भारत के पहले मुस्लिम एयर फोर्स चीफ, नाम था इदरीस हसन लतीफ. 09 जून 1923 को हैदराबाद में जन्में थें. हिंदुस्तान के इतिहास में वो इकलौते मुस्लिम अफसर हुए जो भारतीय वायु सेना के प्रमुख के पद पर पहुंचें. अभी हाल ही में पिछले साल 01 मई 2018 को उन्होंने 94 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्हें एसपिरेशन निमोनिया की शिकायत हुई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका.
बड़े जिंदादिल इंसान माने जाते थें इदरीस साहब. अपने वतन से बेपनाह मुहब्बत करते थें. बहुत लगाव था उन्हें अपने हिंदुस्तान से. हिंदू मुस्लिम फसाद जैसे मामलों को सुनते तो भावुक हो जाते थें और कभी कभी गुस्से में भी आ जाते थें.
इदरीस हसन लतीफ 1978 से 1981 के बीच भारतीय वायुसेना के प्रमुख थें. उन्होंने आजादी के पहले ही यानी ब्रिटिश शासन के दौरान ही एयर फोर्स ज्वाइन कर लिया था. उस समय भारतीय वायु सेना को रॉयल इंडियन एयर फोर्स के नाम से जाना जाता था. 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो सेना के अधिकारियों और जवानां से उनकी राय मांगी गई. इदरीस साहब के साथ के सभी अधिकारियों ने उन्हें पाकिस्तान साथ चलने की नसीहत दी. कई लोगां ने यह भी कहा कि भारत में हिंदूओं का ही जोर रहेगा, इसलिए नौकरी के दरम्यान कई तरह की रुकावटें आ सकती है.
एयर फोर्स में ही इदरीस साहब के दो दोस्त हुआ करते थें मलिक नूर और असगर खान. ये दोनों ही पाकिस्तान जाने के लिए उन पर दबाव बना रहे थें. इदरीस साहब को जब भारत और पाकिस्तान एयर फोर्स में किसी एक विकल्प को चुनने को कहा गया तो उन्होंने भारतीय वायु सेना को ही चुना. उन्हांने अपने दोनों दोस्तों से कहा कि
तुम दोनों पाकिस्तान जाओं और फलो फूलों लेकिन मैं इसी हिंदुस्तान की मिट्टी में ही दम तोड़ना चाहता हूं क्योंकि ये मुल्क ख्वाजा साहब का है.
इदरीस साहब, असगर खान और मलिक नूर तीनों दोस्त अक्सर साथ रहा करते थें. एयर फोर्स की नौकरी के दौरान तीनों की तिकड़ी चर्चा में रहा करती थी. मुल्क के बंटवारे के पहले तीनों ने एक साथ कई जंगें लड़ी थी लेकिन फिर एक ऐसा दौर भी आया जब ये दोस्त एक दूसरे के सामने दुश्मन बन कर खड़े थें.
वो दौर था 1971 का. भारत और पाकिस्तान के बीच जंग जारी था. असगर खान और मलिक नूर पाकिस्तान एयर फोर्स के सीनियर अधिकारियों में शामिल थें तो वहीं इदरीस साहब असिस्टेंट एयर फोर्स चीफ थें. इदरीस हसन लतीफ एयर फोर्स के उन अधिकारियों की टीम में शामिल थें जो जंग के साथ साथ रणनीति भी बना रहे थें. एक साथ जंग लड़ने वाले फौजियों का समूह आमने सामने आकर आर पार की लड़ाई लड़ रहा था.
भारत ने इस यु़द्ध में वीरता का बेहतरीन नमूना पेश किया. पाकिस्तान को धूल चटा दिया गया. इसके साथ ही उनके 1 लाख सैनिकों को भारत ने बंदी बना लिया. अंत में पाकिस्तान को सरेंडर करना पड़ा. भारत की जीत पर इदरीस साहब को मलिक नूर और असगर खान ने बधाई भी दी.
भारतीय वायु सेना के जंगी बेड़े में मिग 23 और मिग 25 शामिल कराने वालां में इदरीस हसन लतीफ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. मिग 23 और मिग 25 भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों में शामिल था. इनमें से मिग 23 ने 30 सालों तक भारतीय वायु सेना को अपनी सेवाएं दी थी. 2009 में मिग 23 को विदाई दे दी गई. वही मिग 25 ने अगर सबसे ज्यादा किसी को रुलाया और दहलाया तो वो पाकिस्तान ही था. पाकिस्तानी एयर फोर्स चाहे कितना भी उधम मचा ले लेकिन भारत के इस टोही विमान के आगे उन्हें बेबस हो जाना पड़ता है. इसके लिए इदरीस हसन का जितना भी शुक्रिया अदा किया जाए, वो कम है.
1981 में रिटायर होने के बाद सेना के प्रति इदरीस हसन की शानदार सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया. कुछ समय के लिए उन्हें महाराष्ट् रसे बड़े प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया फिर उन्हें फ्रांस में भारत का राजदूत बनाकर भेजा गया. इन पदो ंके साथ भी इदरीस हसन ने पूरा न्याय किया और ईमानदारी से अपने कर्तव्यां का निर्वहन किया.