
कोरोना की तीसरी लहर शुरु हो गई है और अब ये ज्यादा भारी पड़ रही है। क्योंकि लोगों का सब्र टूट रहा है। ऐसे में कई खबरें आ रही है कि वैक्सीन आने वाली है, हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने भी इसके बारे में कहा और प्रधानमंत्री ने भी वैक्सीन पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा की है। इन सब वाक्यों से हमारी आशा बढ़ जाती है लेकिन इसमें सबसे जरूरी बात ये है कि कोरोना की वैक्सीन कब आम जनता तक पहुंचेगी।
भारत में वैक्सीन से जुड़ी खबरों में भारत बायोटेक भी है। क्योंकि भारत बायोटेक का कहना है कि हमारा तीसरे फेज का ट्रायल सफल है और हम इमरजेंसी ऑथराइजेशन की परमीशन मांग रहे हैं। इमरजेंसी ऑथराइजेशन का अलग-अलग देशों में अलग नियम है और अमेरिका को इसका गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है। वो इमरजेंसी ऑथराइजेशन बहुत अपवाद के केस में देते हैं और जब थर्ड फेज में ट्रायल को सफल माना जाता है तो कम से कम वो 2 महीने तक देखते हैं और फिर मान्यता देते हैं।
फाइजर और मोडर्ना की वैक्सीन 95% तक सफल मानी जा रही हैं और जहां तक दाम का सवाल है तो तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। जाहिर है कि हम अनुमान लगा सकते हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट वाली वैक्सीन कम से कम 500-600 के आसपास की होगी। जो दूसरे टीके हैं जैसे फाइजर या मोडर्ना के ये 1500 से लेकर 30000 रुपये तक के पड़ सकते हैं, वो भी तब जब आपको मिल जाए और ना मिलने तक आपको ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
लेकिन इस वक्त की जो जरूरी बात है वो ये कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राजेनेका और भारत में सीरम इंस्टिट्यूट मिलकर वैक्सीन बना रहे थे, अब खबर है कि थर्ड फेज का ट्रायल 90% तक सफल रहा है। ब्रिटेन और ब्राजील में हुए आखिरी चरण के ट्रायल के डेटा के मुताबिक ऑक्सफोर्ड ने जो वैक्सीन बनाई थी वो 90% तक प्रभावी रही है। इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान पहले आधा डोज दिया गया, फिर एक महीने के अंतराल के बाद पूरा डोज दिया गया। वहीं वैक्सीन के दो पूरे डोज एक महीने के अंतराल पर दिए जाने पर एफिकेसी रेट करीब 62% तक रहा है।
आने वाले दिनों में वैक्सीन के बारे में खबरों का अंबार लगा रहेगा और एक आशावादी माहौल रहेगा और इस बात की पूरी संभावना है कि हम लोगों से ये गलती हो जाए कि अब सब नॉर्मल हो गया है और हम अपने नॉर्मल रूटीन में आ जाए। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए जब तक टीका ना लग जाए। आपके और हमारे जैसे केस में लगभग 3 महीने 6 महीने या 1 साल तक लग सकता है। ऐसे में सोशल डिस्टेंस, हाथ धोना, मास्क का इस्तेमाल करने में कोई कमी नहीं की जा सकती है।
टीका किसे सबसे पहले मिलेगा ये भी एक सवाल है। अमेरिका में सबसे पहले वो फ्रंटलाइन वर्कर्स यानी डॉक्टर्स नर्सेज सैनिटेशन वर्कर्स आदि को प्राथमिकता देंगे। उसके बाद 65 साल से अधिक उम्र के लोग, उसके बाद नंबर आएगा 50 से 65 साल के लोगों का फिर 50 साल से कम उम्र के लोगों को टीका मिलेगा। भारत का मॉडल भी कुछ ऐसा ही होगा। 130 करोड़ लोगों की आबादी वाले देश में लगभग 270 करोड़ टीकों की जरूरत होगी और 1 साल से ऊपर का कार्यक्रम होगा।
वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए लॉजिस्टिक्स एक बड़ा मुद्दा होने वाला है। वैक्सीन के डिस्ट्रीब्यूशन में कोल्ड चेन का सहारा लेना पड़ सकता है। सामान्य रेफ्रिजरेशन में भारत बायोटेक या ऑक्सफोर्ड वाली वैक्सीन को तो मैनेज कर लेगा, लेकिन फाइजर या मॉडर्ना के टीके वहां नहीं रखे जा सकते है क्योंकि उनको -20 से -70 डिग्री रखना पड़ता है, उसके लिए व्यवस्था हमारे यहां पर नहीं है।
8 महीने हो गए हैं हम जानते हैं कि लोगों को एक कोविड की थकान हो गई है। लोगों का सब्र टूट रहा है, डिप्रेशन हो रहा है। पूरी दुनिया कोरोना से त्रस्त है और इसलिए किसी एक देश को कम या ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता। जब हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना था तो अभी भी हम आईसीयू बेड का हिसाब लगा रहे हैं और देश की राजधानी दिल्ली में बेड कम पड़ रहे हैं, कब्रगाहों में जगह नहीं है और हमारे पास अभी भी पूरी व्यवस्था नहीं हो पाई है। ये एक ऐसा सवाल है जो हमें अपने आप से करना होगा और साथ ही हमें अपनी सरकारों से भी सवाल करने होंगे कि हमारी जान की परवाह करने के क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं।