
कानपुर में डीएसपी समेत 8 पुलिसवालों की घात लगाकर हत्या कर दी गई है। एक अपराधी को पकड़ने की कोशिश में 8 पुलिसवाले शहीद हो गए है। और इस पर यूपी के डीजीपी कह रहे हैं कि कानपुर में पुलिस की टीम विकास दुबे को पकड़ने उसके गांव गई थी। अपराधियों ने जेसीबी मशीन से रास्ता रोक दिया था, जिसके कारण पुलिसकर्मियों को गाड़ी से नीचे उतरना पड़ा और बदमाशों ने छतों से घात लगाकर फायरिंग कर दी। तो एचसी अवस्थी जो यूपी के डीजीपी है उनके कहने का मतलब है कि विकास दुबे को पुलिस के आने की भनक पहले से ही मिल गई थी। क्योंकि न सिर्फ विकास ने पुलिस के रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी की थी बल्कि भारी मात्रा में हथियार भी जमा करके पुलिस के इंतजार में बैठा था।
पुलिस ने विकास के खिलाफ हत्या की कोशिश (धारा-307) की शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई की लेकिन क्या तैयारी पूरी नहीं थी? या फिर अपनों ने ही धोखा दे दिया? क्या पुलिस महकमे में विकास दुबे ने अपने लोग सेट कर रखे हैं, जिन्होंने उन्हें पुलिस के आने की सूचना दे दी? क्या विकास दुबे की जुर्रत इतनी बढ़ गई थी कि पुलिस उसे पकड़ने आ रही है, ये जानने के बाद भी वो भागा नहीं, बल्कि पुलिस के इंतजार में हथियार जमा करके बैठा रहा? विकास पैरोल पर बाहर आया था, तो उसपर किस तरह की निगरानी रखी जा रही थी कि वो न सिर्फ हथियार जुटाए बल्कि पुलिस सीधे चैलेंज की जुर्रत भी की। आखिर उसकी करतूतों के बारे में पुलिस को भनक क्यों नहीं लगी? और लगी तो उसने वक्त रहते एक्शन क्यों नहीं लिया? जितनी बड़ी संख्या में विकास ने असला जमा किया था उससे सवाल उठता है कि उसके पास इतनी बड़ी मात्रा में हथियार कहां से आए? क्या यूपी में अवैध हथियार जुटाना इतना आसान हो गया है?
एक साथ 8 पुलिसवालों की शहादत। इतनी बड़ी वारदात यूपी में कई दशकों बाद हुई है और जाहिर है ये यूपी पुलिस को खुली चुनौती है। डीजीपी अवस्थी ने माना भी है कि इस वक्त ये उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। तो कम से कम अब ये सोचने का वक्त है कि आखिर किसी बदमाश ने इतनी बड़ी वारदात को कैसे अंजाम दे दिया। आपको बता दें कि विकास दुबे ने 2001 में राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर हत्या की थी और उसपर 60 से ज्यादा केस दर्ज हैं। सास 2000 – कानपुर के शिवली में एक कॉलेज के असिस्टेंट मैनेजर सिद्धेश्वर पांडे की हत्या का आरोप, साल 2000 – रामबाबू यादव की हत्या के मामले में विकास पर साजिश रचने का आरोप, साल 2001 – राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की हत्या का आरोप, साल 2004 – केबल कारोबारी दिनेश दुबे की हत्या का विकास आरोप।
आखिर इतने बड़े कुख्यात बदमाश के ऊपर सिर्फ 25, 000 रुपए का इनाम क्यों था? उसे उम्रकैद हुई थी, फिर वो कैसे पैरोल पर छूट गया? उसे जेल से निकालने में किस सिस्टम ने मदद की? विकास दुबे नगर पंचायत चुनाव भी लड़ चुका था। जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुका था. तो किन लोगों ने उसे सियासी संरक्षण दिया था? क्या अपने सियासी कनेक्शन के कारण ही पिछले 20 साल से विकास दुबे कानून को गच्चा देता रहा? जब तक इन बातों की तह तक नहीं जाएंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं ले सकता कि ऐसी वारदातें रुकेंगी और यही है यूपी सरकार और पुलिस के लिए असल चुनौती>
जब तक हम ये कहते रहेंगे कि यूपी में बदमाशों में इतना खौफ है कि वो खुद सरेंडर कर रहे हैं, हम जमीनी हकीकत छिपाते रहेंगे और हकीकत क्या है इसे कानपुर एनकाउंटर ने सबके सामने लाकर रख दिया है। आखिर जिस प्रदेश के बारे में दावा किया गया था अब यहां बदमाशों का सीधे एनकाउंटर किया जा रहा है जाता है वहां विकास दुबे जैसा हिस्ट्री शीटर आजाद कैसे घूम रहा था? इस जघन्य हत्याकांड पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि पुलिसवालों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, लेकिन इन शहीदों को असल में सम्मान देना है, इंसाफ देना है तो यूपी से उस सिस्टम को खत्म करना होगा जो ऐसे शातिर अपराधियों को शरण और शह देता है।