
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कैबिनेट विस्तार हो गया है। इस बार 43 नए मंत्रियों ने शपथ ली है और अब उन्हें केंद्रीय मंत्रालय बांटे जा रहे हैं। इस विस्तार से पहले कई मंत्रियों के इस्तीफे भी हुए हैं और इसमें बड़े-बड़े मंत्रियों के नाम शामिल है। और इसमें वो मंत्री ज्यादा है जिनसे जनता सवाल पूछ रही है। जैसे कोरोना काल में सबसे नाकाम रहने वाले स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन। इन नेताओं को पद से हटाकर मोदी सरकार ने कोशिश की है जनता के दिमाग से नकारात्मक छवि को निकालने की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस विस्तार ने लोगों के दिमाग को एक तरह से रिस्टार्ट करने का प्रयास किया है।
मोदी कैबिनेट में विस्तार से पहले दर्जनों मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफे दिए हैं। रविशंकर प्रसाद, डॉ. हर्षवर्धन, बाबुल सुप्रियो, रमेश पोखरियाल निशंक, सदानंद गौड़ा, संतोष गंगवार, प्रकाश जावड़ेकर, थावर चंद गहलोत, राव साहेब दानवे पाटिल, देबोश्री चौधरी, संजय धोत्रे, रतन लाल कटारिया, और प्रताप सारंगी समेत कई मंत्रियों ने विस्तार से पहले अपने मंत्रालयों से इस्तीफा दिया। अब इन मंत्रियों के इस्तीफे के पीछे का सबसे बड़ा कारण तो इन नेताओं की खराब परफोर्मेंस ही मानी जा सकती है। लेकिन असल में ये सवालों से भागने का तरीका है। केंद्रीय मंत्री का ट्विटर से भिड़ना, स्वास्थ्य मंत्री का कोरोना पर काबू ना रख पाना जैसे तमाम सवालों के जवाबों से बचने की कोशिश है इन नेताओं का इस्तीफा।
जहां एक तरफ दर्जन भर से ज्यादा मंत्रियों की छुट्टी की गई है तो वहीं कई नए नेताओं को केंद्रीय कैबिनेट में जगह भी दी गई है। बहुत ही चालाकी के साथ नए मंत्रियों को मोदी कैबिनेट में जगह दी गई है। इस विस्तार को अगर आप मोदी कैबिनेट विस्तार की जगह पर भाजपा का वोट विस्तार कहेंगे तो वो गलत नहीं होगा। भाजपा ने इस विस्तार के जरिए अगड़ी जाति की पार्टी की छवि से आगे निकलने की कोशिश की है। मोदी कैबिनेट के विस्तार से Up Election 2022 के लिए Social Engineering की गई है। इसके अलावा निचली जातियों के नेताओं को जगह दी गई है। आने वाले गुजरात चुनाव का भी ध्यान रखा गया है।
कांग्रेस से लड़ कर भाजपा में आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस कैबिनेट विस्तार में जगह मिल ही गई है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का ख्वाब देखने वाले सिंधिया को सिविल एविएशन मंत्री बनाया गया है। लंबे वक्त से कतार में खड़े सिंधिया को ये मंत्रालय देकर अब शांत कर दिया गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब यूपी में भी लगाया जाना है, क्योंकि पिछले चुनाव के वक्त इन्हें प्रियंका गांधी के साथ यूपी की कमान सौंपी गई थी। अब इनकी बनाई जमीन को भी भाजपा अपने में मिलाना चाहेगी।
मोदी सरकार ने हर भाषा में हर मंच से कहा है कि सब चंगा सी, अपने काम के लिए जमकर लोगों से तालियां बजवाई है। फिर ऐसा क्या हो गया कि 12 मंत्रियों की कुर्सी खींच ली गई। रविशंकर प्रसाद ट्विटर से लड़ तो रहे थे। विदेशी शक्तियों से भारत को बचाने के मिशन पर जुटे थे। बीच युद्ध में ऐसा क्या हो गया कि उन्हें हटा दिया। सरकार ने देश के हर संभव मंच और मुंह से कहा कि कोरोना का हमने लाजवाब मुकाबला किया है, विदेश में भी कह आए। फिर ऐसा क्या हुआ कि डॉक्टर हर्षवर्धन को इतनी कड़वी दवाई दे दी।
हर्षवर्धन को हटाकर क्या मान लिया है कि सब मटियामेट कर दिया है। और सरकार पूरी तरह से फेल हो गई है। मंत्रियों को रखने या हटाने का पैमाना क्या होना चाहिए? कितना काम किया, यही ना। तो क्या आपके 12 मंत्री काम नहीं कर रहे थे? देश पर सबसे बड़ी आपदा आई हुई थी तो आप काम नहीं कर पा रहे मंत्रियों को लेकर क्यों चलते रहे? मंत्रिमंडल में जंबो फेरबदल का इंतजार क्यों? जब आपसे ये सवाल पूछे जाने थे, तो बहुत ही चालाकी से मंत्रियों को हटा दिया और लोगों के दिमाग को रिस्टार्ट कर दिया। दरअसल इन्हें सजा देकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि जो बुरा हुआ उसके लिए ये जिम्मेदार थे, इन्हें सजा मिली दे दी है, मुझे माफ करो? इतनी मजबूरी?
आगे चुनाव हों तो मंत्रिमंडल में वहां के नेताओं को जगह देना कोई नई बात नहीं है। लेकिन कुछ अलग करने के बजाय भाजपा ने हल्की सी परदेदारी भी नहीं रहने दी है। जिस राज्य को विस्तार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी मिली है वो है उत्तर प्रदेश। इस विस्तार में 7 नए मंत्री बनाए गए हैं और पहले से राज्य के 10 नेताओं को मंत्री बनाया हुआ था, अब हो गए कुल 17। उसमें भी जातीय जुगाड़ साफ नजर आ रहा है।
कोइरी, लोधी, दलित, कुर्मी, ओबीसी, ब्राह्मण, सब को शामिल कर लिया हैं। यूपी को लेकर इतनी ऐहतियात? केंद्र में काम बढ़िया हो इसके लिए पोर्टफोलियो बांट और ठीक कर रहे हैं या फिर कैबिनेट विस्तार के बहाने यूपी की गोटियां सेट कर रहे हैं? एक सांसद ने सरेआम कोरोना कुप्रबंधन के लिए योगी सरकार की खिंचाई की, अब वो केंद्र में मंत्री बन गया है। क्या संदेश है? आजमगढ़ में पासियों के साथ बड़ी ज्यादती हुई है। अब केंद्र में यूपी से एक पासी नेता को जगह दे गई है। क्या संयोग है?
सिर्फ जातियों का ही नहीं बल्कि इलाकों का भी पूरा खयाल रखा गया है। पूर्वांचल से पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल तो बुंदेलखंड से भानु प्रताप वर्मा, ब्रज क्षेत्र से एसपी बघेल हैं तो अवध क्षेत्र से कौशल किशोर और अजय मिश्रा, रूहेलखंड से बीएल वर्मा को जगह दे दी गई है। हर अखबार और वेबसाइट पर योगी सरकार के शानदार काम पर विज्ञापनों की बौछार है और यूपी के लिए एक्सक्लूसिव कैबिनेट विस्तार है। क्या यूपी में भाजपा की इतनी बुरी गत के सुराग मिले हैं? क्या गंगा में बहती लाशें डरा रही हैं?
जिस पार्टी ने साल 2019 में अनुप्रिया पटेल से लेकर नीतीश कुमार को अनसुना कर दिया था, वो आज उनके साथ एडजस्ट करने को तैयार है तो क्या मजबूरी है? पशुपति पारस तक को लेने की क्या वजह है? बिहार में कौन इतना परेशान कर रहा है? जिस पार्टी में ग्राउंड वर्क करने के बाद इनाम देने की परंपरा रही है। अभी तक के इतिहास में जो पार्टी दूसरे दलों से आने वाले लोगों को जल्दी पद और प्रतिष्ठा नहीं देती वो क्यों थोक के भाव में ज्योदिरादित्य सिंधिया, नारायण राणे, निसिथ प्रमाणिक, कपिल पाटिल जैसों को सिर आंखों पर बिठा रही है? मुकुल रॉय इतना बड़ा झटका दे गए? कांग्रेस मुक्त भारत बनाते-बनाते भाजपा खुद क्यों कांग्रेस युक्त होती जा रही है? प्योर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, सब आ जाओ और सब मंत्री बन जाओ।
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मोदी सरकार में एक बात तो साफ है कि हर चीज एक तरफ है और चुनाव दूसरी तरफ। जब सरकार को चुनना है चुनाव और जान के बीच में तो वो चुनाव ही चुनेगी, ऐसा वो पहले कर चुकी है और दोबारा भी कर सकती है। जब लगा कि अब जनता हर चीज पर सवाल करेगी तो उन मंत्रियों को हटा दो जो आसान टारगेट है, क्योंकि अगर कुछ नहीं किया तो कैसे वोट मांगने जाएंगे?