Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

जाति-धर्म के बाद अब प्रवासी मजदूर भी बनेंगे राजनीतिक नुमाइंदों के वोट बैंक

प्रवासी मजदूर नए वोट बैंक: योगी आदित्यनाथ - उद्धव ठाकरे की नोक झोंक में राजठाकरे कूद गए हैं, वहीं सोशल मीडिया पर एक्टर सोनू सूद मजदूरों के मसीहा बने हुए हैं
Logic Taranjeet 31 May 2020
जाति-धर्म के बाद अब प्रवासी मजदूर भी बनेंगे राजनीतिक नुमाइंदों के वोट बैंक

मजदूरों के पास इस वक्त रोटी के लाले पड़े हुए हैं, लेकिन सियासत में बैठे लोगों के लिए उन्होंने लंबी रोटी का जुगाड़ कर दिया है। प्रवासी मजदूर की राजनीति दिल्ली से शुरु हुई थी जो कि अब मुंबई, लखनऊ, पटना के भी आगे निकल गई है। अब ये प्रवासी मजदूर एक नए वोट बैंक बन गए हैं। योगी आदित्यनाथ और उद्धव ठाकरे की नोक झोंक में अब राजठाकरे भी कूद गए हैं, वो भी अपने ही अंदाज में। भले ही राज ठाकरे ने योगी आदित्यनाथ के एक्शन पर रिएक्शन दिया है, लेकिन वो उनकी पुरानी राजनीतिक स्टाइल में आसानी से फिट हो जा रहा है।

वहीं सोशल मीडिया पर बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद मजदूरों के मसीहा बने हुए हैं, लेकिन मजदूरों की घर वापसी से जो जमीनी चुनौती सामने आने वाली है उसे सीधे सीधे सरकारों को जूझना है।

अब मजदूर भी एक वोट बैंक है

प्रवासी मजदूर पर चल रही राजनीति का आलम ये है कि मामला अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन तक जा पहुंचा है। जिसकी वजह कुछ राज्य सरकारें हैं। राज्य सरकारों की तरफ से श्रम कानूनों में बदलाव किया गया है। दरअसल, कांग्रेस समर्थित संगठन NTUC, लेफ्ट समर्थित संगठन CITU-AITUC और HMS, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC जैसे संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन को पत्र लिखकर अपील की थी कि श्रम कानूनों में बदलाव को रोका जाये और उसी के आधार पर संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में लिखा है कि अंतर्राष्टीय समुदाय के सामने मजदूरों को लेकर भारत ने जो प्रतिबद्धता जतायी है उसका पालन करना चाहिए। श्रम कानूनों में हुए बदलाव का विरोध तो संघ के भारतीय मजदूर संघ ने भी किया है और उसका असर भी हुआ है। यूपी और राजस्थान सरकारों ने 8 घंटे की जगह 12 घंटे की शिफ्ट का आदेश वापस ले लिया है।

मजदूरों के बीच सोनू सूद वैसे ही हीरो बने हुए हैं, जैसा पटना में जब बाढ़ आयी थी तो मदद में हाजिर दो ही हाथ नजर आ रहे थे और वो दोनों ही पप्पू यादव के थे। शहर के हर इलाके में नाव लेकर दूध और दवाइयां पहुंचा रहे पप्पू यादव ने जो किया उसे लोग शायद भूल भी चुके होंगे। वैसे सोनू सूद ने बताया है कि वो मजदूरों की मदद के लिए एक टोल फ्री हेल्पलाइन भी शुरू करने वाले हैं। सोनू सूद ने बताया है कि वो करीब 1000 प्रवासी मजदूर को घर भेज चुके हैं। सभी तो नहीं लेकिन इनमें ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के है। जितने प्रवासी मजदूर लौटे हैं वो तो इसके कई गुना हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में अब तक ट्रेन और बस से 23 लाख और बिहार में दस लाख मजदूर लौट चुके हैं और ये सिलसिला अभी थमा नहीं है। मान कर चलना होगा कि अब प्रवासी मजदूर नए वोट बैंक के तौर पर उभर रहा है। मजदूरों के बहाने तमाम तरफ से जो राजनीतिक बयानबाजी हो रही है, वो कुछ और नहीं बल्कि आने वाले वक्त के वोटों की छीनाझपटी का ही तस्वीर है।

राज ठाकरे ने भी मारी एंट्री

अभी योगी आदित्यनाथ और उद्धव ठाकरे के बीच मजदूरों को लेकर संजय राउत के माध्यम से तू-तू मैं-मैं चल ही रही थी कि अब उसमें थोड़ी सी जगह पाकर राज ठाकरे भी एंट्री मार चुके हैं। राज ठाकरे की भूमिका तो बहती गंगा में हाथ धोने जैसी ही है, लेकिन वो उनकी पॉलिटिकल लाइन को काफी सूट कर रहा है। सामना में संजय राउत ने यूपी के मुख्यमंत्री की हिटलर से तुलना की थी तो योगी आदित्यनाथ से उद्धव ठाकरे को मजदूरों की सौतेली मां जैसा बताते हुए कहा था कि वो कभी माफ नहीं करेंगे। बात थोड़ी आगे बढ़ी और योगी आदित्यनाथ भी एक्शन में दो कदम आगे निकल गए। वो बोले, आगे से किसी भी राज्य सरकार को मजदूरों के लेने के लिए यूपी सरकार से बाकायदा परमिशन लेनी पड़ेगी। योगी आदित्यनाथ की इसी बात पर राज ठाकरे को भी मौका मिल गया।

Read More: मोदी जी, मैं घर जाने की चाह में सड़क पर मर जाऊं इससे पहले कुछ कहना चाहता हूँ

राज ठाकरे कह रहे हैं कि अगर कामगारों के लिए यूपी सरकार से इजाजत लेनी होगी तो आगे से बाहरी मजदूरों के महाराष्ट्र में काम करने के लिए सरकार और महाराष्ट्र पुलिस से इजाजत लेनी होगी। बिना इसके वो महाराष्ट्र में काम नहीं कर पाएंगे और ये बात योगी आदित्यनाथ को ध्यान में रखनी होगी। राज ठाकरे की राजनीतिक स्टाइल तो मराठी बनाम बाहरी को लेकर ही रही है और धीरे धीरे वो फेल भी होती गयी है। राज ठाकरे ने ट्विटर पर एक बयान जारी कर कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को इस बात पर गंभीरता से ध्यान देना होगा की आगे से कामगारों को लाते वक्त सबका रजिस्ट्रेशन हो और पुलिस स्टेशन में उनकी तस्वीर और प्रमाण पत्र हो। शर्तों के साथ ही उन्हें महाराष्ट्र में घुसने दिया जाए।

कांग्रेस को मिला मौका

ये प्रवासी मजदूर का ही मामला है जो प्रियंका गांधी को भी राजनीति का मौका दे रहा है और राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक बारी बारी हाथ आजमा रहा है। प्रियंका गांधी चुनावों में मजदूरों को याद दिलाएंगी कि कैसे योगी आदित्यनाथ ने उनकी 1000 बसों में बैठने से रोक दिया। राहुल गांधी भी 16 मजदूरों को सोनू सूद की ही तरह उनके घर तक तो पहुंचा ही दिये हैं और कांग्रेस शासन वाले राज्यों के रेलवे स्टेशनों पर मजदूरों को जाते जाते बता ही दिया जा रहा है कि उनके टिकट के पैसे सोनिया गांधी दे रही हैं।

जाहिर है सुन कर तो मजदूरों को ऐसा लगता ही होगा कि चुनावों में टिकट के पैसे वसूलने कांग्रेस नेता तो उनके पास पहुंचेंगे ही। जिन मजदूरों के लिए लॉकडाउन के बाद से योगी आदित्यनाथ लगातार जूझ रहे हैं, वो कभी कांग्रेस के वोट बैंक हुआ करते थे। बाद में जातीय आधार पर अखिलेश यादव और मायवती की पार्टियों ने बांट लिया था, लेकिन अब उन पर भाजपा अपना हक जताने वाली है। अभी तक चुनाव में धर्म और जाति के आधार पर बने वोट बैंक तो थे ही, आगे से प्रवासी मजदूर के साथ भी एक वोट बैंक जैसा ही व्यवहार होने वाला है। सबसे बड़ी समस्या तो उनके साथ ये है कि उनको पहले काम मिल पाएगा या वोट देने के बाद ही। बिहार में तो चुनाव इसी साल है, लेकिन यूपी में तारीख दो साल बाद आने वाली है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.