UP में निषादों का साथ पाकर जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से मैदान में उतर गई है। एक बार फिर से सत्ता में आने का सपना लिए भाजपा अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। इसके लिए सबसे बड़ा कदम लिया गया जिसमें केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों का भी वापिस ले लिया जो कि एक साल से सरकार के लिए गले की हड्डी बने हुए थे। इतना ही नहीं भाजपा जीत का परचम लहराने के लिए सियासी समीकरणों को भी मजबूत करने में जुटी है। इसके लिए अलग अलग जातियों को अपने साथ करने की कोशिश कर रही है।
भाजपा फिलहाल निषाद समाज (Nishad samaj) की अहमियत को समझ चुकी है और लिहाजा चुनाव से पहले निषाद पार्टी के साथ हाथ मिला लिया है। लेकिन चुनावी मैदान में उतरने से पहले भाजपा की सहयोगी पार्टी अपनी मांगों को लेकर दबाव बना रही है। निषाद हिंदू धर्म से संबंधित एक जाति है, जो बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। उत्तर प्रदेश में निषाद शब्द 17 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें यूपी की पहले की समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा अनुसूचित जाति की स्थिति के लिए प्रस्तावित किया गया। हालांकि ये प्रस्ताव जो वोटबैंक की राजनीति से संबंधित है और अतीत में बनाया गया, इस पर अदालतों ने रोक लगा दी।
साल 2011 की जनगणना (census calculation 2011) के आधार पर उत्तर प्रदेश में निषाद समाज का वोट करीब 18 फीसदी है और 165 उत्तर प्रदेश विधान सभा सीट निषाद बाहुल्य हैं जिसमें प्रत्येक विधानसभा में 90 हजार से एक लाख तक वोटर हैं और बाकि विधानसभा में 25 हजार से 30 हजार तक वोटर है। भदोही सदर में करीब 65 हजार निषाद समाज का वोट है, जनपद भदोही के विधानसभा जौनपुर में 1 लाख 25 हजार निषाद मथुआ समाज का वोट हैं। औराई विधानसभा जनपद भदोही में 85 हजार निषाद मथुआ समाज का वोट हैं। वही हंदीआ विधानसभा 95 हजार निषाद समाज का वोट है।
निषाद विभिन्न समुदायों को निरूपित करते हैं, जिनके पारंपरिक व्यवसाय जल-केंद्रित रहते हैं, जिनमें रेत ड्रेजिंग, नौका विहार और मछली पकड़ना शामिल है। साल 1930 के दशक के बाद से इन समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले विभिन्न जाति संगठनों ने इन सभी समुदायों को छत्र शब्द निषाद के तहत एकजुट करने के केंद्रीय उद्देश्य के साथ सम्मेलन आयोजित करना शुरू कर दिया। पहले इन समुदायों को सबसे पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्थिति में वो अनुसूचित जातियों के अधिक करीब थे।
राष्ट्रीय निषाद संघ, निषाद कल्याण सभा, महाराजा निषादराज गुह्य स्मारक समिति जैसे संगठन उत्तर प्रदेश में स्थित कुछ संगठन थे जो इन जाति समूहों को एकजुट करने के लिए कई एकता रैली (एकता सम्मेलन) की मेजबानी कर रहे थे। केवट वो थे जिन्होंने भगवान राम को अपनी नाव पार कराने में मदद की थी। निषाद पार्टी के नाम पर ये समुदाय अब एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत दिखा रहा है और इसके साथ ही ये देखने का भी प्रयास किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में 18-20 प्रतिशत वोट देने वाला ये समुदाय UP में निषादों का साथ क्या बीजेपी के लिए वरदान साबित होगा ?
निषाद समुदाय के लोगों का कहना था कि जो कोई भी निषाद की नाव पर बैठता है वो निश्चित रूप से पार हो जाएगा। लोगों का कहना है कि हम उन लोगों को गले लगाएंगे जो हमारी समस्याओं का समाधान करेगा। लोगों ने कहा कि UP में निषादों का साथ देने वाली भाजपा को याद रखना चाहिए कि निषादों ने राम और निषाद पार्टी ने साल 2017, 2014, 2019 में मदद की थी। अब अगर हमने मदद की है, तो हमारे सभी सामाजिक मुद्दों को हल करने में भी सहूलियत मिले ताकि सम्मानजनक जीवन जी सके।
कुछ लोगों का कहना है कि हम मछुआरों का सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण और नदी का है और इसी को लेकर हमलोग भाजपा के साथ हैं। अगर भाजपा हमारे मुद्दे का समाधान करती हैं तभी हम उनके साथ रहेंगे।