Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

आपकी नींद उड़ा देगा इस झील में तैरते नरकंकालों का रहस्य

हिमालय में 16 हजार 499 फीट की ऊंचाई पर स्थित और चारों ओर से बर्फ व ग्लेशियर से घिरी इस झील का नाम रूपकुंड झील है। जो उत्तराखंड के चमोली में स्थित है।
Information Anupam Kumari 28 November 2019

भारत में ऐसे कई झील हैं, जो सर्दियों के मौसम में बर्फ से ढक जाती हैं और जब गर्मी आती है तो फिर से पानी वाली झील बन जाती हैं, जिनकी खूबसूरती का आनंद लेने और इन झील में नौकायान करने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां पहुंचते हैं, मगर भारत में एक ऐसी झील भी है, जो सर्दियों में जमने के बाद गर्मी में जब पिघलती है तो इसमें सैकड़ों नरकंकाल एक साथ तैरते हुए दिखने लगते हैं। यह एक ऐसा दृश्य होता है, जिसे देखने के बाद किसी भी के मुंह से चीख निकल जाए। इस लेख में हम आपको इसी झील और इस झील में दिखने वाले नरकंकालों के रहस्य से अवगत करा रहे हैं।

आजादी से पहले मिली थी जानकारी

झील को रूपकुंड झील के नाम से जाना जाता है जो कि उत्तराखंड के चमोली में स्थित है और बेहद गहरी भी है। हिमालय में 16 हजार 499 फीट की ऊंचाई पर स्थित और चारों ओर से बर्फ व ग्लेशियर से घिरी इस झील को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों का तांता-सा लगा रहता है। दरअसल सबसे पहले इस झील के बारे में 1942 में पता चला था। एचके माधवल को इसे ढूंढ़ निकालने का श्रेय जाता है, जो नंदा देवी गेम रिजर्व में रेंजर थे। नेशनल ज्योग्राफी की टीम भी जानकारी मिलने पर यहां पहुंची तो उन्होंने यहां से 30 और कंकाल ढूंढ़ निकाले। पुरुषों और महिलाओं दोनों के ये नरकंकाल हैं। साथ में हर उम्र के लोगों के हैं। यही नहीं, कुछ के साथ तो गहने-जेवरात और चप्पल तक मिले हैं। कुछ के साथ बाल और चमड़े आदि भी बरामद हुए हैं। सिर पर चोट के भी निशान इनके सिर पर हैं।

जोरावर सिंह और जापानी सैनिकों वाली मान्यता

झील के बारे में तो कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से पहली के मुताबिक वर्ष 1841 में तिब्बत युद्ध के बाद लौटने के क्रम में हिमालय में रास्ता भूल जाने और मौसम बेहद खराब होने की वजह से यहां फंसकर भारी ओलों की बारिश के कारण कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह के साथ उनके सैनिकों ने अपने प्राण गंवा दिये थे और ये नरकंकाल उन्हीं के हैं। एक और कहानी के अनुसार भारत में घुसने की कोशिश करते जापानी सैनिकों के ये नरकंकाल हैं, हालांकि बाद में हुए शोध में पता चला कि ये सैकड़ों साल पुराने हैं और जापानी सैनिकों की नहीं हो सकते।

माता नंदा देवी से जुड़ी मान्यता

उपरोक्त दो मान्यताओं के अलावा भी इस झील में तैरते नरकंकालों को एक और मान्यता है, जिसे यहां के स्थानीय निवासी सच मानते हैं। यह मान्यता माता नंदा देवी से जुड़ी हुई है। इसके मुताबिक एक बार राजा जसधवल जो कि कन्नौज के शासक थे वे तीर्थ यात्रा पर गये हुए थे। उनके साथ इस दौरान उनकी गर्भवती पत्नी रानी बलाम्पा भी थीं। हिमालय पर्वत पर स्थित माता नंदा देवी के मंदिर में उन्हें माता का दर्शन करना था। माता नंदा देवी का दर्शन हर 12 साल में करने की उस वक्त बड़ी महत्ता हुआ करती थी। यही वजह थी कि पूरे गाजे-बाजे के साथ राजा जसधवल यात्रा के लिए निकले हुए थे। लोगों ने उन्हें बहुत रोका, मगर राजा ने किसी की एक न सुनी। पूरे जत्थे के साथ ढोल-नगाड़े बजवाते हुए राजा रानी के साथ यात्रा पर आगे बढ़ गये। कहा जाता है कि इससे माता नंदा देवी को क्रोध आ गया, जिस वजह से बर्फीला तूफान आया और ओलों की भयानक बारिश में राजा-रानी के साथ सभी झील में समा गये। हालांकि, कभी भी इस घटना की आधिकारिक तौर पर किसी ने पुष्टि नहीं की।

वैज्ञानिकों की थ्योरी

एक शोध में पता चला कि ट्रेकर्स का समूह यहां अचानक बर्फीले तूफान की चपेट में आ गया था। करीब 35 किलोमीटर तक बचने की कोई जगह नहीं होने की वजह से ओलावृष्टि में इनकी दर्दनाक मौत हो गई थी। नरकंकालों के एक्स-रे के बाद सिर और हड्डियों आदि में फ्रैक्चर मिलने से ओलों की थ्योरी दी गई। यह भी माना गया कि 800 AD के पहले के हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि रूपकुंड झील से जो 200 नरकंकाल मिले हैं, वे आदिवासियों के हो सकते हैं, जो यहां नौवीं शताब्दी में रहे होंगे। हालांकि, अब वैज्ञानिकों ने अपने शोध में कंकाल के दो समूह पाये, जिनमें से एक में एक ही परिवार के सदस्य और दूसरे में अलग समूह के छोटे कद के लोग मिले। वैज्ञानिकों ने यही बताया कि हथियार या किसी लड़ाई के कारण नहीं, बल्कि विशाल ओलों की वजह से इनकी मौत हुई होगी। रूपकुंड झील के रहस्य को लेकर कहानियां तो कई प्रचलित हैं, मगर रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक इसे देखने के लिए यहां जरूर पहुंचते हैं।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान