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अगर सीएए लागू न होता तो क्या भाजपा दिल्ली चुनाव में लड़ पाती?

सीएए लागू नहीं होता तो क्या शाहीन बाग में लोग इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहे होते? और अगर वहां प्रदर्शन नहीं होता तो शाहीन बाग चुनावी मुद्दा कैसे बनता
Politics Tadka Taranjeet 3 February 2020

दिल्ली विधानसभा चुनाव भी भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ ही लड़ रही है। इससे पहले महाराष्ट्र-हरियाणा और झारखंड के नतीजों के चलते माना जाने लगा था कि भाजपा दिल्ली में कोई अलग रणनीति बनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा को लगातार तीन राज्यों में चुनावी नुकसान हुआ लेकिन बावजूद इसके राष्ट्रवाद के एजेंडे पर उनका यकीन कायम है। अब तो ऐसा लगता है जैसे नागरिकता संशोधन कानून को बगैर वक्त गंवाये लागू किये जाने में भी एक बड़ी भूमिका दिल्ली विधानसभा चुनाव की ही रही होगी।

जहां एक तरफ दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काम के बल चुनाव मैदान में है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का पूरा दम शाहीन बाग को मुख्य चुनावी मुद्दा साबित करने में लगा हुआ है। अगर सीएए लागू नहीं होता तो क्या शाहीन बाग की तरफ किसी का ध्यान जाता? क्या ऐसा माहौल दिल्ली में बना होता? दिल्ली भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रामलीला मैदान में धन्यवाद रैली करवाई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने बाकी चीजों के अलावा दिल्ली में पानी का मुद्दा उठाया, लेकिन ऐसा संदेश गया जैसे वो सीएए पर सफाई पेश कर रहे हों और सरकार उसे कुछ दिन के लिए होल्ड भी कर सकती है। मोदी के भाषण के बाद ही चर्चा होने लगी कि एक ही मुद्दे पर अमित शाह और मोदी की बातों में फर्क क्यों समझ में आ रहा है।

फ्रंट सीट पर अमित शाह

फिर अमित शाह मैदान में उतरे और घोषणा की कि नागरिकता संशोधन कानून लागू होकर ही रहेगा और उसके तत्काल बाद ही कानून लागू करने को लेकर अधिसूचना भी जारी हो गई। अभी तो ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के प्रचार के मामले में फिलहाल बैकसीट पर हैं और फ्रंट सीट पर अमित शाह हैं। अमित शाह दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए रोज रैलियां कर रहे हैं। अमित शाह की रैलियां चाहे जितनी भी हों, भाषण में कुछ ही शब्द घूमते हैं और मतलब सीधा जुड़ता है राष्ट्रवाद से। शुरू में केजरीवाल और उनके साथियों को घेरने के लिए भाजपा कन्हैया कुमार के नाम का इस्तेमाल करती थी और अब शरजील इमाम।

अमित शाह एक रैली में कहते हैं कि शरजील को हमने पकड़ लिया है पर उन पर केस चलाने की परमीशन नही देंगे ये। कन्हैया और उमर खालिद, केजरीवाल के क्या लगते हैं? सीपीआई नेता और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे, कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह के केस में दिल्ली सरकार की भूमिका को लेकर लगातार भाजपा हमलावर रही है। शरजील के मामले में भी उसी लाइन को आगे बढ़ाया जा रहा है। बातों के बीच ही अमित शाह चर्चा को शाहीन बाग से भी जोड़ देते हैं और कहते हैं कि दिल्ली में दंगे हुए और सिसोदिया कहते हैं कि हम शाहीन बाग के साथ हैं। अमित शाह के ही रास्ते पर सांसद प्रवेश वर्मा अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी तक कह देते हैं। हालांकि इस पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई की और उन पर प्रचार का बैन लगाया।

सीएए न होता तो शाहीन बाग भी नहीं होता

देखा जाये तो दिल्ली में भाजपा के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। दिल्ली में बताने के लिए भाजपा के पास कोई उपलब्धियां नहीं है। क्योंकि पिछले 12 सालों से दिल्ली एमसीडी में भारतीय जनता पार्टी है और काम के हिसाब में वो भी उठता। ऐसे में भाजपा के पास शाहीन बाग ही बेस्ट ऑप्शन रहा और अमित शाह और उनके साथी उसी को भुनाने की हर संभव और असंभव कोशिश कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के खिलाफ 15 दिसंबर से ही दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में विरोध प्रदर्शन हो रहा है जहां प्रदर्शनकारी 24 घंटे डटे हुए हैं और उनमें मुस्लिम महिलाओं की तादाद ज्यादा है।

भाजपा के नेता तरुण चुघ ने शाहीन बाग को शैतान बाग बताया है और दावा कर रहे हैं कि हम लोग दिल्ली को सीरिया नहीं बनने देंगे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो एक रैली में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो…’ के नारे भी लगवा डाले। प्रवेश वर्मा तो अनुराग ठाकुर से भी दो कदम आगे नजर आए, दिल्ली में कश्मीर जैसी स्थिति बन रही है… वहां पर बैठे लाखों लोग आपके घर में घुस जाएंगे और मां-बहनों का रेप करेंगे… हत्या कर देंगे।

लेकिन अगर सीएए लागू नहीं होता तो क्या शाहीन बाग में लोग इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहे होते? और अगर लोग वहां प्रदर्शन नहीं कर रहे होते तो क्या भाजपा नेताओं को शाहीन बाग को चुनावी मुद्दे के तौर पर पेश करने का मौका मिला होता? क्या फिर भाजपा को राष्ट्रवाद का एजेंडा बनाने का मौका मिलता?

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.