कोरोना वायरस का असर अर्थव्यवस्था और नौकरियों पर अब नजर आने लगा है। हालांकि ऐसा पहले से ही माना जा रहा था कि कोरोना का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। लेकिन अब कोरोना वायरस का असर अब गरीबों को और असहाय बना देगा। देश में अप्रैल के पहले हफ्ते में बेरोजगारी दर 23.4 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि मार्च के मध्य में बेरोजगारी की दर 8.4 फीसदी थी। बेरोजगारी की सबसे ज्यादा मार शहरों में हो रही है। शहरों में बेरोजगारी की दर 30.9 फीसदी पहुंच गई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के मुताबिक 5 अप्रैल को खत्म हफ्ते के बाद 6 अप्रैल को जारी आंकड़े में बेरोजगारी में ये बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
भारत के पूर्व चीफ स्टैटिस्टिशियन प्रणब सेन ने कहा है कि लॉकडाउन के केवल दो हफ्तों में ही तकरीबन 5 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी है। कई लोगों को अभी घर भेज दिया गया है। ऐसे में सही आंकड़े मिल पाना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी का दायरा और बढ़ सकता है जो कि कुछ दिनों के बाद दिख सकता है। इतना ही नहीं कोरोना वायरस के संकट और उससे निपटने के लिए जारी किए गए लॉकडाउन के कारण भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों पर इसका असर होगा। इससे उन लोगों की नौकरियों पर और उन लोगों की आमदनी पर असर पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी एक रिपोर्ट साझा की है, जिसमें उसने कहा है कि भारत उन देशों में से एक है जो कि स्थिति से निपटने में अपेक्षाकृत कम तैयार है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ ) की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के कारण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। भारत, नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन के कारण अंसगठित क्षेत्र में काम करनेवाले कामगारों पर ज्यादा असर पड़ा है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 90 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में करीब 40 करोड़ लोगों के रोजगार और कमाई प्रभावित होने की आशंका है।
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इस परिस्थिति का सबसे ज्यादा असर भुखमरी के तौर पर हो सकता है और इसके चलते खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी में काफी बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। दरअसल ये एक हकीकत है कि हर आपदा में गरीब और मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसलिए कोरोना जैसी दुर्भाग्यपूर्ण आपदा से निपटने के लिए बनाए जाने वाली रणनीति में इसका खास ध्यान रखना होगा। हालांकि ये रणनीतिकारों के लिए भी चुनौती भरा वक्त है। लॉकडाउन के चलते आर्थिक वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
माना जा रहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण और इसकी रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर कई दशक के निचले स्तर 1.6 प्रतिशत पर आ सकती है। कोरोना वायरस संकट से पहले भी नरमी के चलते वित्त वर्ष 2019-20 में देश की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर पांच प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। महामारी के बाद आर्थिक हालत और बिगड़ी ही है। कई विश्लेषक कोरोना वायरस को देखते हुए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटा रहे हैं। कुछ विश्लेषकों ने तो पहली तिमाही में जीडीपी में गिरावट तक की संभावना व्यक्त की हैं।