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मोदी जी, मैं घर जाने की चाह में सड़क पर मर जाऊं इससे पहले कुछ कहना चाहता हूँ

मोदी जी, घर पहुँचने की चाह में नंगे पांव सड़क पर चलते-चलते मन में ख्याल आया की आपसे कुछ कहना चाहता हूँ. जब आप पहली बार प्रधानमंत्री बने तो लगा था.
Troll Ambresh Dwivedi 16 May 2020
मोदी जी, मैं घर जाने की चाह में सड़क पर मर जाऊं इससे पहले कुछ कहना चाहता हूँ

मोदी जी,

मैं उन्हीं में से एक हूँ जो रोजाना भूख से तड़पते हुए सड़कों में चलते दिखाई देते हैं. घर पहुँचने की चाह में नंगे पांव सड़क पर चलते-चलते मन में ख्याल आया की आपसे कुछ कहना चाहता हूँ.

मोदी जी, जब आप पहली बार प्रधानमंत्री बने तो लगा था की अब कुछ दिनों में सबकुछ ठीक हो जाएगा. आप कहते थे मैं गरीब परिवार से था और और गरीबों का दुःख दर्द समझता हूँ. उस समय मन में बहुत ख़ुशी हुई. लेकिन आज के हालत देखकर एक बता दूं कि भले ही आप गरीब परिवार से हो लेकिन मोदी जी आप गरीबों का दुःख नहीं समझते हैं ये बात मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ. मान लिया दुनियाभर में ये बीमारी फैली है और ये भी माना जा सकता है कि जब तक इसका इलाज नहीं आता तो आप भी कुछ ख़ास नहीं कर सकते. लेकिन मोदी जी भूख का इलाज तो बहुत पहले आ चुका है. उसकी दवाई तो बहुत पहले बन चुकी है. फिर भी मेरे आसपास और हमारे साथ के मजदूर घर जाने की चाह में सड़क पर भूखे मर रहे हैं. इन्हें तो बचा सकते थे आप ना.

चार बच्चा लोगों को गांव में छोरकर हम शहर में आए थे पईसा कमाने लेकिन आज खत्म होने की कगार पर आ गए हैं. बच्चा सब पूछता है कि हम घर कब आएँगे और हम उन्हें अब नहीं बता सकते की कब घर पहुंचेगे. आज चौथा दिन है पैदल चलते हुए मोदी जी, कई सारा टीवी वाला लोग आता है और पूछता है कह जाना है तो अपने गांव का नाम बता देते हैं. आगे जाते हैं तो पुलिसवाला रोककर वापिस जाने को कह देता है. थोडा हाँथ गोर जोड़ते हैं तो मान जाता है शायद समझता है ऊ सब हम लोगों का दुःख दरद.

अब जा रहे हैं मोदी जी अपने घर. अपने गांव. सोचे तो नहीं थे लेकिन अब मन बना लिए हैं की कभी नहीं लौटेंगे. काहे की अब यकीन हो गया है की अगर अब देश में ऐसा कुछ हुआ तो फिर ऐसे ही पैदल चलना पड़ेगा. जिन्दा रहे और घर पहुंचे तो लड़का सब के साथ गांव में मजूरी करके पेट चला लेंगे. हजार किलोमीटर पैदल चलने से अच्छा है कि गांव में ही रह जाएं.

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हम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है लेकिन कभी कभार टीवी देखते हैं तो आप दिखाई देते हैं. टीवी वाला लोग कहता है कि आप देश से गरीबी मिटा देना चाहते हैं. लेकिन मोदी जी लगता है आप हम गरीबों को मिटाना चाहते हैं. एक ठो गाड़ी दिलवा दिए होते तो हम ख़ुशी-ख़ुशी घर चले जाते और जब सब ठीक हो जाता तो लौट आते. लेकिन अब नहीं. अब नहीं आएँगे मोदी जी. और अपने गांव का बच्चा लोग सबसे कहेंगे की अब कमाने के लिए शहर नहीं जाना. नहीं तो झोरा उठाए हुए ऐसे ही हजारों किलोमीटर पैदल चलते रहोगे और कोई पूछेगा भी नहीं.

बस मोदी जी यही कहना चाहते थे की बीस लाख करोड़ में जो हमारा हिस्सा होगा उसे काटकर उससे हमारा भाई लोगों को खाना खिला दीजिएगा. कम से कम वो लोग तो भूखा नहीं रहेगा. कहे की चार दिन से हमारा आदत सा हो गया अब भूखा रहने का. ठीक है मोदी जी इतना ही कहना था. अब ज्यादा बोलने का हिम्मत नहीं है. मुंह सूखने लगा गया. परनाम मोदी जी

 सड़क पर चलता हुआ एक मजदूर

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.