
भारत में कोरोना वायरस के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, ऐसे में एक बार फिर से लॉकडाउन को बढ़ा दिया गया है। लेकिन इस बार लॉकडाउन 4 में जो गाइडलाइंस दी गई है, उन्हें पढ़कर समझ आ रहा है कि अब हमें कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत डालनी होगी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अब कोरोना वायरस से ध्यान हटाना होगा बल्कि इस वायरस से बचाव से जुड़े सारे कदम अपनाने होंगे और इन्हीं के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करनी होगी। पीएम मोदी ने भी देश के नाम अपने संदेश में यही समझाने की कोशिश की थी। जहां उन्होंने कहा था कि मुसीबत को मौके में तब्दील करने का वक्त आ चुका है। ऐसे में कोरोना वायरस का अब मुकाबला करने की जरूरत है।
कोरोना वायरस की जंग में हमारे हथियार, मास्क, सैनेटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग है। अब तो WHO ने भी कह दिया है कि हो सकता है कोरोना वायरस HIV की तरह कभी खत्म ही न हो। यानी जैसे HIV वायरस की मौजूदगी के साथ ही हम लोग जीवन जी रहे हैं, वैसे ही हो सकता है कि कोरोना वायरस के साथ ही जीना पड़े। लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि कोरोना वायरस एचआईवी से कहीं ज्यादा खतरनाक है। एचआईवी के फैलने में और कोरोना वायरस के फैलने में बहुत ज्यादा अंतर है। अब सवाल ये है कि अगर कोरोना वायरस के साथ जीने की तैयारी की जाए तो कैसा अनुभव हो सकता है। यकीनन बहुत मुश्किल हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा भी था कि सभी एक्सपर्ट बताते हैं कि कोरोना लंबे समय तक हमारे जीवन का हिस्सा बना रहेगा लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम सिमट कर रह जाए। इसलिए लॉकडाउन का चौथा चरण पूरी तरह से नए रूपरंग वाला होगा। प्रधानमंत्री मोदी भी WHO के माइकल रेयान और उनके जैसे विशेषज्ञों की राय से चलने की सलाह दे रहे थे जिनका मानना है कि जैसे शुरू शुरू में घर में रह कर सुरक्षित रहने की आदत डाल ली है वैसे ही अब बाहर निकल कर सुरक्षित रहने की आदत डाल लेनी होगी। लेकिन ये सब इतना आसान भी तो नहीं है। हर कदम पर तो चुनौतियों का सामना करना है। कोरोना वायरस ने पटरी पर चल रही जिंदगी को उतार दिया है और अब तो हर चीज बदल गई है। हर चीज के इस्तेमाल का तरीका बदल गया है और हर काम के लिए अब नए और एक्स्ट्रा हुनर की भी जरूरत होगी।
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कामकाजी जिंदगी में सिर्फ अपना अपना काम ही तो नहीं होता है, एक दूसरे से काम पड़ते हैं, एक दूसरे से समझने और समझाने की जरूरत होती है। मास्क लगाकर और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ अब शायद ही ये काम मुमकिन हो। हर काम में कुछ ज्यादा मेहनत करनी होगी। हर काम के लिए पहले की तुलना में लक्ष्य ज्यादा होगा और उसे पूरा करना होगा। कोरोना के साथ जीने की राह अब सड़क पर गाड़ी चलाने जैसी होने वाली है। पूरी तरह से नियमों का पालन करते हुए, सुरक्षित रहकर।
अब बात करें अगर लॉकडाउन 4 की तो सारी गाइडलाइंस भी इसी तरफ इशारा कर रही है। सरकार जनता को धीरे-धीरे पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है, वो भी कोरोना के साथ। तभी धीरे-धीरे सारी चीजों को खोला जा रहा है। पहले सिर्फ जरूरी चीजों की दुकानें खुली थी, लेकिन अब तो सारी दुकानें खोलने की भी इजाजत दे दी गई है। धीरे-धीरे दफ्तर भी खुलने लगे हैं, लोगों को बाहर निकलने भी दिया जा रहा है। जो कि ये दर्शाता है कि शायद कोरोना जाने में वक्त लगेगा या जाए ही नहीं, लेकिन जनता को घर में रखना अब कारगर उपाय नहीं होगा।