Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

असहमति को अपराध बनाने का काम करता है देशद्रोह कानून

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धमकी देते हुए कहा कि जो लोग आजादी के नारे लगाते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। योगी आदित्यनाथ की मानें तो ये नारा लगाना देशद्रोह हैं
Information Taranjeet 13 February 2020
असहमति को अपराध बनाने का काम करता है देशद्रोह कानून

22 जनवरी को कानपुर की रैली में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धमकी देते हुए कहा कि जो लोग आजादी के नारे लगाते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। योगी आदित्यनाथ की मानें तो ये नारा लगाना देशद्रोह हैं। अगर बात करें भारतीय दंड संहिता की धारा 124A की जिसके तहत देशद्रोह का मतलब कोई भी आदमी अगर देश के खिलाफ लिखकर, बोलकर, संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करता है या फिर नफरत फैलाता है या ऐसी कोशिश करता है तब मामले में आईपीसी की धारा-124 ए के तहत केस बनता है। लेकिन भारत में असहमतियों को दबाने के लिए प्रशासन अक्सर राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल करता है। पिछले महीने सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर इस धारा के तहत कई मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

असहमति का मतलब देशद्रोह

पिछले कुछ सालों में प्रदर्शनकारियों पर राजद्रोह का मुकदमा लगाने का चलन बढ़ा है। साल 2017 और 2018 में झारखंड में राजद्रोह के 19 मामले दर्ज किए गए। इनमें पत्थलगढ़ी आंदोलन में शामिल 10,000 आदिवासियों के नाम भी थे। वहीं साल 2012 में तमिलनाडु के तिरुनेवेली जिले में 8000 लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था। इन लोगों ने कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों के अलावा इस कानून से छात्रों, एक्टिविस्ट, आर्टिस्ट, बौद्धिक वर्ग के लोग और दूसरे नागरिकों को भी निशाना बनाया जाता है। अंग्रेजों के दौर में इस कानून का इस्तेमाल अक्सर असहमति दबाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग असहमति रखने वाले लोगों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सरकारी की आलोचना करने वालों के खिलाफ किया जाता था और आज भी ऐसे ही किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई अहम फैसलों में साफ किया है कि राजद्रोह केवल तभी माना जाएगा जब हिंसा हुई हो या काम के पीछे कानून व्यवस्था खराब करने का उद्देश्य रहा हो। फिर भी सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया जा रहा है। अक्टूबर 2019 में 49 कलाकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा देश में हो रही मॉब लिंचिंग पर प्रधानमंत्री को खत लिखने की वजह से उनपर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।

प्रताड़ना का हथियार

NCRB के हालिया डाटा से पता चला है कि देशद्रोह के मामलों में खासतौर पर साल 2014 में मोदी सरकार आने के बाद बड़ी संख्या में उछाल आया है। साल 2016 से साल 2018 के बीच भारत में राजद्रोह के मामले दोगुने हो गए हैं। साल 2016 में इस धारा के तहत 35 केस दर्ज किए गए थे, जो 2018 में बढ़कर 70 हो गए। देशद्रोह इसलिए प्रताड़ना का प्रभावी हथियार है, इसलिए नहीं कि इसमें आरोपी का दोषी साबित होना आसान है, दिक्कत ये है कि इस धारा के तहत पुलिस के पास बहुत सारी शक्तियां हैं। राजद्रोह को संज्ञेय अपराध माना जाता है। जिसका मतलब है कि पुलिस इसमें बिना वारंट के गिरफ्तारी और मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बिना जांच शुरू कर सकती है। इसमें शिकायतकर्ता और आरोपी किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते। यह गैर-जमानती भी है।

आपराधिक मामले की प्रक्रिया ही अपने आप में प्रताड़ना है। इसका पता हमें कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के खिलाफ साल 2012 में प्रदर्शनकारियों पर लगे राजद्रोह के मामले से चलता है। एफआईआर होने के आठ साल बाद भी ये मामले कोर्ट में लंबित पड़े हैं। इस बीच जिन लोगों पर ये केस किया गया था, उन्हें आपराधिक मामले होने के चलते दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। वो लोग नौकरियां करने गांव से बाहर नहीं जा सकते, क्योंकि उन्हें हर महीने होने वाली सुनवाई में हाजिर होना पड़ता है। छात्रों, पत्रकारों और सोशल एक्टिविस्टों को किस तरह राजद्रोह के कानून से परेशान किया जाता है, इस मुद्दे पर एनजीओ कॉमन कॉज ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लगाई थी। इसमें मांग की थी कि राजद्रोह का मामला दर्ज करने से पहले पुलिस डीजीपी या कमिश्नर से अनुमति ले, जो उन्हें इस बात का प्रमाण दें कि संबंधित एक्ट से हिंसा या कानून व्यवस्था प्रभावित हुई है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस को जांच में केदारनाथ मामले में दी गई गाइडलाइन का पालन करना चाहिए।

इस कानून को 1870 में अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया था और ब्रिटेन में 1977 में राजद्रोह को खत्म करने की सलाह दी गई थी और साल 2009 में इसे खत्म भी कर दिया गया। लेकिन हम आज भी इसे मान रहे हैं और सरकार का सबसे बड़ा हथियार बन कर रह गया है। जब तक राजद्रोह का ये कानून बरकरार रहता है, तब तक किसी नागरिक के पूरे अधिकारों को मान्यता नहीं मिल सकती है और सरकार उसे अपनी आलोचना और असहमति के खिलाफ इस्तेमाल करती रहेगी।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.