पिछले 15 महीनों से लोगों की जिंदगी रुक सी गई है, हर तरफ सिर्फ आंसू, डर, मायूसी, उदासी छाढ हुई है। लोगों की जिंदगी पल भर में खत्म हो जा रही है। दुनियाभर में कोरोना वायरस ने अपना विकराल रूप लिया हुआ है। हर किसी की जुबां पर सिर्फ क ही सवाल है कि कब होगा ये सब खत्म? इस वायरस से कब लोगों को छुटकारा मिलेगा? कब लोग बिना मास्क के खुली हवा में सांस ले पाएंगे? कब तक लोगों को एक दूसरों से दूरी बना कर रखनी है? कब बेखौफ घरों से बाहर निकल कर अपनी पुरानी जिंदगी में उतर सकते हैं?
इन सब सवालों के जवाब अभी किसी के भी पास में नहीं है। लेकिन इस कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हथियार जरूर मिल रहे हैं। धीरे-धीरे डॉक्टर्स, साइंटिस्ट इस वायरस रूपी दानव को खत्म करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। वहीं डॉक्टर अस्पताल में रोज अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं कि किसी इंसान की जान ना जाए। दवाईयां, वैक्सीन अभी भी बन रही हैं और कुछ बाजार में उपलब्ध हैं, जिससे रोज लोगों को हिम्मत मिल रही है।
डॉक्टर्स, साइंटिस्ट के साथ-साथ आम आदमी भी अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभा रहा है। वो इंसानियत का धर्म निभा रहा है। इंसान को आज इंसान ही बचा रहा है, कोई किसी अंजान को प्लाज्मा दे रहा है और उसकी जान बचा रहा है। तो कोई सोशल मीडिया पर किसी के लिए बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन का बंदोबस्त करा रहा है। आज लोगों में अगर हिम्मत बची है तो उसके पीछे लोगों के अंदर बची इंसानियत बहुत बड़ी वजह है।
कोरोना काल के इस मुश्किल दौर में जहां लाशें नदियों में तैर रही है। लोगों के रिश्तेदार और दोस्त संक्रमितों का अंतिम संस्कार करने से भी डर रहे हैं। उसी दौर में कुछ लोग अपने फर्ज को पूरी तरह से निभा रहे हैं। ये फर्ज इंसानियत का है। और इसी को आगे बढ़ा रहा है सवाई माधोपुर का एक युवा, जो समाज के लिए मिसाल बनकर उभरा है।
सवाई माधोपुर नगर परिषद के वार्ड नम्बर 34 से पार्षद असीम खान ने मानवता की सेवा की एक मिसाल कायम की है। 30 साल के असीम खान जिला अस्पताल में कोरोना संक्रमितों की सेवा में दिन और रात काम कर रहे हैं। असीम जरूरतमंदों को खाना, मरीजों के लिए जिला अस्पताल में बेड से लेकर ऑक्सीजन सहित दवाईयां भी उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं।
कुछ दिन पहले हरीश माहेश्वरी की बहन विद्या देवी का कोरोना से निधन हो गया था। वो कई दिनों तक अपैक्स सेविका में भर्ती थी। हालत बिगड़ने पर उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया जहां पर उन्होंने अपना दम तोड़ दिया। जिसके बाद उनके परिजनों ने पार्थिव देह के वीडियों कॉल पर ही अन्तिम दर्शन करवा दिए।
इसी के साथ खेरदा शमशान में उनके अंतिम संस्कार का निर्णय लिया गया, लेकिन कोरोना के डर और कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से उनके परिचित और रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार से खुद को दूर कर लिया। असीम बताते हैं की हरीश अपनी बहन के जाने के गम और चिन्ता में डूबे थे। इसी समय असीम खान ने उन्हें सम्बल दिया। उनके दो अन्य परिजनों के साथ पीपीई किट पहन कर बहन का अन्तिम संस्कार भी करवाया। असीम इसी तरह से हर रोज मानवता की सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं और उन्हें अपने कामों के लि सोशल मीडिया पर लोगों की ओर से खूब सराहा जा रहा है।