्यूटी को घटाने की काफी जरूरत थी। हालांकि इससे सरकार के खजने पर जरूर असर होगा और अप्रैल से अक्टूबर के बीच हुई पेट्रोल-डीजल की खपत के आंकड़ों के हिसाब से मोदी सरकार को इस कटौती के बाद हर महीने करीब 8700 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा। अगर मोदी सरकार के इस फैसले को अगले साल होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लिया गया माना जाए, तो चालू वित्त वर्ष की बाकी अवधि में सरकार को करीब 43,500 करोड़ का नुकसान होगा। क्योंकि, वित्त मंत्रालय के अनुसार ये उत्पाद शुल्क में की गई अब तक की सबसे बड़ी कटौती है।

अब अगर बात राज्य सरकारों की करें तो वो भी पेट्रोल और डीजल पर वैट के जरिये भारी राजस्व कमाते हैं और फिलहाल राजस्थान में पेट्रोल-डीजल पर सर्वाधिक वैट वसूला जा रहा है। दरअसल, इस पूरे टैक्स सिस्टम के पीछे सबसे बड़ा खिलाड़ी राजस्व ही है, जिसके बिना किसी भी सरकार का काम करना मुमकिन नहीं है। क्योंकि, जनहित की योजनाओं से लेकर राज्य के विकास तक के लिए राजस्व से अर्जित धन ही खर्च किया जाता है।

केंद्र सरकार भी राजस्व में मिली रकम का काफी हिस्सा राज्यों के विकास और जनहित योजनाओं पर ही खर्च करती है और, कमोबेश राज्य सरकारें भी ऐसा ही करती हैं। आसान शब्दों में कहा जाए, तो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को राजस्व की इकट्ठा करने की जरूरत पड़ती ही है। पेट्रोल और डीजल के दामों में हुआ बदलाव सीधे तौर पर राज्य सरकारों के राजस्व में भी कमी लाएगा। पांचों चुनावी राज्यों से इतर डबल इंजन वाली सरकार के फॉर्मूला पर चलते हुए अन्य भाजपा शासित राज्यों ने भी वैट को घटा दिया है। मोदी सरकार का ये फैसला कहीं न कहीं कांग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों पर कीमतों का कम करने का दबाव बनाएगा।

यहां सवाल खड़ा होता है कि केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष में 43,500 करोड़ का नुकसान सहने की स्थिति में है, तो क्या सभी राज्य सरकारें भी ऐसा कर सकती हैं? क्योंकि, बीते साल कोरोना महामारी के दौरान किए गए पेट्रोल-डीजल के भंडारण से मोदी सरकार के पास राजस्व का एक बड़ा हिस्सा पहले ही पहुंच चुका है और, राज्य सरकारों ने भी वैट के जरिये भरपूर राजस्व इकट्ठा किया होगा।

अर्थशास्त्र में राज्य सरकारों के फेल होने का खतरा

पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों पर पूरा विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार को घेर रहा था। ऐसा कहा जा रहा था कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ी कीमतों की वजह से ही महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई है लेकिन, हालिया फैसले के बाद कांग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों पर भी करीब-करीब भाजपा शासित राज्यों के जितना ही वैट कम करने का दबाव बनेगा। अगर ये राज्य सरकारें ऐसा करती हैं, तो तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों का अर्थशास्त्र गड़बड़ा सकता है। क्योंकि, इन दोनों ही राज्यों में लोगों के लिए पहले से ही भरपूर मात्रा में फ्री वाली योजनाओं में सरकार का भारी राजस्व खर्च हो रहा है। अगर ये सरकारें पेट्रोल और डीजल के दाम कम करती हैं, तो राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और इसके साथ ही लोक-लुभावन जनहित योजनाओं को चलाए रखने के लिए पैसों की कमी आना भी स्वाभाविक सी बात है। कोरोना काल के दौरान राज्यों को भी राजस्व में भरपूर हानि हुई थी। वहीं, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्य सरकारों को इस राजस्व का एक बड़ा हिस्सा पहले ही चिकित्सा सेवाओं पर खर्च करना पड़ गया था।

इस स्थिति में दिल्ली जैसे राज्य में जहां फ्री बिजली और फ्री पानी जैसी योजनाओं पर आम आदमी पार्टी की अरविंद केजरीवाल सरकार खूब पैसा खर्च करती है। आने वाले 6 महीनों तक इतना राजस्व घाटा उठाने का हालत में है या नहीं, इस पर सवाल खड़े होना लाजमी है। वैसे तो दिल्ली में भी अगले एमसीडी चुनाव होने हैं। वहीं तमिलनाडु में जनहित योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पाएंगी। तकरीबन हर राज्य में ऐसा ही हाल होगा। लेकिन भाजपा शासित राज्यों को बहुत ज्यादा समस्या होती नहीं दिख रही है। क्योंकि, इन राज्यों में सबसे पहली चीज तो ये है कि फ्री वाली योजनाएं बहुत ज्यादा नही हैं। और दूसरा ये है कि केंद्र सरकार की ओर से दिया जाने वाला जीएसटी का हिस्सा भी आने वाले समय पर मिलने की संभावना है। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई थी लेकिन, इस साल इसमें थोड़ा सुधार नजर आया है। लेकिन, ये सुधार अभी भी इस स्तर का नहीं है कि राज्य सरकारें भरपूर राजस्व देने वाले पेट्रोल और डीजल से वैट को कम कर दें।

कांग्रेस और विपक्षी राज्यों में वैट कम न होने से भाजपा को हमलावर होने का मौका मिलेगा कि इन राज्यों के कीमत न घटाने की वजह से ही महंगाई को पूरी तरह से काबू में नहीं किया जा पा रहा है और सवाल इन सरकारों की नीयत पर किए जाएंगे। भाजपा प्रवक्ताओं की पूरी टीम अभी से कांग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों को निर्मम और अक्षम बताने में जुट गई है। कहना गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल के चक्रव्यूह में कांग्रेस और विपक्ष शासित राज्यों को फंसा दिया है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.