प्रदूषण की वजह से दिल्ली और एनसीआर के लोगों का दम घुट रहा है। बढ़ते प्रदूषण को कंट्रोल करने में केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली सरकार दोनों ही पूरी तरह से नाकाम रही है। लेकिन सरकारों ने अपने लिए पूरे इंतेजाम किए हुए थे। पहले से ही केंद्र सरकार ने पीएमओ और अन्य 6 मंत्रालयों के दफ्तरों के लिए 140 एयर फ्यूरीफायर खरीद कर रखे हुए हैं। इस बात का खुलासा विश्व की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी में से एक रॉयटर्स ने किया है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने साल 2014 से 2017 के बीच में 36 लाख रुपये के एयर प्यूरीफायर खरीदे हैं।
यानी की टैक्स जनता का, मौज में मंत्रालय और बीमार भी जनता ही होती है। ये तो मतलब हद ही हो गई है कि सरकार के पास पैसा जनता से आता है और उस पैसे से मंत्रालय में एयर प्यूरीफायर लग गए। लेकिन भोली भाली जनता मास्क लगा कर सड़कों पर घूम रही है और कुछ तो ऐसे भी है जो मास्क भी नहीं लगा पा रहे हैं। इन लोगों के लिए शायद प्रदूषण है ही नहीं। लगता है सारा प्रदूषण मंत्रालयों में हो गया है, तभी तो 36 लाख के एयर प्यूरीफायर लेने पढ़ गए। अब ये एक फकीरी ही तो है, कि 36 लाख के एयर प्यूरीफायर लिए गए हैं। इसमें पीएमओ भी शामिल है।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की वजह से सुप्रीम कोर्ट भी परेशान हो गया और कोर्ट ने दिल्ली और आसपास के इलाके में जबरदस्त वायु प्रदूषण की वजह से सरकारी एजेंसियों को भी फटकार लगाई थी। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को यूपी, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को नियंत्रित करने के कदम उठाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर साल दिल्ली में ऐसा ही क्यों होता है? सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हर साल दिल्ली चोक हो जाती है, लेकिन हम कुछ भी नहीं कर पाते हैं। कोर्ट ने प्रदूषण और पराली जलाने के मामले में पंजाब, हरियाणा और यूपी के मुख्य सचिवों को कोर्ट में पेश होने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के मामले पर कहा कि लोगों को जीने का अधिकार है और ये काफी जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि हर साल 10-15 दिन तक यही चलता रहता है। एक सिविलाइज्ड देश में ये बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार से कई सवाल भी पूछे।
लेकिन बावजूद इसके दिल्ली का प्रदूषण हर साल बढ़ता ही जा रहा है। क्योंकि हमारे मंत्रियों को तो पता ही नहीं है। घर से अपने बड़े से काफिले के साथ निकले, मंत्रालय आए वहां पर मस्त लाखों के एयर प्यूरीफायर में बैठे और शाम को उसी काफिले में बैठ कर घर निकल गए। इस सब में मंत्री जी को तो अहसास ही नहीं हुआ कि प्रदूषण इतना खतरनाक है कि मौत का कारण बन सकता है। ये जानलेवा हो गया है, लेकिन जब तक 10-20 लोगों की जान नहीं जाएगी तो हमारी सरकार को कोई फर्क थोड़ी पड़ता है। क्योंकि जनता का कोई मोल नहीं है। न जान का, न जनता के पैसे का और न बीमारी का, इन नेताओं को अपनी सत्ता, कुर्सी से प्यार है। वोट मांगते वक्त ही जनता के सामने नजर आएंगे तब आपके साथ कई तरह के रिश्ते भी जोड़ लेंगे, अलग अलग तरह के कपड़ों में नजर आएंगे, मंदिर-मस्जिद जाते दिखेंगे। लेकिन चुनाव के बाद एक थाईलैंड, तो दूसरा ब्राजील निकल लेगा।
ऐसा नहीं है कि ये मामला इस साल का है। हर साल तकरीबन इसी वक्त दिल्ली वायु प्रदूषण से बुरी तरह से परेशान हो जाती है। इस पर सियासत भी होती रहती है। चारों तरफ फैले हुए प्रदूषण की इस चादर की तीन बड़ी वजह चर्चा में है –
पहली- दिवाली की रात को दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में जो आतिशबाजी होती है, उसका असर सीधा इस प्रदूषण पर होता है। कई अपीलों के बाद भी लोग बाज नहीं आते हैं और धर्म का हवाला देकर और कई तरह के अलग अलग तथ्यों को सामने रख पटाखें फोड़ते हैं।
दूसरी, पंजाब-हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों का लगातार पराली जलाना। कई बार दिल्ली सरकार की तरफ से हरियाणा, पंजाब को अपील की गई है कि पराली नहीं जलाएं। लेकिन विपक्ष का सरकार में होना भी तो पसंद नहीं है न।
तीसरी वजह है गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ। सरकार की तरफ से ऑड-इवन का कदम उठाया जाता है, जिसका भाजपा जैसे दल विरोध करते हैं औऱ कहते हैं कि इससे मात्र एक फीसदी का फर्क पड़ेगा। तो नेता जी एक फीसदी तो पड़ने दो न। आपसे तो वो भी नहीं हो रहा है। बल्कि आप तो एयर प्यूरीफायर लगवा कर काम कर लोगे, लेकिन एक गरीब कैसे करेगा, उसका बच्चा किस हवा में सांस ले रहा है इसका अंदाजा नहीं है। या तो आप पूरी दिल्ली को एक एक एयर प्यूरीफायर दे दो।