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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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बेरोजगार छात्रों के बागी होने की क्या है कहानी? कौन है जो इन्हें भड़का रहा है

गोदी मीडिया के चश्मे से देखेंगे तो आप समझेंगे की छात्रों ने विरोध के नाम पर तोड़फोड़ और आगजनी कर दी और जिसे रोकने के लिए पुलिस बल ने हॉस्टल और लॉज में अंदर घुस कर पराक्रम दिखाया।
Politics Tadka Taranjeet 30 January 2022
बेरोजगार छात्रों के बागी होने की क्या है कहानी? कौन है जो इन्हें भड़का रहा है

पटना और प्रयागराज में जो हुआ, वो सही नहीं कहा जा सकता है, अगर गोदी मीडिया के चश्मे से देखेंगे तो आप समझेंगे की छात्रों ने की विरोध के नाम पर तोड़फोड़ और आगजनी कर दी और जिसे रोकने के लिए पुलिस बल ने हॉस्टल और लॉज में अंदर घुस कर पराक्रम दिखाया। इन्हें तो कोचिंग वालों ने बहका दिया, इसलिए छात्र आंदोलन करने लगे। लेकिन ग्रुप डी यानी की चौथी श्रेणी, जिसे आसान भाषा में समझने के लिए कहिये की सरकारी नौकरी में सबसे निचले पायदान पर काम करने वाला कर्मचारी और इस पायदान पर काम करने के लिए मजबूर पीएचडी-एमबीए-इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल कर चुके छात्र है। लेकिन सवाल आखिर ये है कि ऐसा क्या हो गया कि अब ये छात्र इतने उग्र हो गए हैं?

किसने कर दिया बेराजगार को बागी?

पटना, रांची, लखनऊ, दिल्ली, भोपाल, जयपुर, प्रयागराज, वाराणसी जैसे शहरों में कॉलेजों के पास, यूनिवर्सिटियों की ओट लेकर खड़े लॉज-हॉस्टल के एक-एक कमरों में चार-चार, छह-छह की तादाद में रहने को मजबूर लड़के। उस कमरे में एक बल्ब के नीचे प्रतियोगिता दर्पण में धंसी हुई आंखें। उसके ऊपर इन छात्रों के कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ। कोई पिता को रिटायर करवाना चाहता है क्योंकि अब वो नौकरी नहीं कर पा रहा है, तो किसी की बहन की शादी होनी है, तो कोई अपने छोटे भाई-बहन की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने के लिए तरस रहा है।

कुछ की उम्र हो घई है और अभी भी मां-बाप से पैसे मांगने पड़ रहे हैं जिसकी शर्म शब्दों में बयां नहीं की जा सकती है। अपने लिए एक छोटी सी नौकरी पाने के लिए जवानी गला रहे छात्र, अब इस हद पर क्यों आ गए कि वो ट्रेन जलाने लगे, पटरियां उखाड़ने लगे और ‘पत्थरबाज’ हो गए हैं? किसी के शब्दों में वो अब आंदोलनजीवी हो गए हैं।

बार-बार एक ही कहानी दोहराई जा रही

RRB, REET, JPSC…. छात्रों की हालत बयां करने के लिए काफी हैं लेकिन अगर आपसे ये कहा जाए कि ये वारदातें देश में एक लूप की तरह चल रही हैं तो क्या कहेंगे? कोई है जो छात्रों के भविष्य का लगातार कत्ल कर रहा है। मंदिर-मस्जिद, लव जिहाद, पाकिस्तान के मुद्दे पर चीखते-चिल्लाते एंकरों के शोर में इन छात्रों के भविष्य की खबरें तो गुम हो गईं है, जरा याद कीजिये की इन सुर्खियों को आपने कब अपने टीवी के प्राइम टाइम में देखा है।

यूपी

साल 2021 में यूपी में शिक्षक भर्ती की परीक्षा (UPTET) के पेपर पिछले साल लीक हुए। साल 2018 में पावर कॉरपोरेशन परीक्षा के पेपर लीक हुए थे। उसी साल पुलिस महकमे में भर्ती परीक्षा, अधीनस्त सेवा चयन बोर्ड परीक्षा, हेल्थ डिपार्टमेंट में प्रोमशन के लिए परीक्षा और हैंडपंप ऑपरेटर के लिए परीक्षा के पेपर लीक हुए। साल 2017 में सब इंस्पेक्टर भर्ती के पेपर लीक हुए।

राजस्थान

पिछले 3 सालों में राजस्थान लोकसेवा आयोग और कर्मचा​री अधीनस्थ सेवा बोर्ड 26 परीक्षाओं को रद्द कर चुका है। इनमें से कर्मचारी अधीनस्थ बोर्ड ने 3 परीक्षाओं को रद्द पेपर लीक होने की वजह से किया। बाकी परीक्षाओं को प्रशासनिक कारण बता कर रद्द किया गया। इन परीक्षाओं में बैठने के लिए लाखों अभ्यार्थियों ने आवेदन किए थे। राजस्थान में रीट के अलावा सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा, कांस्टेबल भर्ती, जेईएन, पटवारी चयन परीक्षाओं पर भी तलवार लटकी।

ज्यादातर परीक्षाओं में नकल गैंग सामने आया है या फिर परीक्षा करवाने में तंत्र की लापरवाही उजागर हुई है। हाल ही की खबर है कि राजस्थान में नमो नारायण मीणा नाम के एक शख्स ने 10 साल तक सरकारी नौकरी की तैयारी करने के बाद खुदकुशी कर ली। साल 2012 में आयुर्वेद कंपाउंडर की 1600 भर्तियां निकलीं और फिर सरकार बदली जिसके बाद 1000 पदों को समाप्त कर दिया गया।

झारखंड

JPSC की मेन्स परीक्षा पर तो 25 जनवरी को कोर्ट ने रोक लगा दी। इसकी 16 परीक्षाएं सीबीआई जांच के दायरे में चली गई है। 20 सालों में सिर्फ 6 एग्जाम करवाए जा सके हैं या तो मामला भ्रष्टाचार का हो जाता है या फिर कोई और मुद्दा सामने आ जाता है। आयोग के एक चेयरमैन को तो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक का सफर करना पड़ा।

मध्य प्रदेश

व्यापम यानी व्यवसायिक परीक्षा मंडल, जिसे अब PEB यानी व्यवसायिक परीक्षा मंडल,नाम दे दिया गया है। व्यापम मेडिकल, इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिये परीक्षाएं आयोजित कराने के अलावा राज्य सरकार की नौकरियों परीक्षाएं आयोजित कराता था। व्यापम में भ्रष्टाचार के खिलाफ साल 2009 में इंदौर के चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने हाई कोर्ट में याचिका डाली था।

पता चला कि नेता, अफसर, मंत्रियों ने पैसे लेकर नौकरियां और मेडिकल-इंजीनियरिंग की सीटें बेच ही दी थी। इसके लिए खाली कॉपियों को परीक्षा के बाद रंगा गया, कुछ के नामों को तो सीधे ही रिजल्ट में शामिल कर दिया गया था। इस व्यापम कांड के बाद 46 लोगों की खुदकुशी की खबरें सामने आई थी। इन 46 लोगों में वो लोग भी शामिल है जो या तो गवाह थे या फिर मामले की गहराई तक जाने वाले पत्मेंरकार।

व्यापम के नाम को बदल कर PEB कर दिया गया, इस उम्मीद से की शायद नाम सुधर सके लेकिन PEB भी बदना हो गया। फरवरी 2021 में PEB ने कृषि विस्तार अधिकारी, ग्रामीण विस्तार अधिकारी और स्टाफ नर्सिंग भर्ती परीक्षा करवाई, जिसमें धांधली के आरोप लगे और आरोप सही पाए गए और अगस्त 2021 में परीक्षाएं रद्द कर दी गई।

नौकरी का वादा तो हम देंगे, लेकिन अगर मांगोगे तो तुम्हें पीट देंगे

करियर के साथ जो ये खुल्ला कत्लेआम हो रहा है, ये सिस्टम अब पूरी तरह से जम गया है। तुम हमें वोट दो, हम नौकरी का वादा करेंगे लेकिन नौकरी नहीं देंगे। छात्रों के सपनों के साथ-साथ मां-बाप की उम्मीद का भी गला घोंटा जा रहा है। हिम्मत टूटने के बाद जब हार कर इन छात्रों का हाथ उठता है तो इन्हें आंदोलनजीवी कह दिया जाता हैं। सरकार के खिलाफ साजिश का नाम देकर इन पर सिपाहियों का डंडा चलता है।

आज चुनाव है तो यूपी सरकार प्रयागराज में छात्रों को पीटने वाले पुलिसवालों को सस्पेंड कर रही है लेकिन ये प्रयागराज जो अब उबल पड़ा है, वो महीनों से सुलग रहा था। यहां पर 4 जनवरी की रात छात्र नौकरी की मांग पर थाली चम्मच लेकर सड़कों पर निकले थे। उसके अगले दिन भी सड़कों पर निकले तो जमकर लाठियां चलाई गईं और छात्रों ने हिंसा नहीं की थी।

दिसंबर 2021 में 69000 बेसिक शिक्षक भर्ती के लिए लखनऊ में शांतिपूर्वक कैंडल मार्च करते अभ्यार्थियों को कीट पतंगों की तरह पीटने वाले पुलिस वालों के खिलाफ क्या एक्शन हुआ? पुलिस के तो सिर्फ हाथ थे, लेकिन उन्हें निर्देश कौन दे रहा था? तब तो किसी ट्रेन में आग नहीं लगाई गई थी, कोई ट्रैक भी नहीं उखाड़ा गया था। छात्र तो 5 महीनों से प्रदर्शन कर रहे थे, बदले में मिली लाठी क्योंकि आजकल पॉलिटिक्स को प्रदर्शन पसंद नहीं है।

नवंबर 2021 में झारखंड की राजधानी रांची में JPSC पीटी परीक्षा की कटऑफ जारी करने की मांग कर रहे छात्रों को बेतरह पीटा गया था। उससे पहले सितंबर 2021 में यूपी के ललितपुर में छात्रों को लाठियों में आग लगाकर पीटा गया। जून 2021 में बिहार की राजधानी पटना में शिक्षक अभ्यार्थियों पर पुलिस ने लाठियां बजा दी थी। गुनाह क्या था ये सवाल किसी ने पूछना जरूरी नहीं समझा?

छात्र मर रहे हैं, पक्ष-विपक्ष मौज में

कहीं पेपर लीक हो जाता है तो कहीं कोई और गड़बड़ी हो जाती है। कहीं पर भ्रष्टाचार के आरोप लग जाते हैं तो कहीं पर मामला कोर्ट में जाकर फंस जाता है। लेकिन इन सबका नतीजा होता है कि नौकरी नहीं मिल पाती है। छात्रों पर क्या बीत रही है ये समझना है तो एक सरकारी डेटा पढ़िए। पिछले 4 साल में बेरोजगारी के कारण खुदकुशी में 24 फीसदी का इजाफा हुआ है।

एनसीआरबी का डेटा है। ये तो कोविड के पहले का डेटा है जिसके बाद हालात फिर और खराब हुए हैं। कोविड लॉकडाउन के वक्त गांवों की तरफ खुद घिसटती भीड़ आइना भी थी कि बेरोजगारी का क्या आलम है, लेकिन सरकार ने कह दिया कि ये तो आंकड़े में ही नहीं। कोई ताज्जुब नहीं है कि अक्टूबर 2021 में आई इसी NCRB की रिपोर्ट कहती है कि खुदकुशी करने वालों में सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर थे।

कौन हैं ये लोग जो जान ले रहे हैं अपनी? क्या वो नहीं जो पढ़ लिखकर भी मजदूरी करने को मजबूर हैं, अंदर ही अंदर घुट रहे हैं? क्या वही तो नहीं जिन्हें बीए पास करने के बाद भी मजदूरी नहीं मिलती है? गांव छोड़कर शहर आने के बाद भी नहीं मिलती है। क्या वही तो नहीं जो अपने गांव में खुली साफ आबोहवा में रहते थे और जिनका शहरों के तंग कमरों में दम घुट रहा है, फिर भी 7 से 8 हजार में महीना काटने को मजबूर हैं?

अक्षम सरकार या सब जानबूझकर?

सवाल ये है कि राज्य दर राज्य सरकारें ठीक से परीक्षा करा नहीं पा रही हैं तो वो क्या वो अक्षम हैं या ये सब जानबूझकर हो रहा है? क्योंकि यही सरकारें बड़े-बड़े चुनाव तो सफलतापूर्वक करा लेती हैं क्योंकि वहां पर नेताओं का करियर दांव पर होता है? दरअसल नौकरियां चुनाव के दौरान उगाए नेताओं के सुनहरे वादों के पेड़ पर नहीं उगतीं हैं। उसके लिए चाहिए होती है पूरी प्लानिंग और उस प्लानिंग को पूरा करने के लिए एक मजबूत इकनॉमी, लगातार ग्रोथ, ईमानदार मेक इन इंडिया, गांव तक उद्योग लेकिन नौकरी का वादा वोट की राजनीति की जरूरत है। तो नेता जी लंबी-लंबी हांक जाते हैं और अपना काम निकलते ही, बातें बदलने लगती हैं।

जिस रेलवे की नौकरियों के लिए बवाल मचा है उसका वादा भी साल 2019 चुनाव से पहले किया गया था। यूपी में अभी चुनाव से पहले पुलिस भर्ती का ऐलान हो गया है, देखिए बहाली कब होती है, कितनी लाठियों के बाद होती हैं। सरकारें नौकरी की आस में बैठे करोड़ों छात्रों को नौकरी के बदले धोखा दे रही हैं और मेन स्ट्रीम मीडिया में इसकी चर्चा तक नहीं होती है। वो तो जाहिलों की तरह जनता को हिंदू-मुसलमान-पाकिस्तान की अफीम चटाने में मशगूल है।

रेलवे के खिलाफ छात्रों के आंदोलन को लेकर भी मीडिया आंखें मूंदे बैठा रहा है। सोशल मीडिया हैशटैग ट्रेंड हो रहे थे लेकिन हमारे हाहाकारी एंकरों को कुछ नहीं दिखा था। सिसकियां दबा दी जाती हैं, जब रोना भी कोई नहीं सुनता है तो छात्र सड़कों पर निकल कर चीखते हैं और चीखते हैं तो सरकार और उसकी गोद में बैठा मीडिया कहता है कि ध्वनि प्रदूषण अच्छी बात नहीं है।

नौकरी की जरूरत पंथ निरपेक्ष है

नेता युवाओं को धर्म रक्षा, गोरक्षा, राष्ट्र रक्षा के नाम पर बरगलाने में लगे हुए हैं लेकिन नौकरी की जरूरत पंथ निरपेक्ष है। बिना सैलरी के ना तो भजन हो सकता है और ना ही देशहित के काम हो सकते हैं यहां तक की गौ माता को रोटी देने के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ती है। नौकरियां पैदा करने लिए लाए गए नेता मंदिर-मस्जिद में व्यस्त हैं। युवाओं की किस्मत बदलने का वादा कर आए थे, सड़कों और शहरों के नाम बदलने में जुटे हुए हैं। भविष्य सुधारने आए थे, लेकिन इतिहास ठीक करने में लगे हुए हैं। अपने नागरिकों का कल्याण तो कर नहीं पा रहे हैं और भगवान के लिए खड़े होने तले हैं।

तो बात ये है कि हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा हुआ था। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया से रोजगार पैदा करने की बात हुई थी। फिर पकौड़े तलने को भी नौकरी बता दिया गया था। इधर पकौड़े तलने वालों का भी धर्म पूछा जाने लगा है। मुसलमान हो तो हिंदू नाम पर रेहड़ी का नाम क्यों रखा हुआ है? हिंदू इलाके में क्यों बेचने आए? सड़क किनारे नॉनवेज क्यों बेच रहे हो? नोटबंदी और जीएसटी की दुश्वारियां से बच भी गए तो कोविड का ताला लग गया। प्राइवेट सेक्टर निवेश करते डरता है तो फैक्ट्रियों में कम नौकरी। सरकारी नौकरियों की जगहें सिकुड़ती जा रही हैं तो नौकरियां आए कहां से?

जाहिर है नौकरी मांगने पर पोल पट्टी खुलती है सो दी जाती हैं लाठियां, लांछन और धमकियां कि नौकरी के लिए प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ तो जिंदगी भर सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। प्रयागराज में जो हुआ उसे आप झांकी की तरह देख सकते हैं और समझ सकते हैं कि ये आपके बच्चे के साथ भी हो सकता है। और अभी समय है जिसमें लोगों को ही समझना होगा कि वो असल में भविष्य के नाम पर वोट देना चाहते हैं या फिर मुंगेरी लाल के रंगीन सपनों में जीना चाहते हैं।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.