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चुनाव आयोग कैसे पूरा करेगा वन नेशन वन इलेक्शन का जुमला

Logic Taranjeet 1 March 2021
चुनाव आयोग कैसे पूरा करेगा वन नेशन वन इलेक्शन का जुमला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार वन नेशन वन इलेक्शन का इरादा जाहिर किया है। इसमें राष्ट्रपति से भी कहलवाया गया है और यहां तक की चुनाव आयोग ने भी कई बार प्रधानमंत्री के सुर से सुर मिलाया है। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब हुआ कि देशभर में पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सारे चुनाव एक साथ होने। चुनाव आयोग कह चुका है कि वो इसके लिए सक्षम है। लेकिन सिर्फ कह देने से और असल में सक्षम होने में बहुत फर्क है। इस फर्क का अंदाजा आप पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए घोषित कार्यक्रम से लगा सकते हैं।

फिर सवालों के घेरे में चुनाव आयोग

चुनाव आयोग ने 5 विधानसभा चुनाव का जो कार्यक्रम बताया है उसमें 2 महीने से लंबा वक्त लगना है। ये कार्यक्रम न सिर्फ चुनाव आयोग की क्षमता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इन आरोपों को भी मजबूती देता है कि केंद्र सरका ने अन्य संवैधानिक संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग पर भी अपना कब्जा कर लिया है। क्योंकि पूरा चुनाव कार्यक्रम केंद्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक हितों और उसके प्रधान प्रचारक नरेंद्र मोदी की सहूलियत को ध्यान में रखकर बनाया गया लगता है।

घोषित चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक जिन राज्यों में भाजपा चुनावी मुकाबले में नहीं है वहां पर सभी सीटों पर एक ही दिन में मतदान होगा लेकिन जहां पर भाजपा मुख्य मुकाबले में है या खुद को मान रही है, वहां पर 3 से लेकर 8 चरणों में मतदान होगा। अब इस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में 62 दिन लंबा चुनाव कार्यक्रम घोषित किया तो उसमें तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में तो एक ही चरण में सभी सीटों के लिए मतदान होने हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 8 और असम में 3 चरणों में मतदान होंगे। सभी राज्यों के चुनाव नतीजे 2 मई को आएंगे।

तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में सभी सीटों के लिए 6 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे जबकि पश्चिम बंगाल में मतदान का पहला चरण 27 मार्च को, दूसरा चरण 1 अप्रैल को, तीसरा चरण 6 अप्रैल को, चौथा चरण 10 अप्रैल को, पांचवा चरण 17 अप्रैल को, छठा चरण 22 अप्रैल को, सातवां चरण 26 अप्रैल को ओर आठवां चरण 29 अप्रैल को पूरा होगा। इसी तरह असम में पहले चरण का मतदान 27 मार्च को, दूसरे चरण का 1 अप्रैल को और तीसरे चरण का मतदान 6 अप्रैल को होगा।

बंगाल में 8 और असम में क्यों 3 चरणों में चुनाव

पुदुचेरी में 30 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए तो एक ही चरण में मतदान कराने का मतलब समझ में आता है, लेकिन तमिलनाडु में 234 सीटों वाली विधानसभा और केरल की 140 सीटों वाली विधानसभा के लिए भी एक ही चरण में मतदान कराना किसी भी तरह से सही समझ में नहीं आता है। क्योंकि 126 सीटों वाले असम में 3 चरणों में चुनाव होने हैं और 294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए 8 चरण तय किए गए हैं।

तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक मौजूदगी काफी कम है। वहां उसका कुछ भी दांव पर नहीं लगा हुआ है क्योंकि तमिलनाडु में चुनावी मुकाबला सीधे-सीधे एआईएडीएमके और डीएमके के बीच में होना है। यहां पर कांग्रेस डीएमके की सहयोगी पार्टी रहेगी, जबकि भाजपा एआईएडीएमके के गठबंधन का हिस्सा होगी। पुदुचेरी में भी कांग्रेस और डीएमके गठबंधन का सीधा मुकाबला एआईएडीएमके से होना है, जिसमें भाजपा कहीं नहीं होगी। इसी तरह केरल में भी मुख्य मुकाबला वामपंथी मोर्चा और कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के बीच में होगा। इसलिए वहां भी सभी सीटों के लिए एक ही दिन मतदान रखा गया है।

असम और पश्चिम बंगाल में ही भाजपा मुकाबले में

दूसरी ओर असम में जहां पर भाजपा की सरकार है और वहां उसे इस बार कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाले युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के गठबंधन से चुनौती मिलने की उम्मीद है, इसलिए वहां पर तीन चरणों में मतदान रखा गया है। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में जहां भाजपा ने इस बार सरकार बनाने का दावा करते हुए पिछले कई महीनों से अपनी पूरी ताकत लगा रखी है, वहां पर 8 चरणों में मतदान कराया जाएगा।

इतने अधिक चरणों में मतदान तो 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भी नहीं करवाया गया था, जो कि आबादी और विधानसभा सीटों के साथ ही क्षेत्रफल के लिहाज से भी पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत बड़ा है। 403 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए 2017 के चुनाव में 7 चरणों में मतदान कराया गया था। यही नहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मतदान के सात चरण ही रखे गए थे।

चुनाव खर्च करने में भी भाजपा को फायदा

दरअसल चुनाव कार्यक्रम ज्यादा लंबा होने से राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान का खर्च भी बढ़ जाता है। क्योंकि इस वक्त भाजपा देश की सर्वाधिक साधन संपन्न पार्टी है और इस समय वो केंद्र सहित कई राज्यों में सत्तारुढ़ भी है, लिहाजा उसे कॉरपोरेट घरानों से चुनावी चंदा भी बेहद मिलता है, इसलिए ज्यादा लंबे चुनाव कार्यक्रम उसे खूब पसंद आते हैं। इससे उसकी आर्थिक सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उसकी विपक्षी पार्टियां इस मामले में उसके आगे नहीं ठहरतीं।

चुनाव आयोग पर सिर्फ यही आरोप नहीं है कि उसने चुनाव कार्यक्रम तय करने में पक्षपात किया है बल्कि ये भी आरोप हैं कि पिछले कई विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों द्वारा खुलेआम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामलों को भी उसने सिरे से नजरअंदाज किया है और विपक्षी दलों की ओर से की गई शिकायतों को खारिज किया है। ईवीएम मशीनों की गड़बड़ियों और मतों की गिनती के मामले में हुई धांधलियों की घटनाओं पर आयोग मूकदर्शक बना रहा है। 

बहरहाल पांच राज्यों के लिए घोषित अजीबोगरीब चुनाव कार्यक्रम से चुनाव आयोग की साख पर पहले से उठ रहे सवाल तो गहराए ही हैं, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वन नेशन, वन इलेक्शन का इरादा भी मिट्टी में मिलता हुआ नजर आ रहा है। क्योंकि जो चुनाव आयोग 5 राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं करा सकता, वो पूरे देश के सभी चुनाव कैसे एक साथ करा लेगा?

Taranjeet

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.