
झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राम भरोसे चुनाव लड़ने जा रहे हैं। अमित शाह ने एक रैली में अयोध्या में बनने वाले भव्य राम मंदिर निर्माण का जिक्र कर के साफ किया कि वो राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बना रहे है। लेकिन कांग्रेस में तो आलम ये हुआ पड़ा है कि राहुल गांधी के चुनाव प्रचार करने पर अब कांग्रेस कितना भरोसा कर सकती है। प्रियंका ने मना कर दिया है। सोनिया गांधी पहले से ही चुनाव प्रचार में ज्यादा एक्टिव नहीं रहती है।
कांग्रेस के लिए मुश्किल वाली बात ये है कि राहुल गांधी भी इस बार ज्यादा एक्चिव नजर नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों में ही क्षेत्रीय नेताओं पर पूरा भरोसा किया था और केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से राहुल गांधी ने थोड़ी बहुत हाजिरी लगायी थी। कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी अब खुद को सिर्फ वायनाड का सांसद ही बताते भी हैं। चुनाव प्रचार में भी उनकी सीमित भागीदारी की एक ये भी वजह हो सकती है। झारखंड कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि राहुल गांधी थोड़ा ज्यादा वक्त निकाल कर प्रचार करेंगे। जब महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावी माहौल बन गया था तो राहुल गांधी विदेश दौरे पर थे। फिर बताया गया कि सोनिया गांधी के कहने पर वो दौरा बीच में ही छोड़ कर चुनाव प्रचार के लिए आ गये थे।
महाराष्ट्र और हरियाणा में राहुल गांधी ने कुछ 6 रैलियां की थीं जिनमें एक सोनिया गांधी के बदले की थी। सोनिया गांधी की हरियाणा रैली आखिरी वक्त में रद्द हो गयी और राहुल गांधी को वहां पर जाना पड़ा। प्रियंका गांधी तो दोनों ही राज्यों की चुनावी हलचल से दूर ही रहीं और अब झारखंड कैंपेन में भी वो प्रचार नहीं करने वाली है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दो दर्जन से ज्यादा चुनावी रैलियां की थीं। हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना रहा है कि वो यूपी के 2022 विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैं इसलिए उसी पर फोकस रहना चाहती हैं। सवाल ये है कि कांग्रेस नेतृत्व आखिर झारखंड चुनाव में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहा है?
हरियाणा चुनाव से पहले कांग्रेस में खूब उठापटक हुई थी। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक तंवर को हटाकर भूपिंदर सिंह हुड्डा को जब कमान सौंप दी तो वो बगावत कर बैठे और फिर खूब बवाल हुआ था। तमाम मुश्किलों के बाद कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था और अगर दुष्यंत चौटाला भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाये होते तो कांग्रेस भी सरकार बना सकती थी। महाराष्ट्र का तो हाल ये रहा कि कांग्रेस में भी एनसीपी की ही तरह पार्टी छोड़ने वालों में होड़ मची हुई थी। दोनों ही दलों से नेता भाजपा और शिवसेना में जाते जा रहे थेष फिर भी चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ कि प्रदर्शन उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा रहा है।
महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस के खाते में जो सीटें आयीं वो किसी लॉटरी लगने से कम नहीं कही जाएंगी। वैसे भी अगर पूरा गांधी परिवार चुनाव प्रचार में कूदा होता तो स्थिति कोई बेहतर तो रहने वाली थी नहीं। आम चुनाव में पूरा दम झोंक देने के बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक सीट बचा पायी वो भी सोनिया गांधी की क्योंकि राहुल गांधी तो अमेठी से हार ही गये। ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व को झारखंड में भी महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह ही लॉटरी लगने का पूर्वाभास हो गया है?
कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह मोर्चा संभाले हुए हैं और चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के अलावा कुछ राष्ट्रीय नेताओं के भी कार्यक्रम होने हैं – लेकिन गांधी परिवार के दिलचस्पी न लेने से सूबे के कांग्रेस नेता काफी मायूस देखे जा रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता हेमंत सोरेन की अगुवाई में महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे के वक्त तो काफी मोलभाव किया लेकिन बाद में सब स्थानीय नेताओें और उम्मीदवारों की किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है ऐसा लगता है। झारखंड प्रदेश कांग्रेस की स्थिति पहले से ही डांवाडोल है। सुखदेव भगत कांग्रेस की कमान संभाल रहे थे वो अपनी ही सीट लोहरदगा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
साल 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 6 सीटें मिली थीं। इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व लगता है इस बार कुछ ज्यादा की उम्मीद नहीं कर रहा है। वो राम भरोसे ही बैठा है कि जनता चाहे तो जीत दिला दें नहीं तो कोई बात नहीं।