
ईश्वर न करें कि ऐसा हो फिर भी संकेत ऐसे ही मिल रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुंच चुका है. विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों को असुरक्षित मानते हुए अपने पैसे तेजी से निकाल रहे हैं. भारतीय शेयर बाजार में हाहाकार है. रुपया भी रिकाॅर्ड गिरावट दर्ज कर रहा है. कंपनियों के प्लांटों में ताले लगते जा रहे हैं. लाखों लोग अपनी नौकरियां खो चुके हैं.
भारत में मंदी की आहट भांप कर विदेशी निवेशक भारत में पैसे लगाने से बच रहे हैं. बद से बदतर हाल में आॅटो सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर है. एक तो अंतरराष्ट्रीय कारण और उधर सरकार के असहयोग से भारतीय बाजार दबाव में है. डाॅलर लगातार मजबूत होता जा रहा है और रुपया लगातार गिरता जा रहा है.
पिछले 05 जुलाई को केंद्र की मोदी सरकार ने अपना बजट पेश किया, उसके बाद से बाजार में अस्थिरता और अराजकता का माहौल है. इसकी वजह से ही सेंसेक्स और निफ्टी लगातार लाल निशान की ओर बढ़ता जा रहा है. सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि सरकार इन सब पर किसी भी तरह की कोई कोशिश करती हुई नहीं दिखाई देती.
भारतीय शेयर बाजार में लगातार बिकवाली बढ़ती जा रही है यानी कि निवेशक अपने पैसे भारतीय बाजारों से निकाल रहे हैं. उन्हें लगता है कि भारतीय बाजार में पैसे लगाना जोखिम भरा काम होगा क्योंकि वर्तमान सरकार की आर्थिक नीतियों का कोई अता पता नहीं है कि वो किस दिशा में भारतीय अर्थव्यवस्था को ले जाना चाहते हैं. इसी विदेशी पूंजी के देश से बाहर निकलने का कुप्रभाव रुपया पर देखने को मिल रहा है. इस गुरुवार को रुपया साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. एक ही दिन में रुपया 25 पैसे कमजोर होकर 71.81 रुपये पर बंद हो गया.
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि निर्यात गिरने और विदेशी पूंजी छोड़ कर बाहर निकलने की वजह से रुपया 6 महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है. निवेशक अब भारतीय बाजार में पूंजी निवेश करने को तैयार नहीं है. इसका खामियाजा भारतीय अर्थव्यवस्था को भुगतने को तैयार रहना होगा.
देश राष्ट्रीय संकट के दौर से गुजर रहा है लेकिन मीडिया में इस बात की न तो चर्चा है और नही चिंता. किसी भी न्यूज चैनल को खोल कर देख लिजिए, भारत की आर्थिक बदहाली की कोई खबर कही नहीं है. हां, पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की खबरें जरुर दिखाई जा रही हैं. भारतीय मीडिया जिस प्रकार से सभी समस्याओं को छोड़कर सरकार की भक्ति में लीन है, इसका खामियाजा भारत की युवा पीढ़ी को उठाना पड़ेगा क्योंकि इन सारी समस्याओं का सीधा कनेक्शन रोजगार से है.
अगर सरकार ने वक्त रहते इन आर्थिक समस्याओं पर काबू नहीं पाया तो आगे आने वाले कई सालों तक बेरोजगारी लगातार बढ़ती जाएगी क्योंकि मोदी सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में नौकरी नहीं दे सकी. बेरोजगारी 45 साल के रिकाॅर्ड स्तर पर है, इसके बाद सभी कंपनियां बड़े पैमाने पर छंटनी कर रही हैं. कई कारखानांे में उत्पादन बंद कर दिया है. ऐसा लगता है जैसे भारतीय मीडिया की इसकी कोई खबर नहीं है.