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विकास दूबे के नाटकीय रूप वाले फिल्मी एनकाउंटर से जुड़े जरूरी सवाल

विकास दूबे का फिल्मी एनकाउंटर: पहले तो विकास दुबे उज्जैन से गिरफ्तार हुआ और फिर जब उसे यूपी लाया जा रहा था तो वो नाटकीय रूप से फिल्मी एनकाउंटर में मारा गया।
Logic Taranjeet 11 July 2020

कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की जान लेने वाला गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया। पहले तो विकास दुबे उज्जैन से गिरफ्तार हुआ और फिर जब उसे यूपी लाया जा रहा था तो विकास दूबे को फिल्मी एनकाउंटर में मारा गया। एसटीएफ का कहना है कि वो रास्ते में भागने की कोशिश कर रहा था। विकास दुबे कई दिनों से तो एक नाटक कर रहा था। कभी वो हरियाणा में दिखा तो कभी राजस्थान में फिर वो बहुत ही नाटकीय रूप से गिरफ्तार होता है। पुलिस की मानें तो उज्जैन से कानपुर लाते वक्त रास्ते में एसटीएफ की गाड़ी पलट गई। इसी दुर्घटना का फायदा उठाकर विकास दुबे भागने की कोशिश कर रहा था। उसने पुलिसकर्मी से बंदूक छीनी और भागने लगा तभी पुलिस ने उसे गोलियां मार दी।

पुलिस की ये फिल्मी कहानी यकीनन एक दिन हम पॉपकॉर्न खाते हुए बड़ी स्क्रीन पर देखेंगे। क्योंकि इस पूरी कहानी में बहुत से सवाल है। जिनका जवाब मिलना उतना ही मुश्किल है जितना सबके खातों में 15 लाख रुपये आना।

क्या विकास को हथकड़ी नहीं पहनाई थी?

इस पूरी कहानी में कई सवाल है, जिनमें पहला तो ये है कि जब विकास को एयरलिफ्ट करना था, तो फिर उसे सड़क से क्यों लाया गया? अगर जहाज से लाने की कोई योजना नहीं थी तो इस झूठी खबर का मीडिया के जरिए खंडन क्यों नही किया गया था? दूसरा सवाल ये है कि जब गाड़ी पलटी तो विकास दुबे ने पिस्तौल छीनी, क्या इस दुर्घटना में विकास घायल नहीं हुआ? उसके हाथों में हथकड़ी नहीं थी? अगर हथकड़ी नहीं भी पहनाई गई तो भी पुलिसकर्मी इतने लापरवाह थे कि अपने हथियार नहीं संभाल सके? जबकि ऐसे आरोपी को लाया जा रहा था जो 8 पुलिसकर्मियों की जान ले चुका था।

मीडिया को क्यों रोका गया था?

विकास दुबे जब उज्जैन में गिरफ्तार हुआ तो मीडिया तभी से हर वक्त कवर कर रही थी। उज्जैन से कानपुर आते वक्त भी विकास दुबे को कवर करने के लिए मीडियाकर्मी पुलिस की टीम के पीछे पीछे ही थे, लेकिन अचानक ही मीडिया की गाड़ियों को रोक क्यों दिया? विकास दुबे को लाते वक्त पूरा काफिला था, तो वही गाड़ी अचानक से कैसे पलटी जिसमें विकास मौजूद था? और फिर उस गाड़ी को देखने से साफ जाहिर होता है कि गाड़ी बहुत अधिक स्पीड में चल नहीं रही थी, क्योंकि गाड़ी के शीशे चकनाचूर नहीं हुए थे जो आमतौर पर किसी दुर्घटना के दौरान होते ही हैं।

विकास तो 500 मीटर चल नहीं सकता था, तो भागा कैसे?

विकास दुबे की गिरफ्तारी पर ही सवाल खड़े हो रहे थे, क्योंकि काफी लोगों का ये मानना है कि उसने खुद मंदिर पहुंच कर सरेंडर किया। वो एनकाउंटर से बचना चाहता था इसलिए उसने मंदिर में सरेंडर किया। अब सवाल यह है कि अगर वो गिरफ्तारी के लिए तैयार नहीं था तो उसने सरेंडर किया ही क्यों? अगर कल उसने सरेंडर कर दिया तो आज उसने भागने की कोशिश क्यों की? ये बात सभी जानते हैं कि विकास दुबे के दोनो पैरों में स्टील की रॉड पड़ी हुयी है और वो 500 मीटर से ज्यादा सही से चल नहीं पाता है, तो भागना तो दूर की बात है। ऐसे में विकास दूबे भागने कैसे लगा?

पैर पर क्यों नहीं मारी गई गोली?

सबसे जरूरी सवाल कि पुलिस को ट्रेनिंग दी जाती है कि मुठभेड़ के दौरान सबसे पहले अपराधी के पैर पर गोली चलाई जाए। खासतौर पर एसटीएफ जैसी टीम को ऐसे मुठभेड़ के लिए ही तैयार किया जाता है, तो फिर विकास दुबे को टांग पर गोली न मार कर सीने पर गोली क्यों मारी गई? और फिर विकास दुबे के सीने पर गोली कैसे लगी और किन हालातों में लगी ये भी सवाल है। क्योंकि अगर विकास दूबे भाग रहा था तो उसकी पीठ पर गोली लगनी चाहिए।

आकाओं को खुश करने के लिए पुलिस को फिर कमजोर दिखा दिया

क्या पुलिस इतनी कमजोर हो गई कि वो एक अपराधी को पहले तो हफ्तों तक गिरफ्तार ही न कर सकी और किसी तरह वो पकड़ में आया तो उसे 24 घंटे तक अपनी सुरक्षा में सुरक्षित नहीं रख सकी। क्या पुलिस किसी शातिर अपराधी को 700 किलोमीटर की दूरी से सुरक्षित ला पाने में भी सक्षम नहीं है? नहीं हमारी पुलिस इतनी कमजोर और लाचार नहीं है बल्कि ये सिस्टम और ऊपर बैठे आका ये करवाने के लिए मजबूर करते हैं। विकास दूबे राजनीति के धुरंधरों से जुड़ा था, उन्हें डर था कि कहीं कोई राज न खुल जाए। इसलिए विकास को हमेशा के लिए चुप करा दो।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.