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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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पालघर मॉब लिंचिंग हादसे पर अफसोस कर रहे हैं न आप ?

भारत में पालघर मॉब-लिंचिंग वीडियो बेहद दुखद है। सैंकड़ों की भीड़ निहत्थे बुजुर्ग साधुओं और उनके ड्राईवर पर एक अफवाह की वजह से हमला करते हैं
Logic Taranjeet 24 April 2020
पालघर मॉब लिंचिंग हादसे पर अफसोस कर रहे हैं न आप

पूरा विश्व इस वक्त कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है, हर तरफ मौत का डर है। बड़े बड़े देशों में लाशें दफनाने की जगह कम पड़ गई है। हर तरफ लोग अपनों की जान को लेकर परेशान है, तो वहीं ऐसे बुरे वक्त में भी भारत में अलग ही वायरस चल रहा है। इसकी झलक आपको पालघर मॉब लिंचिंग की वीडियो से लग गई होगी। पालघर की वीडियो बेहद दुखद है। वो लोग जिन्हें घर के अन्दर रहकर लॉकडाउन का पालन करना था, वो लाठी और घातक हथियारों से लैस सड़कों पर घूम रहे हैं। न तो कोई मास्क है बस मुर्खता का प्रमाण है। ये सैंकड़ों की भीड़ निहत्थे बुजुर्ग साधुओं और उनके ड्राईवर पर हमला करते हैं, वो भी एक अफवाह की वजह से। एक अफवाह इनकी जान ले लेती है और सैंकड़ों लोग इन 2 बुजुर्गों की नृशंस हत्या कर देते हैं।

किसका बच्चा चोरी हुआ या किसकी किडनी निकाली गई

किसी ने कहा कि कि उन दोनों साधुओं पर बच्चा चोरी करने का शक था तो किसी को लगा कि वो किडनी चोरी करते हैं। तो किसी को वो पैसे चोरी करने वाले चोर लगे। हालांकि न तो किसी का बच्चा चोरी हुआ था और न ही किसी की किडनियां गायब हुई थी। कुछ लोग वो भी है जो इस आदिवासी समाज की जाति और धर्म तलाश रहे हैं कि कहीं ये किसी डरे हुए समाज का हिस्सा निकल आए तो प्राइम टाइम पर घंटों चर्चा कर ली जाए, तो कोई इसे देश का बहुसंख्यक समाज बता रहा है ताकि वो जमात वालों को बचा सके। कुछ तो पुलिस पर दोष मढ़ रहे हैं।

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जब हम खून से लथपथ हुए एक साधु को पुलिस वाले का हाथ पकड़ कर जाते हुए या फिर भीड़ से डर कर उनका कन्धा थामने की कोशिश करते देखते हैं तो यकीन मानिए उस वक्त पूरी मानवता एक साथ शर्मसार हो गई है। उसी वक्त प्रश्न उठता है कि क्या इससे भी बुरी कोई तस्वीर कभी देखी है हमने? दुर्भाग्य कि जो उत्तर हमें प्राप्त होता है, वो हमारा सिर थोड़ा और झुका देता है। पालघर मॉब लिंचिंग की कई घटनाएं आंखों के सामने तैरने लगती हैं, जहां पर भीड़ ने अपने आप को न्यायपालिका समझा और किसी भी सिद्ध या असिद्ध घटना के दोषियों को अपना निर्णय सुना दिया था।

सच है कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता

भीड़ यही करती आई है क्योंकि भीड़ सदैव बचती आई है। अक्सर कहा जाता है न कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, भेड़ियों के झुण्ड में एक खराब सोच काम करती है। घृणा से लबरेज एक सोच है जो उन्हें न्यायाधीश के पद पर बिठा देती है, वो जानते हैं कि हमारा कमजोर और लाचार सिस्टम इस बार भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। शायद इन्होंने मॉब लिंचिंग को वैध मान लिया हो क्योंकि जब हत्या की सजा न हो, फांसी न हो तो अपराधियों के हौसले तो बुलंद होते ही हैं। इन घटनाओं पर रोया जा सकता है, दीवारों पर सर फोड़ा जा सकता है, पुलिस वालों को गाली दी जा सकते हैं, लेकिन क्या इससे ये रुक जाएगा। ये सिर्फ अपने दिमाग की शांति के लिए अच्छा है।

पुलिस को कदघरे में खड़ा करना बेवकूफी

सवाल खड़ा होता कि क्यों लगातार मॉब लिंचिंग के हादसे होने के बाद भी सख्त कानून नहीं बना? क्यों कोई भी सरकार इस अपराध पर इतना ध्यान नहीं देती? एक ऐसा कानून कब बन सकेगा जब समाज किसी को कुचलते समय डरने लगे और सिर्फ मॉब लिंचिंग में ही नहीं बल्कि बाकी अपराधों में भी। अगर आप पालघर हादसे की वीडियो को देखें तो पहले तो लगता है कि इस पूरे मामले में पुलिस ही दोषी है जो भीड़ से साधुओं और उनके ड्राईवर को बचा न सकी लेकिन हमारी पुलिस के पास एक लाठी के अलावा और होता ही क्या है। वो भी तब चल सकती है जब ऊपर से आदेश मिलेंगे। हां शादियों में नेता और उनके चमचे गोलियां चला सकते हैं, यहां तक की देश के स्वतंत्रता सैनानियों की तस्वीरें तक छलनी कर सकते हैं, लेकिन देश के रक्षकों के पास इसका हक नहीं है। सच तो ये है कि हमारी पुलिस भी उतनी ही लाचार है जितना हमारा सिस्टम।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.