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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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क्या पति से 7 वचन लेने से पहले बेटी को पिता से ये 7 वचन नहीं लेने चाहिए?

आज बेटी चाहती है कि उसका बाप जब अपनी बेटी की शादी करें तो उसके सिर पर खर्चों का भार न हो, ना ही लड़के वालों को दहेज में गाड़ी या बाइक देने की चिंता हो।

हर पिता अपनी बेटी की शादी बहुत धूमधाम से करना चाहता है, लेकिन क्या हर बेटी अपनी शादी धूमधाम से करना चाहती है? क्या हर बेटी चाहती है कि उसका बाप जो उसका हीरो है वो कुछ मेहमानों को खुश करने के लिए अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दें? क्या एक बेटी की शादी में बाप को हमेशा झुक कर ही रहना पड़ता है? क्या बेटी चाहती है कि उसकी शादी में उसका बाप सिर्फ खातिरदारी करता रहे और लड़के वालों के आगे पीछे घूमता रहे, बगैर अपनी इज्जत की परवाह किए? क्या एक पिता ने मान लिया है कि बेटी बोझ नहीं है? क्या पति से वचन लेने से पहले बेटी को पिता से वचन लेने चाहिए?

तो इसका जवाब है शायद हां, आज बेटी चाहती है कि उसका बाप जब अपनी बेटी की शादी करें तो उसके सिर पर खर्चों का भार न हो, ना ही लड़के वालों को दहेज में गाड़ी या बाइक देने की चिंता हो। आज बेटी चाहती है कि उसकी शादी उसकी मर्जी से हो, उसकी पसंद के लड़के से, उसकी तय उम्र के मुताबिक और जितना उसके पिता की जेब खर्चा उठा सके उस बजट में। जमाना आगे बढ़ गया है पहले तो 12वीं कर लेने के बाद ही पिता लड़की के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देते थे। कभी-कभी तो अच्छा लड़का मिला और पढ़ाई बीच में ही छुड़वा दी, बाल विवाह की परंपरा भी आपको याद ही होगी। खैर आज बेशक हम कितने भी मॉडर्न खयाल वाले हो जाए, लेकिन बेटी की शादी बाप के लिए बोझ ही होती है। एक पिता के लिए आज भी बेटी बोझ है, लेकिन लड़कियां चाहती हैं कि उनके पिता कहें कि बेटी बोझ नहीं है। आज की बेटी चाहती है कि उसका बाप सिर झुका कर नहीं सिर उठा कर बेटी को विदा करे।

आज की बेटियों को बदलते वक्त ने हिम्मत दी है। वो पढ़-लिखकर, अपने लिए रास्ता बना रही है, एक महिला आज आत्मनिर्भर हैं, अपने जीवन के फैसले खुद लेने में सक्षम भी है। इसलिए शादी करना या जीवन साथी चुनने जैसे फैसलों पर अपने दिल की बात अपने माता-पिता के आगे बेहिचक रख सकती हैं। आज बाप के लिए बेटी बोझ नहीं है। वो यही चाहती है कि जब इस बेटी की शादी हो तो उसका बाप भी खुश हो, न कि हिसाब किताब में लगा रहे। जिंदगी की जमा पूंजी शादी में उड़ा दे। ऐसे में आज बेटियों को अपने पिता से वचन लेने चाहिए।

शादी के लिए पैसे जोड़ना बंद कर दो

जिस दिन घर में लड़की पैदा होती है, उसी दिन से एक पिता उसकी शादी के लिए पैसे जोड़ना शुरू कर देता है। बेटी की शादी को जिम्मेदारी से ज्यादा बोझ मानने लगते हैं। इस सबसे बड़े खर्च के लिए वो अपनी जरूरतें भी कम करने लगते हैं, हर जगह से पैसे बचाते हैं क्योंकि बेटी की शादी जो करनी है। लेकिन आज बेटी को अपने पिता से वचन लेने चाहिए कि अपने रिटायरमेंट के लिए जोड़े गए पैसों को शादी में मत लगा दो, अपने भविष्य के लिए संभालो। जब बाप अपनी उम्रभर की कमाई बेटी की शादी में लगा देता है तो एक लड़की का दिल कितना रोता है, ये सिर्फ वही जानती है।

शादी कब करनी है ये बेटी को ही चुनने दो

आजकल बेटियां पढ़ लिख रही हैं, डॉक्टर इंजीनियर भी बन रही हैं। लेकिन पढ़ाई पूरी करते ही शादी का दबाव आने लगा है, पिता चाहता है कि ये जिम्मेदारी उसपर से खत्म हो, हो सकता है आगे छोटी बहन भी बैठी हो।समाज ने बेटियों की शादी की सही उम्र निर्धारित की हुई है। लड़की अगर 30 की हो गई तो समझो उसे लड़के नहीं मिलने वाले हैं। तो ऐसा नहीं है लड़का भी मिल सकता है और अगर लड़की शादी नहीं करना चाहती है तो वो आपके ऊपर दबाव नहीं है। समाज को छोड़ कर अपनी परी की खुशियों का सोचिए। अगर आपकी बेटी मानसिक रूप से तैयार नहीं है तो उसकी शादी के पीछ मत पड़िए। तो हर पिता से वचन लेने चाहिए की वो बेटी पर शादी का दबाव नहीं डालेंगे।

अच्छे लड़के को लड़की की नजर से देखो

वैसे तो हर बाप यहीं चाहता है कि वो अपनी बेटी की शादी सबसे बेहतर लड़के से करवाए, लेकिन जो उन्हें बेहतर लग रहा है क्या वो बेटी को भी पसंद आया है। एक पिता के लिए अच्छा लड़का वही है जो आर्थिक रूप से मजबूत हो, उसका फैमिली बैकग्राउंड अच्छा हो, समाज में अच्छा मान-सम्मान हो। लेकिन क्या एक लड़की ऐसा ही जीवनसाथी चुनना चाहती है। या फिर वो चाहती है कि उसका जीवनसाथी वो हो उसके करियर को सपोर्ट करे, जब वो भावनात्मक रूप से कमजोर हो तो वो हिम्मत बने, उसे समझे। इसलिए जब भी लड़का ढूंढें तो इस बात का भी ध्यान रखें। क्योंकि जीवन में सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत होना ही जरूरी नहीं है।

लड़के वालों की डिमांड पूरी न करना

शादी में दहेज लेना और देना अपराध है, लेकिन अब ये अलग तरह से दिया जाता है। पढ़े-लिखे लोग दहेज के खिलाफ होने की बात भी करते हैं लेकिन बड़े प्यार से अपनी डिमांड रख भी देते हैं। अब इसे कहते हैं कि बेटी की खुशी के लिए गाड़ी तो देंगे न? या बस यही कहते हैं कि हमें तो इतने लाख की शादी करनी है। ये घर के सामान, कार जैसे महंगे तोहफों को मना भी नहीं करते हैं क्योंकि ये तो पिता अपनी बेटी की खुशी के लिए करते ही हैं। हां लड़के वाले नाराज न हो जाएं, और बेटी ससुराल में खुश रहे इसके लिए माता-पिता ससुराल वालों की हर बात को पूरा करते हैं। कोई कमी छोड़ना नहीं चाहते है लेकिन शादी फिर भी ससुराल वालों के मन की नहीं होती है, कोई न कोई कमी तो रह ही जाती है। इसलिए सिर्फ बेटी की शादी करना, डिमांड पूरी नहीं करना। उसे अच्छी शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाना।

शादी पर बेहिसाब खर्चा मत करना

हर पिता चाहता है कि उसकी बेटी खुश रहे और उसकी शादी बेहद धूमधाम से हो। बेटी के पैदा होते ही बाप सोचता है कि उसकी शादी में ऐसा होगा, वैसा होगा। दूसरों की भव्य शादियां देखकर उनकी भी इच्छा होती है कि बेटी की शादी भी बढ़िया से बढ़िया हो। दुनिया देखेगी, लोग क्या कहेंगे ये सब सोचकर अपने बजट से भी ज्यादा खर्च कर देते हैं। जिन दो लाख रुपयों को बचाने के लिए आपके कई साल लगे, वो दो लाख रुपए सिर्फ हॉल का एक दिन का किराया बन जाता है। क्या शादी सिंपल तरह से नहीं हो सकती, जहां पिता पर ये दबाव न हो कि लोग क्या कहेंगे? शादी दुनिया दिखावे के लिए करना जरूरी है?

सिर झुकाए मत रहना

जब भी किसी शादी में जाएंगे तो वहां पर जो सबसे ज्यादा परेशान, सिर झुका कर खड़ा होगा वो लड़की का बाप होगा। और जिनके सामने वो खड़ा होगा वो लड़के वाले होंगे। लड़की चाहे कितनी ही पढ़ी-लिखी, आत्म निर्भर हो लेकिन समाज ने कुछ नियम बना रखे हैं जिन्हें लड़की के माता-पिता को निभाने ही पड़ते हैं। वो नियम इस तरह के होते हैं जो समाज के सामने ये बता देते हैं कि ससुराल वाले हमेशा मायके वाले से ऊपर ही होंगे। लेकिन एक बाप शायद ये भूल जाता है कि वो अपने जिगर का टुकड़ा किसी को दे रहा है तो झुकना आपको नहीं है। इसलिए बेहतर है कि बेटी को लायक बनाकर आपने सिर उठाने का काम किया जाए।

शादी के बाद बेटी को बेटी ही समझना

बेटी को बचपन से ही पराया धन कहा जाता है। शादी पर कन्यादान कर देने जैसा रिवाज होता है और कैसे एक दिन में किसी के जिगर का टुकड़ा पराया हो जाता है। शादी कर देने का मतलब ये नहीं कि बेटी मेहमान की तरह घर आएगी या फिर वो बेटी के ससुराल आकर असहज महसूस करेंगे, बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए जैसी बातें करेंगे। शादी करते ही बेटी के जीवन के फैसले लेने का सारा हक पति या ससुराल वालों का नहीं हो जाता है आप पिता थे और पिता रहेंगे। माता-पिता बीमार भी हों तो बेटी को नहीं बताते, क्या शादी के बाद भी बेटी को माता-पिता के प्रति फर्ज नहीं निभाने चाहिए? शादी का मतलब मेहमान होना नहीं होता है। पिता से वचन लेने चाहिए की वो शादी के बाद भी बेटी को बेटी ही मानेंगे।

आज हर लड़की को शादी से पहले अपने पिता से ये सवाल करने चाहिए, लड़का बाद में मिलेगा लेकिन पहले पिता को ढूंढना जरूरी है। पिता कोई केयरटेकर नहीं है जो शादी तक ही साथ देगा उसके बाद बेटी ससुराल वालों की हो गई। पिता एक लड़की का हीरो होता है, जिसने उसके छोटे कदमों को सहारा दिया था और अब बेटी बुढ़ापे में पिता के लड़खड़ाते कदमों का सहारा बनने के लिए तैयार है। आज एक लड़की सक्षम है आत्मनिर्भर है लेकिन शादी के मामले में वो कभी भी खुद को सशक्त नहीं समझती है। क्योंकि उसकी ताकत यानी उसके पिता ही कमजोर पड़ जाते हैं। इसलिए आज लड़कियां शादी करने से कतराती हैं और अगर समाज में शादी से जुड़ी इन कुछ बातों को अहमियत दी जाए तो लड़कियां खुश रहेंगी। हर लड़की को अपने पिता से वचन लेने चाहिए।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.