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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित वोट बैंक पर टिकी सभी सियासी दलों की नज़र 

उत्तर प्रदेश में 21 प्रतिशत से अधिक आबादी वाला दलित वोट  बैंक यूपी के सियासत में सदैव सत्ता तक पहुचाने के सफ़र में अहम भूमिका निभाता रहा है। 
उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित वोट बैंक पर टिकी सभी सियासी दलों की नज़र 

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में सभी सियासी दलों ने अपनी सियासी चाल को बिछाते हुए सत्ता पर काबिज होने के लिए कोई कसर नही छोड़ रहे है। जाती धर्म का सियासी गणित को साधते हुए एक बार फ़िर यहाँ की सियासत में जाती धर्म का कार्ड खेला जा रहा है। जिसमे कोई भी सियासी दल पीछे नही हट रहा है । उत्तर प्रदेश में 21 प्रतिशत से अधिक आबादी वाला दलित वोट बैंक यूपी के सियासत में सदैव सत्ता तक पहुचाने के सफ़र में अहम भूमिका निभाता रहा है। इसी वोट बैंक के बदौलत कांग्रेस , बसपा , सपा और भाजपा ने भी सत्ता पर अपने आपको स्थापित किया है। 

एक लंबे अरसे से उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस के पक्ष खड़ा रहने वाला दलित वोट बैंक पिछले तीन दशक से कांग्रेस से विमुख होकर बसपा के खेमे में जा पहुँचा था । जिसके ही बदौलत बसपा ने चार बार उत्तर प्रदेश की सियासत में सरकार बनाने में कामयाब रही है।  दलित वोट बैंक को ध्रुवीकरण करके ही मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रही और उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्ष की भी अहम भूमिका निभाती रही है। 

उत्तर प्रदेश का पिछले तीन चुनावो का परिणाम देखा जाए तो तीनों बार आरक्षित सीटों को सबसे ज्यादा जितने वाली दल का ही उत्तर प्रदेश में सरकार बनी है ।

  • 2007 के चुनाव में 89 आरक्षित सीटों में से 61 सीटो पर जीत दर्ज कर 69 % फ़ीसदी सीटो को जीतकर बसपा सरकार बनाने में कामयाब रही ।
  • 2012 के चुनाव में 85 आरक्षित सीटों में से 58 सीटों पर जीत हासिल कर 68 % फीसदी सीटों को जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही ।
  • 2017 के चुनाव में 86 आरक्षित सीटों में से 70 सीटों पर जीत दर्ज कर 88 % फ़ीसदी सीट को जीतकर भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही ।

पिछले तीन चुनावो के समीकरण को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की सियासत में अक्सर कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में आरक्षित सीटो पर जो भी दल 65 फीसदी से ज्यादा जीत हासिल करता है उसी दल की सरकार बनती है । इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर सभी सियासी दलों ने दलित वोटबैंक में सेंधमारी करने में लगे हुए है । दलित वोटबैंक पर बसपा सहित सभी राजनीतिक दलों की पैनी नजर बनी हुई है ।

हालांकि पिछले बार सबसे ज्यादा सीट जितने वाली भाजपा की नजर एक बार इसी समीकरण को साधने में जुटी हुई है तमाम दलित कल्याणकारी योजनाओं के साथ साथ दलितों के घर जाकर भोजन करने व उनसे संवाद करने का कार्यक्रम रखकर दलितों वोटबैंक को अपने ही पास रखने के लिए कोई कसर नही छोड़ रही है ।

वही बसपा की खेमें से खिसकने वाला उसका सबसे अहम जनाधार को अपने खेमे में लाने के लिए मायावती से लेकर बसपा के सभी नेता इस दौड़ में लगे हुए है। वही समाजवादी पार्टी के ओर से दलित को रिझाने के लिए बाबा साहब वाहिनी जैसे संगठन को बनाकर उनके युवाओ को अपने ओर आकर्षित करने में लगी हुई है। वही कांग्रेस की ओर से 100 100 दलित नेता हर जिले में तैयार करने का निर्देश उनके संगठन को दिया गया है ।

अब देखना अहम यह होगा कि क्या दलित वोटबैंक इस बार भाजपा की ओर से खिसकर कहि ओर जाता है या उन्हीपर रहकर उनको मजबूत करता है।