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बधाई हो… आकाओं को बचाने के लिए पुलिस को कर दिया गया कमजोर

हैदराबाद से लेकर यूपी तक पुलिस खुद ही जज बनकर सजा-ए-मौत का फैसला कर रही है। हमारे देश की न्याय व्यवस्था ये तो नहीं कहती है।
Logic Taranjeet 12 July 2020

विकास दुबे की कहानी का अंत हो गया, लेकिन क्या ये अंत का सही तरीका था। अगर ये तरीका है तो क्या हमें इस देश में न्यायपालिका की जरूरत नहीं है? क्या अब विकास दूबे या किसी भी अपराधी को सजा सुनाने का काम पुलिस के जिम्मे सौंप दिया गया है? ये किसी अपराधी के लिए सहानुभुति नहीं है बल्कि हमारे देश की न्यायपालिका को कमजोर दिखाने की बात है। हैदराबाद से लेकर यूपी तक पुलिस खुद ही जज बनकर सजा-ए-मौत का फैसला कर रही है। हमारे देश की न्याय व्यवस्था ये तो नहीं कहती है।

क्यों कमजोर पड़ गई एसटीएफ

एनकाउंटर तब किया जाता है जब कोई अपराधी भागने लगे या पुलिस पर हमला करे, उससे पहले भी हवा में और पैर पर गोली मारी जाती है। लेकिन विकास दूबे की बात करें तो न तो वो इंसान भाग सकता था और न हमारी एसटीएफ की टीम इतनी कमजोर थी, जितनी इस पूरी प्रक्रिया में दिखाई गई है। विकास दूबे जैसा अपराधी कब हमारी पुलिस के लिए इतना कठोर बन गया कि उसका एनकाउंटर करना पड़ा, वो अपराधी जिसके पैरों में रॉड थी, वो अपराधी जिसके हाथ बंधे होने चाहिए थे, वो अपराधी जो यकीनन गाड़ी पलटने से थोड़ा तो घायल होता और ये वो अपराधी है जो मंदिर में जाकर सरेंडर करता है। चलिये सरेंडर वाली बात को हटा भी दें तो भी बाकी सवाल कैसे हटेंगे?

विकास दुबे को कस्टडी में लेने के बाद यूपी एसटीएफ की जिम्मेदारी उसे जिंदा रखने की थी। ताकि पूछताछ में उसके नेटवर्क का पता लग सके और उसकी जमात का राज खुल सके। वो जमात जो पुलिस के पल पल की जानकारी उसे लगातार दे रही थी, जिसकी वजह से 8 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। SO विनय तिवारी और SI केके शर्मा जैसे और कितने लोग साथ में जुड़े हुए थे? कौन से वो नेता थे, जिनके दम पर विकास दूबे एक मामूली से गुंडे से निकलकर गैंगस्तर बन गया।

परदे के पीछे कौन है

विकास दुबे के आपराधिक इतिहास को सिर्फ उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की फेहरिस्त को जोड़ कर देखा जाता रहा, लेकिन परदे के पीछे वो कौन लोग थे जो उसे बचाते रहे ये राज तो अब हमेशा के लिए दफन हो गया है। या फिर यूं कहें कि राज को राज ही बना दिया गया जानबूझकर। अब तो ये भी मालूम होने से रहा कि वो अपने इलाके में होने वाले खनन और उससे जुड़े घोटालों में किसके लिए काम करता रहा? किसके ठेकों की निगरानी करता रहा? वो कौन कारोबारी रहे जिनके गैरकानूनी कामों को वो अंजाम देता रहा? पुलिस और प्रशासन के वो कौन अफसर रहे जिनका हिस्सा वो पहुंचाता रहा और बदले में उसके खिलाफ एक्शन रोक दिया जाता रहा और वो कौन लोग हैं जिनके लिए वो चुनावों में जरूरी इंतजाम करता रहा और बदले में बाकी वक्त वो उसे हर तरह से प्रोटेक्शन देते रहे?

गंवा दिया योगी ने मौका

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास सूबे को अपराध मुक्त करने का ये सबसे बड़ा और आखिरी मौका था, लेकिन वो चूक गये। अब तक जिन पुलिसकर्मियों की वो पीठ ठोकते रहे वे तो चार कदम आगे ही चल रहे थे विकास दुबे का फर्जी एनकाउंटर नहीं बल्कि सारे सबूत मिटा डालने की कोशिश हुई है। विकास दुबे ने यूपी पुलिस को लाख चकमा देने की कोशिश की हो, बचाव की जितनी भी तरकीबें अपनायी हो – शक तो इस बात का जताया ही जा रहा था कि जैसे पुलिस ने उसके साथी प्रभात का हाइवे पर एनकाउंटर किया विकास दुबे के साथ भी वैसा ही हो सकता है और हुआ भी वही। पुलिस की कहानी में प्रभात ने भी हथियार लेकर भागने की कोशिश की और विकास ने भी। दोनों मारे भी वैसे ही गये, बस पुलिस ने अपना दोष मिटाने के लिए दोनों को सरेंडर करने की सलाह जरूर दी थी। प्रभात ने तो नहीं लेकिन विकास के बारे में तो कहा जा रहा है कि वो खुद ही गिरफ्तार होने पहुंचा था, तो फिर कितनी बार सरेंडर करता भला।

एक टीवी चैनल पर एक वीडियो दिखाया जा रहा था वीडियों में कुछ पुलिस अफसर आपस में बात कर रहे होते हैं। बातचीत साफ साफ सुनी जा सकती है. वीडियो में एक पुलिसकर्मी पूछता है कि क्या विकास दुबे कानपुर पहुंच जाएगा – जिस पर दूसरा हंसते हुए शक जाहिर करता है। ऐसा लगता है जिस बात का शक जताया जा रहा है, हुआ भी वैसा ही होगा और यही वजह है कि पुलिस की कहानी पर एक बार फिर वही सवाल उठ रहे हैं जो किसी भी फर्जी एनकाउंटर के बाद उठते हैं। आखिर क्यों आकाओं की मदद करने के लिए पुलिस हर बार झुकती रहेगी? क्या इससे पुलिस मजबूत होती है, तो शायद हर बार नहीं। क्योंकि विकास दूबे जैसे अपराधी को आप आराम से जिंदा पकड़ सकते थे और पूरे गिरोह का परदाफाश कर सकते थे, लेकिन आकाओं को शायद यही मंजूर नहीं था। इसलिए तो पुलिस को कर दिया कमजोर और बचा ली अपनी कुर्सियां।

क्यों अलग था विकास दूबे का केस

विकास दुबे का केस बाकी अपराधियों से काफी अलग भी है। क्योंकि साफ नजर आता है कि यूपी में राजनीति, नौकरशाही और अपराध का कोई बड़ा नेक्सस काम कर रहा है और विकास दूबे जैसे लोग उसका हिस्सा है। इसके जैसे लोग और जगहों पर भी हैं जिनके बारे में विकास के पास जानकारी थी। अगर पुछताछ होती तो उनकी पोल खुल जाती और उन आकाओं को दिक्कत हो जाती जिनके इशारों पर मंत्री, पुलिस काम करती है। इसलिए विकास को रास्ते से हटा दिया गया और पुलिस को कमजोर बता दिया गया। क्योंकि न तो पुलिस अपने हथियार संभाल सकी, न एक ऐसे आदमी को पकड़ सकी जो 500 मीटर सही से चल नहीं सकता था।

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जिसके पास इतने महत्वपूर्ण राज हों जो सीधे सरकार से आपराधिक तरीके से मुकाबले करने की अपनी हैसियत समझता हो। जो पुलिस के डीएसपी सहित 8 पुलिसकर्मियों को मारने के बाद पेट्रोल से जला देने का भी इरादा रखता हो। क्या उसका जिंदा नहीं बच पाना सबूतों के मिट जाने जैसा नहीं है? विकास दुबे को मारने नहीं जिंदा रखने की जिम्मेदारी यूपी पुलिस की थी क्योंकि मध्य प्रदेश की पुलिस ने उसे जिंदा ही सौंपा था। अब यूपी में योगी की पुलिस ने किसे बचाया है ये राज तो राज ही रह गया।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.