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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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कांग्रेस में इलेक्शन नहीं सेलेक्शन ही होता है, फिर सज रहा है रागा का ताज!

कांग्रेस की कोई भी मीटिंग हो, कुछ नेता बहती गंगा में हाथ धोने के इंतजार में हमेशा रहते हैं। फिर चाहे वो सीडब्लूसी की बैठक हो राहुल गांधी के हामी भरते ही कुर्सी पर बैठना उनका पक्का
Logic Taranjeet 22 October 2021
In Congress, there is only selection, not election, then the crown of Raga is being decorated!

कांग्रेस की कोई भी मीटिंग हो, कुछ नेता बहती गंगा में हाथ धोने के इंतजार में हमेशा रहते हैं। फिर चाहे वो सीडब्लूसी की बैठक हो। भले ही वो किसी अति महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के लिए ही क्यों न बुलाई गई हो। वो लोग जैसे किसी मौके की ताक में हो। जी-23 गुट के कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल शायद ऐसे ही नेताओं को जी-हुजूर ग्रुप बताते हैं। देखा जाये तो कांग्रेस में जी-23 और जी-हुजूर दोनों ही ग्रुपों का कॉमन एजेंडा है। लेकिन फर्क बस ये है कि जी-23 के मुकाबले जी-हुजूर ग्रुप का फोकस स्पेसिफिक है। दरअसल, दोनों ही गुट कांग्रेस में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की जरूरत महसूस कर रहे हैं।

राजनीतिक दलों में नियुक्तियां 2 तरीकों से होती हैं, एक चुनाव के जरिये, और दूसरी मनोनयन के जरिये। वंशवाद और फेमिली पॉलिटिक्स की पक्षधर राजनीतिक दलों में दोनों ही तरीकों में कोई व्यावहारिक फर्क भी नहीं होता है। कांग्रेस में जी-23 गुट पहले चुनाव कराकर फिर नतीजे चाहता है, जबकि उसका परस्पर विरोधी गुट पहले नतीजा तय करने के बाद चुनाव की चाहत रखता है। ऐसा संकेत भी सीडब्लूसी की ताजा मीटिंग से मिलता है।

सोनिया गांधी है बॉस

कांग्रेस कार्यकारिणी मीटिंग में सोनिया गांधी ने तो बता ही दिया था कि वो कोई अंतरिम नहीं बल्कि फुलटाइम अध्यक्ष ही हैं क्योंकि सक्रिय होकर वो नियमित रूप से सारे काम कर रही हैं। सोनिया गांधी के बयान के बाद बुजुर्ग कांग्रेसी नटवर सिंह का कहना है कि सोनिया गांधी तो बीते 21 साल से कांग्रेस की बॉस हैं। सोनिया गांधी के भाषण के बीच जैसे ही मौके के इंतजार में बैठे नेताओं को कट-प्वाइंट मिला, मुद्दे की बात पर आ गये। मुद्दा भी वही जो साल 2017 में राहुल गांधी की ताजपोशी से पहले उठा करता था और 2019 में इस्तीफे के बाद से उठाया जाता रहा है। कार्यकारिणी की मीटिंग में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने मौका देखते ही डिमांड रख दी। अंदाज भी ऐसा जैसे वो सभी के मन की बात कह रहे हों और फिर तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी हां में हां मिला दी। करते भी क्या अगर चूक जाते तो अगला नंबर अशोक गहलोत से पहले उनका ही हो सकता था। भूपेश बघेल भी कांग्रेस की क्राइसिस पॉलिटिक्स में उसी मोड़ पर खड़े हैं जहां अशोक गहलोत हैं क्योंकि उसके आगे की राह वो है जो कैप्टन अमरिंदर सिंह को पकड़नी पड़ी है।

तलवार लटकने वालों ने रख दिया नाम

राहुल गांधी के सामने उन नेताओं ने तो अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव तो रखा ही जिन पर तलवार लटक रही है, मजबूरी में उनको भी ऐसा करना पड़ा जो कतार में कभी भी शामिल किये जा सकते हैं। जैसे गांधी परिवार के करीबी होने का दावा करने वाले नेताओं की बात पर राहुल गांधी ने हामी भर दी है, लेकिन बस इतना ही कि वो उनकी भावनाओं का सम्मान तो करते ही हैं, उनके आग्रह पर विचार भी करेंगे और साथ में ये भी जोड़ दिया कि समय आने पर फैसला लेंगे। फिर क्या था राहुल गांधी के चुनाव हुए बगैर ही कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने की संभावनाएं जतायी जाने लगीं है लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सब पहले की ही तरह इतना आसान भी है? कांग्रेस का जो हाल हो रखा है, ऐसा तो नहीं लगता कि राहुल गांधी फिर से ताजपोशी के लिए तैयार भी हो जायें तो कांग्रेस नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?

कांग्रेस में निर्विरोध जैसे चुनाव का स्कोप है क्या?

साल 2017 में जब राहुल गांधी की ताजपोशी के मुहुर्त को लेकर चर्चाएं चल रही थीं तो मुंबई कांग्रेस के नेता शहजाद पूनावाला ने ये कह कर बवाल खड़ा कर दिया था कि कांग्रेस में जो होने जा रहा है वो इलेक्शन नहीं, सेलेक्शन है। शहजाद पूनावाला की दलील थी कि कांग्रेस में जितने भी प्रदेश अध्यक्ष हैं कि वो राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी के नियुक्त किये हुए हैं। क्योंकि वो चुने नहीं गये हैं, इसलिए उनके वोट का कोई मतलब नहीं है। शहजाद पूनावाला का दावा रहा कि पूरे सिस्टम में चुनाव की जगह चयन हो रहा है क्योंकि सिर्फ एक व्यक्ति का सेलेक्शन होना है। जब शहजाद पूनावाला से ये पूछा गया कि क्या वो चुनाव लड़ना चाहते हैं तो बोले, न मैं चुनाव लड़ने के लिए ये कर रहा हूं और न ही मुझे अध्यक्ष बनना है। मैं बस ये कह रहा हूं कि परिवारवाद से लड़ने के लिए नियम बन जाना चाहिये कि एक परिवार में एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाना चाहिये।

अब एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनान की घोषणा हो चुकी है। 1 नवंबर, 2021 से संगठन में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और 31 अक्टूबर तक कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। अभी जो स्थिति बनी है, अगर राहुल गांधी तैयार हो जाते हैं कि वो फिर से कमान संभालने के लिए तैयार हैं तो क्या होगा? पहली बात तो ये कि राहुल गांधी के हामी भर देने भर से ही उनका अध्यक्ष बनना पक्का हो जाता है तो शहजाद पूनावाला की बात फिर से सही साबित हो जाएगी. निश्चित तौर पर उसे चुनाव की जगह चयन कहना ही बेहतर होगा। लेकिन तब क्या होगा जब फिर से कोई जितेंद्र प्रसाद बन कर राहुल गांधी को भी चैलेंज कर दे?

एक बार फिर माहौल तो वैसा बन ही गया है जैसा सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने से पहले हो गया था। जैसे तब सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पसंदीदा रहे नेताओं को नापसंद करती रहीं, अभी जी-23 के नेता और वो भी जो ऐसे नेताओं के मुद्दे उठाने पर हां में हां मिलाते देखे जाते हैं उनके प्रति वैसी ही भावना रखती हैं। कार्यकारिणी की ताजा मीटिंग के बाद तो ये चीज और भी साफ हो चुकी है। गुलाम नबी आजाद कई बार मांग कर चुके हैं कि कार्यकारिणी के सदस्यों का भी चुनाव हो। परंपरा तो ये रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष अपनी पसंद के हिसाब से नेताओं को कार्यकारिणी में सदस्य बना देता है, लेकिन इस बार जरूरी नहीं कि पहले की ही तरह हो।

मुश्किल होगा राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना!

ऐसी हालत में कैसे मान लिया जाये कि राहुल गांधी के हामी भरते ही कुर्सी पर बैठना उनका पक्का हो ही जाएगा। अभी जो माहौल समझ में आ रहा है, ये कोई जरूरी नहीं कि राहुल गांधी के तय कर लेने भर से उनकी ताजपोशी पक्की हो जाएगी। हो सकता है राहुल गांधी को इस बार कड़ी टक्कर भी मिले। ऐसा भी नहीं कि सब अशोक गहलोत और भूपेश बघेल की तरह तात्कालिक महत्वाकांक्षाओं के लिए राहुल गांधी से अध्यक्ष बन जाने की गुजारिश करते रहेंगे हो सकता है कि राहुल गांधी को नापंसद करने वालों में से कोई चुनाव हो तो अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भी कर दे। अभी तो जो माहौल बन चुका है, ये भी जरूरी नहीं कि खुलेआम बगावत करने वाले के पीछे पड़ कर कांग्रेस के ही नेता उसे खामोश कर दें। सोनिया गांधी की बुलायी मीटिंग में कपिल सिब्बल के आत्ममंथन की सलाह पर जो हंगामा हुआ था उसके बाद तो बिलकुल नहीं लगता। अगले ही दिन कई सीनियर कांग्रेस नेता आगे बढ़ कर विरोध जताने लगे थे और ठीक वैसी ही हालत कैप्टन अमरिंदर सिंह और कपिल सिब्बल के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद देखने को मिला है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साफ साफ बोल दिया है कि वो कांग्रेस में नहीं रहने वाले और विधानसभा चुनाव में कूदे बगैर हार भी नहीं मानने वाले। ऐसा माना जा रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुछ खुले तौर पर तो कुछ परदे के पीछे से कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं का समर्थन मिल सकता है। जब पी. चिदंबरम जैसे गांधी परिवार के करीबी नेता कपिल सिब्बल के घर पर कांग्रेसियों के हंगामे और उनकी गाड़ी तोड़ देने के खिलाफ बयान दे रहे हैं तो बाकी बातें भी आसानी से समझ में आ जानी चाहिये। राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए गांधी परिवार को आंतरिक ही सही चुनाव लड़ना भी पड़ सकता है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.