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RBI के इस्तीफों की झड़ी: आखिर कब रुकेगी ये रेलगाड़ी साहब ?

Logic Taranjeet 27 June 2019
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जिस व्यक्ति की हम बात कर रहे हैं उसकी उपलब्धियों की लिस्ट इतनी बड़ी है कि 14 पन्नों का एक सीवी बन गया, आईआईटी मुंबई, फिर न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से पढ़ाई, राष्ट्रपति अवॉर्ड, लंदन बिजनेस स्कूल और बैंक ऑफ लंदन में काम कर के खुद को गरीबों का रघुराम राजन कहने वाले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने कार्यकाल के खत्म होने से 6 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया है।ये विरल आचार्य ही थे जिन्होंने केंद्रीय बैंक के अधिकारों के लिए सबसे पहले खुलकर आवाज उठाई थी। साथ ही अब कहा जा रहा था कि वो काफी अकेले पड़ गए थे। पिछले साल अक्टूबर में आचार्य ने कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती हैं उस सरकार को कम लागत पर उधारी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार मिलता है उन्होंने कहा था कि ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है। दरअसल सरकार केंद्रीय बैंक सेक्शन 7 लागू करना चाहती थी जिससे वो आरबीआई के कामकाज पर अपनी हुकुमत काबिल कर सके। वहीं आरबीआई के गवर्नर समेत कई बड़े अधिकारी इसके विरोध में थे। जिसके बाद उर्जित पटेल ने भी अपना इस्तीफा दे दिया था।

उर्जित पटेल ने भी दिया था इस्तीफा

आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को खुद मोदी सरकार ही लेकर आई थी उन्होंने भी वक्त से पहले इस्तीफा दे दिया था। पटेल का कार्यकाल सितंबर 2019 में खत्म होना था, जबकि उन्होंने दिसंबर 2018 में ही इस्तीफा दे दिया। नोटबंदी से लेकर आरबीआई के अधिकारों में सरकार की तरफ से दखलअंदाजी को लेकर उर्जित सरकार से नाराज चल रहे थे। वहीं रघुराम राजन ने भी जून 2016 में ही ऐलान कर दिया था कि वो बतौर आरबीआई गवर्नर दूसरा कार्यकाल नहीं चाहते है। राजन भी सरकार की दखलअंदाजी के खिलाफ थे। इतना ही नहीं बैंक के अंदर ही नहीं बाहर भी काफी असंतुष्टि नजर आई है। सरकार से बड़े अफसरों के मतभेद का ये चरीका बाहर भी चला है। देश के इकोनॉमिक स्ट्रक्चर का एक और अहम नाम मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यन ने भी कार्यकाल खत्म होने से करीब एक साल पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

बैंक के बाहर के लोग भी असंतुष्ट

हाल ही में अरविंद सुब्रह्मण्यन ने जीडीपी के सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। और सुब्रह्मण्यन की रिपोर्ट के मुताबिक 2011-17 के बीच में जीडीपी के जो आंकड़े दिखाए गए, वो दरअसल 2.5 फीसदी कम होने चाहिए थे। उन्होंने यहां तक बयान दिया था कि नोटबंदी तहस-नहस करने वाला कदम था। इसके अलावा नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष बने अरविंद पानगढ़िया की भी कहानी कुछ ये ही है, नीति आयोग का ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर खड़ा वाले पानगढ़िया ने कार्यकाल खत्म होने से लगभग 3 साल पहले ही इस्तीफा दे दिया था। कुल मिलाकर इस सरकार में इस्तीफा देने वाले ज्यादातर बड़े अर्थशास्त्रियों का उससे मतभेद रहा। अब आचार्य के इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि हमें बाहर से टैलेंट लाने की क्या जरूरत है, घर में टैलेंट की कमी है क्या? कुछ ने तो बाहर से आने वाले अर्थशास्त्रियों की निष्ठा तक पर सवाल उठा दिया है।

वहीं जाने माने अर्थशास्त्री और अखबारों में कॉलम लिखने वाले सुरजीत भल्ला ने भी पिछले साल दिसंबर में इस्तीफा दे दिया था। वो प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के पार्ट-टाइम सदस्य थे। उन्होंने ट्विटर के माध्यम से पद छोड़ने की जानकारी देते हुए कहा था कि मैने पीएमईएसी की पार्ट-टाइम सदस्यता से एक दिसंबर को इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले सितंबर 2015 में जब स्वच्छ भारत अभ‍ियान को एक साल पूरा होने वाला था। तभी अभियान की प्रमुख विजय लक्ष्मी जोशी ने भी इस्तीफा दे दिया था। हालांकि आईएएस अफसर विजयलक्ष्मी जोशी ने इस्तीफा देने के पीछे निजी वजहों का हवाला दिया था। साल 1980 बैच की अध‍िकारी विजयलक्ष्मी ने बाद में केंद्र सरकार से सेवा पूरी होने के तीन साल पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। इस्तीफे के पीछे भले ही विजय लक्ष्मी ने निजी वजहों को कारण बताया था लेकिन माना तो ये भी जा रहा है कि जोशी बिना उचित सलाह-मशविरे के तय किए जा रहे लक्ष्यों और इस मिशन को लेकर स्पष्टता नहीं होने की वजह से काफी ज्यादा नाराज थीं। मिशन से जुड़ने से पहले विजय लक्ष्मी पंचायती राज मंत्रालय में सेक्रेटरी थीं।

NSC के सदस्यों ने भी दिए इस्तीफे

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के 2 स्वतंत्र सदस्यों पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी ने भी इस साल जनवरी में इस्तीफा दे दिया था और दोनों सदस्यों के इस्तीफे के पीछे लेबर फोर्स सर्वे में देरी और जीडीपी के बैक-सीरीज आंकड़ों पर असहमति को कारण बताया गया था। लेकिन जब इस्तीफे पर विवाद खड़ा हुआ तो सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सफाई दी और कहा कि आयोग की बैठकों में दोनों सदस्यों ने कोई चिंता प्रकट नहीं की थी।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.