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मैं और मेरी माँ दोनों मदर्स डे नहीं जानते और हमारी साथ में कोई तस्वीर भी नहीं

मैं एक छोटे से गांव में रहता हूँ और मैं और मेरी माँ दोनों नहीं जानते की आज मदर्स डे है और हाँ, आज तक हमनें साथ में कोई तस्वीर भी नहीं ली है.
मैं और मेरी माँ दोनों मदर्स डे नहीं जानते और हमारी साथ में कोई तस्वीर भी नहीं

नई दिल्ली: जैसे किसी ना किसी दिन कुछ ना कुछ मनाया जाता है वैसे आज के दिन मदर्स डे मनाया जाता है. लोग अपनी माँ के साथ तस्वीरें डालकर लिखते हैं “तू है तो मैं हूँ”, तेरी एक ख़ुशी के लिए सब कुर्बान”. मैं समझ नहीं पाता कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं. मैं एक छोटे से गांव में रहता हूँ और मैं और मेरी माँ दोनों नहीं जानते की आज मदर्स डे है और हाँ, आज तक हमनें साथ में कोई तस्वीर भी नहीं ली है.

मैं तो माँ शब्द नहीं जानता था. कभी अख़बारों में पढ़ा या फिर किताब में. एक दो बार टीवी में चलने वाले विज्ञापन में देखा जिसमे एक लड़का बाहर से खेलकर आता है और कहता है कि माँ भूख लगी है कुछ खाने को दे दो. इसके बाद मैंने माँ शब्द जाना. क्योकि मैंने हमेशा अपनी माँ को अम्मा/महतारी/दीदी बोलता हूँ. हमारे गांव के परिवेश में माँ भी एक घर की सदस्य है. जिसका काम है खाना बनाना और घर के बाकी सभी काम करना. यानी की जो पूरा दिन किसी ना किसी काम में लगी रहे वही माँ है. मैंने माँ को खाली नहीं देखा. ना ही कभी काम से थकते हुए देखा. उसके सामने नहीं होता है तो वो काम खोज लेती है. खाली बैठे नहीं देखा.

ऐसे माहौल में हमने कभी मदर्स डे नहीं मनाया. माँ अपना काम करती रही और मैं अपना. मैं बड़ा हुआ तो कमाने परदेस चला आया. जब जा रहा था तो अम्मा कुछ दूर तक साथ आई थी. रो रही थी लेकिन मुझसे लिपटकर नहीं रोई. जैसे फिल्मों में माओं को रोते देखा वैसा बिलकुल मेरे साथ नहीं हुआ. मैं चला गया. परदेस में रहने के दौरान कभी-कभार फोन करता तो गांव का ही कोई लड़का मोबाइल ले जाकर माँ से बात करवा देता. बस इतना जुडाव था हमारा.

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हम गांव के लड़कों ने कभी मदर्स डे नहीं मनाया. जब यहाँ कमाने आया तो देखा कि मदर्स डे होता है. लोग सेलिब्रेट करते हैं. माँ के साथ रहते हैं और कई लोग छुट्टी लेकर उस दिन घर का काम करते हैं. जब आसपास ये सब हो रहा था तो मैंने सोचा की क्या मैंने कभी मदर्स डे मनाया है. ध्यान आया कि आज तक ढंग से माँ से बात नहीं की. कभी तस्वीर नहीं ली और कभी कह नहीं पाया की अम्मा आई लव यू. यार अम्मा को आई लव यू की बोलेंगे. मुझे तो सोचकर भी शर्म आती है की ऐसे कैसे बोला जा सकता है. ये सोचकर कभी ऐसा भी नहीं कहा.

बस बाकी लोगो की तरफ माँ घर की एक सदस्य है और मैं उसका बेटा. इतना बेटा की मेरे दस्तावेजों में उसका नाम लिखा हो, जब मेरा जनेऊ हो तो वो भीखी डाल दे और शादी करके आऊं तो माँ परछन कर दे. बस इतना ही रिश्ता रहा.

कभी नहीं कह पाया की माँ आई मिस यू, माँ आई लव यू, बस हालचाल हो जाता फोन में इसके बाद फोन कट.

ऐसा होता है हम गांव के लड़कों का माँ के साथ रिश्ता. इससे ज्यादा नहीं. सिर्फ यहीं आर सबकुछ खत्म…

शुभकामनाएं

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.