किसानों का सड़क पर उतर जाना केंद्र सरकार को बहुत भारी पड़ रहा है। कुछ राजनीतिक दल इसका जमकर फायदा उठा रहे हैं – जैसे अरविंद केजरीवाल। वो लगातार किसानों के लिए मांग कर रहे हैं और साथ ही उनके साथी नेता प्रदर्शन स्थल पर ही बैठ गए हैं। इसका सीधा लेना देना 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव से हो सकता है। लेकिन वहीं साथ में अगर राहुल बाबा भी किसानों के साथ सड़क पर पहुंच जाते, तो केंद्र सरकार का क्या हाल होता? किसानों के बीच खड़े होकर राहुल गांधी के सवाल उठाने पर भाजपा नेताओं की तकलीफें कुछ हद तक तो जरूर बढ़ती।
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की किसान आंदोलन को लेकर चिंता साफ नजर आ रही है, जिससे ये साबित हो रहा है कि इस आंदोलन का महत्व कितना ज्यादा है। वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में किसान और कांग्रेस पूरी तरह से छाई रही है। केंद्र सरकार पर किसान आंदोलन का दबाव उनके सहयोगी दल की धमकी से भी बढ़ गया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल ने अमित शाह को संबोधित कर एक ट्वीट किया और सीधे सीधे धमकी दे डाली चूंकि RLP एनडीए का घटक दल है लेकिन पार्टी की ताकत किसान और जवान है। अगर इस मामले में त्वरित कार्यवाही नहीं की गई तो मुझे किसान हित में एनडीए का सहयोगी दल बने रहने के विषय पर पुनर्विचार करना पड़ेगा! हनुमान बेनीवाल की चेतावनी से पहले कृषि कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल पहले ही एनडीए से अलग हो चुका है।
भाजपा की मुश्किल को राहुल बाबा समझ नहीं पा रहे हैं। वो किसान आंदोलन का समर्थन जरूर कर रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन। उनको समझना होगा कि ये वक्त ऑनलाइन कैंपेन का नहीं है। बेहतर तो यही होता कि राहुल गांधी भी किसानों की लड़ाई में उनके बीच खड़े होते। क्योंकि ऐसा होने पर दोनों का भला हो सकता था। दिल्ली में डेरा डाले किसान पंजाब से ही आये हैं, जहां राहुल बाबा खेती बचाओ यात्रा में शामिल हुए थे और ट्रैक्टर से एक लंबा सफर तय किया था। जब हरियाणा में राहुल गांधी की ट्रैक्टर यात्रा को एंट्री नहीं मिली तो वो धरने पर बैठे रहे थे।
राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमले के लिए ट्विटर को चुना। राहुल गांधी ने लिखा कि वादा था किसानों की आय दोगुनी करने का, मोदी सरकार ने आय तो कई गुना बढ़ा दी, लेकिन अडानी-अंबानी की। जो काले कृषि कानूनों को अब तक सही बता रहे हैं, वो क्या खाक किसानों के पक्ष में हल निकालेंगे। ये ठीक है कि मौजूदा दौर में सोशल मीडिया की ताकत को कम नहीं समझ सकते हैं, लेकिन ऐसे में जबकि किसान राशन-पानी और बिस्तर के साथ 6 महीनों का इंतजाम कर दिल्ली पहुंचे हैं। तो राहुल बाबा समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं को कदम बढ़ाते हुए किसानों की आवाज बुलंद करनी चाहिए थी।
राहुल गांधी चाहते तो किसान आंदोलन ज्वाइन करके कांग्रेस के बागी नेताओं का मुंह हमेशा के लिए बंद कर सकते थे। चाहे फिर वो गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता ही क्यों ना हो। वो उन 23 नेताओं को भी जवाब दे सकते थे, जिन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर एक ऐसे स्थायी अध्यक्ष की डिमांड की थी। इतना ही नहीं वो राजनीतिक विरोधियों को भी सोचने पर मजबूर कर सकते थे।
साल 2017 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब पंजाब चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे थे तो बोले कि अब मैं यहीं खूंटा गाड़ के बैठूंगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भले ही अरविंद केजरीवाल की सरकार न बनने दी हो, लेकिन राहुल बाबा भी अगर खूंटे के साथ किसान आंदोलन में कूद पड़ते तो उनका तो भला होता ही, राहुल गांधी के करियर के लिए किसान आंदोलन नया लांच पैड साबित हो सकता था।