प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार हमेशा की तरह बेहद ज्यादा व्यस्त है। पीएम मोदी ने एक प्रतिमा, एक सुरंग, एक नौका सेवा का उद्घाटन किया है। इन सब समारोहों को मीडिया द्वारा जोर-शोर से दिखाया गया है और मोदी ने जी-20 सम्मेलन को भी संबोधित किया है। दुनिया के शीर्ष इनवेस्टमेंट फंड प्रबंधकों के साथ मुलाकात की, राज्य के मुख्यमंत्रियों को महामारी पर नकेल कसने और वैक्सीन लाने की तैयारी को लेकर सलाह दी है। पीएम मोदी ने एक सीमा चौकी पर सेना के जवानों के साथ दिवाली भी मनाई है। साथ में उन्होंने गृह मंत्री के साथ बिहार चुनाव में प्रचार किया है, और अब हैदराबाद के नगर निगम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
इस बीच में गृह मंत्री पश्चिम बंगाल पर भी पूरा ध्यान लगाए हुए हैं, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की मदद करने के अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने साथी मुख्यमंत्रियों के साथ लव जिहाद से निपटने को तैयार है। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर को दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों को रोकने का निर्देश दिया गया था, जिसे उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अंजाम तक पहुंचाया। ये अलग बात है कि तब उन्हें अपने कदम पीछे खींचने के लिए कहा गया, जब किसानों ने सभी अवरोधों को तोड़ दिया और दिल्ली की सीमा पर पहुंच गए।
भाजपा के मंत्री भी काफी ज्यादा व्यस्त हैं। मंत्री तो इस कदर व्यस्त हैं कि अक्टूबर में कृषि मंत्री के पास पंजाब के किसानों के प्रतिनिधियों के साथ मिलने का वक्त भी नहीं था। मोदी सरकार ने बेहद सफलतापूर्वक संसद से कृषि से जुड़े तीनों कानूनों को भी पास करा लिया है, जिसके खिलाफ किसान व्यापक विरोध कर रहे हैं।
अब आइये देखें कि देश और लोगों को लेकर क्या-क्या हो रहा है। कोई शक नहीं कि लोगों की घेराबंदी करने वाली इस सारी गतिविधि और ऊर्जा ने देश भर को आगोश में लाने वाले कई संकटों पर कुछ तो असर डाला होगा? पिछले कुछ दिनों में हजारों किसानों ने देश की राजधानी तक पहुंचने और विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर तैनात सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष किया है। वहीं इस बात की खबर आ गयी है कि जुलाई-सितंबर की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 7.5% तक सिकुड़ गई है, आठ प्रमुख उद्योगों का उत्पादन लगातार आठवें महीने से गोता लगा रहा है, उपभोक्ता कीमतें ऊपर की ओर बढ़ रही हैं, और नियोजित लोगों की देशव्यापी हिस्सेदारी 36.4% तक कम हो गयी है, अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है।
अर्थव्यवस्था तो कई सालों से ही गिर रही थी, लेकिन सरकार बेपरवाह घूम रही थी। अप्रैल-मई में जैसे-तैसे लॉकडाउन लगा दिया गया और पहले से ही कमजोर चल रही अर्थव्यवस्था की लुटिया डुबा दी, बल्कि इससे महामारी को नियंत्रित करने में भी नाकामी मिली है। क्योंकि सही वक्त से पहले ही लॉकडाउन कर दिया और अब जब महामारी का प्रकोप सबसे ज्यादा है, तो सरकार पूरी तरह से फेल है। इस वजह से अब सरकार के पास कोरोना से निपटने के लिए भी कोई हथियार नहीं बचा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी इस महामारी के टीका-निर्माताओं का चक्कर ये दिखाने के लिए लगा रहे हैं कि वो कुछ कर रहे हैं।
कोई शक नहीं कि भाजपा और संघ देश में नफरत का बीज बोने में सफल रही है, चाहे ये चुनाव अभियानों (दिल्ली, बिहार या अब हैदराबाद नगरपालिका चुनावों में) के जरिये हों या फिर कानून में बदलाव (नागरिकता संशोधन अधिनियम और नागरिकों के प्रस्तावित राष्ट्रीय रजिस्टर जैसे क़ानूनों) के जरिये हो या फिर त्योहारों, अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने जैसे समारोहों और दूसरे अवसरों के दौरान जबरदस्त दुष्प्रचार के जरिये ही क्यों न हो। अजीब बात तो ये है कि इस सरकार की वजह से पैदा हुए संकट के खिलाफ लोगों की बढ़ती एकता को भी दरकिनार किया जा रहा है।