Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

श्रीनगर लेने निकला था पाकिस्तान‚ 56 किमी पहले इन्होंने निकाला दम

कश्मीर के श्रीनगर पर पाकिस्तानी आवाम आज भी नजरे गड़ाए बैठी है ,लेकिन भारत के जाबाज़ सैनिको के होते हुए पाकितान का ये सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।
Information Anupam Kumari 25 July 2020
श्रीनगर लेने निकला था पाकिस्तान‚ 56 किमी पहले इन्होंने निकाला दम

आजादी तो भारत को मिल गई थी अंग्रेजों के चंगुल से 1947 में। पाकिस्तान (Pakistan) भी एक अलग मुल्क बन चुका था और आजाद था। फिर भी आजादी का मजा न तो भारत ले पा रहा था और न पाकिस्तान। कश्मीरके श्रीनगर पर पाकिस्तान की नजरें टिकी हुई थीं। उम्मीद थी उसे कि मोहम्मद अली जिन्ना को कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ ही आयेगा।

हालांकि‚ महाराज हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) कश्मीर के भारत में विलय के लिए तैयार थे। ऐसे में पाकिस्तान गुस्से में था। उसने ऑपरेशन गुलमर्ग (Operation Gulmarg) शुरू कर दिया। आजादी के बाद यह भारत और पाकिस्तान के बीच पहला संघर्ष था। जिस तेजी से भारतीय वायु सेना ने जवाब दिया‚ पाकिस्तान थर्रा उठा।

आदिवासियों का बनाया लश्कर

पाकिस्तान ने मेजर जनरल अकबर खान को ऑपरेशन गुलमर्ग की कमान सौंपी थी। पाकिस्तानी सेना को युद्ध में भेजने के बजाय पाकिस्तान ने दूसरा रास्ता अपनाया। उत्तर पश्चिमी प्रांत के हजारों आदिवासियों को भड़का कर और उकसा कर उनका लश्कर बना दिया। उन्हें भेज दिया लड़ने के लिए। ऐसा इसलिए किया ताकि बाद में वह इनकार कर सके कि पाकिस्तानी सेना इसमें शामिल थी।

वैसे‚ पाकिस्तान की यही चाल हमेशा देखने को मिलती रही है। नेतृत्व ऐसे करीब 20 लश्करों का पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने ही किया‚ मगर वे सिविलियन ड्रेस में थे। श्रीनगर पर कब्जा करना और हरि सिंह को पाकिस्तान में जाने के लिए विवश करना इसका उद्देश्य था।

जब भारत को हुई खबर

पाकिस्तान के लश्कर दो ओर से दक्षिण में जम्मू सेक्टर और उत्तर में लद्दाख के लेह की ओर बढ़े। हैरानी वाली बात ये रही कि 22 अक्टूबर‚ 1947 को जब वे मुजफ्फराबाद पहुंचे‚ तब भारत को खबर हुई। यहां लश्करों ने खूब लूटपाट की। महिलाओं की इज्जत लूटी। उरी पर भी 24 अक्टूबर को हमला बोला।

ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह की अगुवाई में लोहा लिया गया‚ मगर वे शहीद हो गये। श्रीनगर से 56 किलोमीटर पहले बारामूला में भी लश्करों ने खूब लूट मचाई। नरसंहार किया। महिलाओं के साथ कुकृत्य किये। मिशिनरी ननों के साथ बार–बार बलात्कार किया। अस्पताल लूटा। यहां तीन–चार दिनों की देरी से श्रीनगर शायद बच गया।

मदद की लगाई गुहार

बर्बादी को देखते हुए महाराजा हरि सिंह ने भारत से 24 अक्टूबर को मदद की गुहार लगाई। औपचारिक रूप से सेना भेजने में भारत ने असमर्थता जताई। इसके बाद 26 अक्टूबर‚ 1947 को भारतीय संघ में शामिल होने के समझाैते पर महाराजा हरि सिंह ने हस्ताक्षर कर दिये। भारतीय सेना इसके बाद श्रीनगर को बचाने के लिए कूच कर गई।

पहले दल की रवानगी

पालम हवाई अड्डे पर 27 अक्टूबर की शाम 4 बजे 1 सिख (1 SIKH)  बटालियन पहुंची। लाल किले से 13 फील्ड रेजिमेंट के सिख सैनिक भी पहुंचे। डकोटा के लिए इसी दिन शाम 6 बजे कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय की अगुवाई में दल रवाना हुआ।जम्मू से सड़क मार्ग से उन्हें श्रीनगर पहुंचना था।

कैप्टन कमलजीत सिंह के नेतृत्व में एक दल बारामूला की ओर चला। दूसरे दल का नेतृत्व मेजर हरवंत सिंह ने किया‚ जो श्रीनगर शहर की ओर चला। कर्नल राय भी बारामूला की ओर निकले थे। यहां लश्करों का भारी हमला उन्होंने झेला। दुश्मनों के एक धमाके में कर्नल राय शहीद हो गये। अब कमान मेजर हरवंत सिंह के हाथों में थी।

मजबूती से डटे रहे जवान

लगातार हमलों को झेलकर भी 1 सिख बटालियन मजबूती से डटा रहा। इससे श्रीनगर हवाई हड्डे पर अतिरिक्त सैनिकों का उतर पाना मुमकिन हुआ। 1 सिख की दो और कंपनियां उड़ान भरकर पहुंचीं और युद्ध का हिस्सा बन गईं। श्रीनगर की ओर दुश्मनों को इन्होंने बढ़ने से रोक दिया।

पाकिस्तान के एक बड़े हमले को 3 नवंबर‚ 1947 को नेस्तानबूद किया गया। शालटेंग में भी एक सप्ताह के अंदर पाकिस्तानियों को घेरकर भारतीय सेना ने उनके छक्के छुड़ा दिये। एक साल तक भारत की सेना पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेल उनसे अपने कब्जे वाले इलाके छुड़ाती रही।

भारी पड़ा नेहरू का वो कदम

और भी इलाके सेना छुड़ा लेती‚ मगर नेहरू के संयुक्त राष्ट्र का रुख करने से भारत को ऐसा करने से रोक दिया गया। फिर युद्धविराम 31 अक्टूबर‚ 1948 को हो गया। तब भी राज्य का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के ही कब्जे में था। बस यहीं पर नियंत्रण रेखा तब बन गई। यही आज पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है।

1 सिख बटालियन के सैनिकों और अधिकारियों बड़ी जांबाजी दिखाई। इतिहास में ऐसा शायद ही कभी देखने को मिला है। मरणोपरांत महावीर चक्र से लेफ्टिनेंट कर्नल राय को सम्मानित किया गया। इस तरह से भारत की सेना ने श्रीनगर को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचा लिया।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान