निर्भया, साल 2012, 16 दिसंबर की रात और फिर शुरु हुई थी क्रांति। सोया हुआ पितृ समाज जागा और मोमबत्तियों से शुरु हुई क्रांति ने सरकारें गिरा दी। कौन सा वो शासन नहीं था जो उस वक्त घुटनों पर नहीं आ गया था। दिल्ली का शीला राज हो या फिर केंद्र का मनमोहन, सबकी कमर टूट गई थी।
निर्भया के साथ जो हुआ था वो दरिंदगी थी, लेकिन हाथरस में जो हुआ है वो क्या है? हम एक ऐसे समाज में आ गए हैं जहां पर शायद अब राम की नहीं रावण की जरूरत है। रावण अपनी बहन के लिए लड़ा था, जानता था कि मर जाएगा लेकिन लड़ा था। हमें भी अब शायद यही करना पड़ेगा लड़ना होगा। लेकिन किससे? शायद खुद से…
हम किस समाज में जी रहे हैं नहीं पता लेकिन ये वो भारत नहीं है जिसका उल्लेख इतिहास में किया गया है। यहां पर तो नारी की इज्जत के लिए तलवारें उठ जाती थी, महाभारत कर दी जाती थी। या फिर अब हमारी रगों में वो खून नहीं है। या फिर अब हमें इस समाज की आदत हो गई है। हम मोमबत्ती वाले समाज में रहने लगे हैं और हर कुछ वक्त में एक लड़की इस तरह की दर्दनाक मौत मरती है, कुछ दिन तक न्यूज में कहा जाता है कि कब होंगी महिलाएं सुरक्षित? फिर बात बंद और मामला ठंडे बस्त में चला जाता है।
हाथरस की इस बच्ची पर जिसका खून नहीं खौला शायद वो इंसान नहीं है। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? उस बच्ची की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई, ताकि जिंदा न बच सके। उस बच्ची की जीभ काट दी गई ताकि अगर गलती से बच जाए तो कुछ बोल ना सके। ये किस तरह की दरिंदगी है, ये लोग कैसे अपनी शक्लें आईने में देख पाते हैं। इस बच्ची के बारे में जितना सुनता या पढ़ता जा रहा हूं और गुस्से से आग बबूला होता जा रहा हूं, भूल नहीं पा रहा हूं आंखें खुद-ब-खुद नम होती जा रही हैं। शायद मेरे जैसा हाल बहुत लोगों का हो रहा होगा, लेकिन कर कुछ नहीं पा रहे हैं। बेबस होकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
गालियां दी जा रही है, सवाल किए जा रहे हैं, सरकारों को और पुलिस को घेरे में लिया जा रहा है। क्योंकि इन दोनों ने उन दरिंदों से कम हरकत नहीं की है। अगर उन दरिंदों ने लड़की की इज्जत लूटी तो इन्होंने शिकायत न लिख कर, चोरी छिपे अंतिम संस्कार वो भी रात के 2.30 बजे कर उसका रेप कर दिया। क्या छुपाना चाहती थी पुलिस, उस मां-बाप का रोना आंखों के सामने नहीं आया।
मां तड़पती रही कि मेरी बेटी दिखा दो, मुझे कम से कम उसका अंतिम संस्कार करने दो लेकिन वो हक भी छीन लिया। दरिंदगी तो शासन और प्रशासन ने की है। जब उस बच्ची को इलाज की जरूरत थी तब लापरवाही करके। जब उस बच्ची की शिकायत लिखी जानी थी तब नजरअंदाज करके। हां हो सकता है कुछ दिन में गाड़ी पलट जाए या एनकाउंटर हो जाए और सरकार वाह वाही लूट ले। लेकिन उस बच्ची को क्या ये सही न्याय मिलेगा। वो बाप क्या करेगा 25 लाख रुपये का जिसने अपनी बेटी की शादी के लिए पाई पाई जोड़ी हुई हो।
फिर एक बार कहा जा रहा है कि सख्त कानून कब बनेगा, मैं पूछता हूं कि कब तक सरकारों पर निर्भर रहेंगे क्योंकि सरकारों के बस की अब ये बात रह नहीं गई है। इसका जो इलाज करना है वो हमें ही करना है। तो अब रेप पर सीधा हमला करना है, कोई पार्टी अपना जुमला लेकर आए तो जब तक वो एक सीधा रास्ता नहीं बताती उसे कोई वोट नहीं मिलेगा। अब राजनीति मंदिर मस्जिद पर नहीं होगी क्योंकि ना तो हिंदू की बच्ची सुरक्षित है और ना मुसलमान की। अब जो वोट पड़ेंगे वो इस देश की बेटी के नाम पर पड़ेंगे। कौन इस देश की बेटी को सुरक्षा दे सकता है यही फैसला करने का पैमाना होगा। इस देश में बेटी पढ़ भी लेगी, बढ़ भी लेगी अगर जिंदा बचेगी तो।
जिन दरिंदों ने ये दुष्कर्म किया है उनके मां-बाप को शर्म से मर जाना चाहिए कि ऐसी घटिया औलाद पैदा की है। इससे अच्छा तो वो मां की कोख सूनी रहती जिसने ऐसी घटिया औलाद को जन्म दिया। जिस बाप ने इस बेटे को कंधे पर बिठाया उसके कंधे झुक जाने चाहिए और इन दरिंदों को इतनी घटिया मौत मिलनी चाहिए, जितनी शायद आज तक के इतिहास में किसी को ना मिली हो। ये लोग शायद एक दिन मरेंगे, लेकिन इन लोगों को गोली मार कर, फांसी देकर नहीं मारना चाहिए। जितना दर्द उस बच्ची ने सहा है उससे दोगुना दर्द इन लोगों को मिलना चाहिए। इनको जितनी लानतें दूंगा वो कम ही रहेंगी, बस यही चाहूंगा कि इनकी बहनें या बेटियां ना हो।