
बनारस आज परिचय का मोहताज नहीं है ,देश क्या विदेश में भी इसकी धाक जम चुकी है। यहाँ के घाट ,मंदिर , बनारसी साड़िया और यहाँ की मिठाईया और यहाँ की मलइयो कौन नहीं जनता होगा ,और जो नहीं जानता होगा आज जान जायेगा।
यहाँ की जलेबी ,संकट मोचन मंदिर का लाल पेड़े , रामनगर की लस्सी आदि अब बाकी शहरों में भी मिलनी शुरू हो गयी है ,लेकिन अभी भी यहाँ की मलइयो कही बहुत ज्यादा जगह नहीं मिलती है बजाय अपने बनारस के, शायद इसको बनाने में बहुत मेहनत और सब्र सभी के बस की बात नहीं है।
यह भी ध्यान देने वाली बात है की सिर्फ जाड़े के मौसम में ही ,वो भी सिर्फ 3 महीनो में ही यह दूध का पेय उपलब्ध हो पाता है। सुबह से लेकर और दोपहर से पहले तक ही आप इसका आनंद ले सकते है।
कच्चे दूध को कड़ाही में खौलाने के बाद रात भर इस दूध को खुले आसमान के नीचे औष के बीच रखा जाता है ,फिर अगली सुबह इसको मथा जाता है, ताकि झाग बन सके, केसर भी मिलाया जाता है, ताकि ये केसर का रंग ले ले। और फिर मिटटी के कुल्हड़ में इसको सर्व किया जाता है तो फिर तो इसका स्वाद बताया नहीं जा सकता। इसको खाया और पीया जा सकता है।
कुछ लोगो ने मलइयो को क्रीम बेस देने और औष की जगह बर्फ भी प्रयोग किया लेकिन वो बात नहीं बन सकी। यह एक मौसमी आइटम है और यह मौसम में ही मज़ा देता है। तैयार होने के बाद इसके ऊपर पिस्ता और बादाम की टुकड़े इसकी खूबसूरती और स्वाद दोनों और ज्यादा बड़ा देते है।
अब यह बनारस में हर जगह मिल जाता है ,लेकिन पहले यह पक्के महाल से ही शुरुआत हुई। अब तो लोग इससे पैक करके अपने साथ ले भी जाते है, लेकिन इसे तुरंत खाया जाये तभी मज़ा है,क्योकि देर तक रखने में इसका झाग खत्म हो जाता है जो की इसकी जान है।