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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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सागर से आखिर मरुस्थल में कैसे तब्दील हुआ थार, विज्ञान और धर्म दोनों से जुड़े तार

थार मरुस्थल का नाम तो आपने सुना ही होगा। भारत का सबसे बड़ा मरुस्थल है ये। पश्चिमी राजस्थान में यह मरुस्थल है। बालू ही बालू हैं यहां। रेत के टीले नजर आते हैं।
Information Anupam Kumari 28 November 2020
सागर से आखिर मरुस्थल में कैसे तब्दील हुआ थार, विज्ञान और धर्म दोनों से जुड़े तार

थार मरुस्थल का नाम तो आपने सुना ही होगा। भारत का सबसे बड़ा मरुस्थल है ये। पश्चिमी राजस्थान में यह मरुस्थल है। बालू ही बालू हैं यहां। रेत के टीले हर ओर नजर आते हैं। भले ही यहां सूखा फैला है, फिर भी करोड़ों की तादाद में यहां सीपियां मौजूद हैं। 18 करोड़ साल बीत चुके हैं। यहां विशाल सागर हुआ करता था। नाम था इसका टेथिस सागर।

डायनासोर तक थे

कहा तो जाता है कि डायनासोर तक यहां हुआ करते थे। आज भारत और एशिया जुड़े हुए हैं। हालांकि कभी ये अलग थे। भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक इनके बीच समुद्र हुआ करता था। आज जो बाड़मेर और जैसलमेर का इलाका है, कभी समुद्र हुआ करता था। समय बीता। रेत यहां बनते चले गये। फिर भी एक चीज है कि प्रकृति के निशान यहां मौजूद हैं।

सीपियों और शंखों की गवाही

बड़ी तादाद में सीपियां यहां मिल जाती हैं। शंख भी यहां कई बार मिल जाते हैं। ये सीपियां और ये शंख समुद्र में ही मिलते हैं। सवाल उठता है कि कैसे मान लें कि यहां समुद्र था। उदयपुर में एक संग्रहालय बना हुआ है। बहुत सारे जीवाश्म यहां रखे हुए हैं। ये जीवाश्म इसकी पुष्टि करते हैं। ये जीवाश्म जैसलमेर के हैं। कई जीवाश्म कच्छ से भी मिले हैं। करोड़ों साल पुराने इतिहास को ये कुरेद रहे हैं।

180 करोड़ साल पुराने जीवाश्म

जीवाश्म बहुत पुराने हैं। करीब 180 करोड़ साल पुराने। अधिकतर जीवाश्म समुद्र में पाए जाने वाले जीवों के हैं। पत्थर में ये अब तब्दील हो चुके हैं। इनसे पुष्टि होती है कि थार मरुस्थल में कभी समुद्र बहता था। धरती की संरचनाओं में तरह-तरह के परिवर्तन हुए। इसके फलस्वरूप समुद्र धीरे-धीरे रेगिस्तान में बदलता चला गया।

एक और जीवाश्म मिला है, जो 180 साल पुराना है। जैसलमेर से करीब यह मिला है। किसी पेड़ के जैसा यह लगता है। पेड़ के तने की इसकी आकृति है। इससे लगता है कि सागर के किनारे बहुत सारे पेड़ हुआ करते थे।

द्रुमकुल्य सागर

एक और जीवाश्म कौतूहल पैदा करता है। हाथी के मुंह की तरह यह दिखता है। कहते हैं कि यह 6 करोड़ साल पुराना है। कहते हैं कि द्रुमकुल्य सागर सूखने से यहां मरुस्थल बन गया। भारत में यह फैला था। पाकिस्तान में भी। इसका 90 प्रतिशत हिस्सा भारत में था। राजस्थान, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में इसका फैलाव था। इसे लवण सागर के नाम से भी जाना गया है।

जिक्र पुराणों में भी

पुराणों में भी इसका जिक्र है। कहते हैं भगवान राम भी यहां आये थे। हनुमान आराम से सागर पार कर गये। भगवान राम और वानर सेना फंस गई। फिर भगवान राम ने तीन दिनों तक निर्जला व्रत किया। समुद्र देव ने रास्ता नहीं दिया तो भगवान राम नाराज हो गये। ब्रह्मास्त्र का संधान उन्होंने कर लिए। घबराये समुद्र देव प्रकट हो गये। भगवान राम को विधि का विधान बताया। ब्रह्मास्त्र से समुद्र सूखने से जगत के असंतुलन के बारे में बताया।

भगवान राम का ब्रह्मास्त्र

क्षमा मांगने से भगवान राम शांत हो गये। उपाय पूछा। कहा कि ब्रह्मास्त्र तो साध लिया है। तब समुद्र देव ने द्रुमकुल्य के बारे में बताया। कहा कि बुरे लोग यहां रहते हैं। उनके जल का गलत तरीके से प्रयोग कर रहे हैं। पश्चिम दिशा में रहते हैं वे। उस दिशा में वे छोड़ दें ब्रह्मास्त्र। ताकि हो जाए उनका नाश।

सूख गया सागर

फिर भगवान राम ने डाकुओं की भूमि की ओर ब्रह्मास्त्र साध लिया। कहा कि उनकी पूरी भूमि मरुस्थल में बदल जाए। कहा कि कुछ औषधियां भी विकसित होंगी वहां। ये सुगंधित होंगी। ये दिव्य होंगी। काम आयेंगी वहां के जीव-जंतुओं के। ऐसा ही हुआ। समुद्र सूख गया। मरुस्थल बन गया। आज यही थार मरुस्थल है। भारत का सबसे बड़ी मरुभूमि।

कजाकिस्तान से जुड़े तार

कुछ और भी मान्यताएं हैं भूमि के संबंध में। कुछ कजाकिस्तान के बारे में बताते हैं। कुछ अफगानिस्तान का नाम लेते हैं। हालांकि मरुस्थल तो यहीं है। इसलिए यहां की मान्यता अधिक मजबूत दिखती है। आज का कजाकिस्तान भी कह देते हैं इस जगह को। रामायण काल से जुड़ीं बहुत सी चीजें हैं इस देश में।

वाल्मीकि रामायण कहता है

वाल्मीकि रामायण में इसका जिक्र है। इसके मुताबिक उत्तर दिशा में भगवान राम ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। कजाकिस्तान में इसे किजिलकुम मरुस्थल बना था। लाल रेत किजिलकुम का अर्थ होता है। नजदीक में यहां एक समुद्र भी है। यह समुद्र भी अजूबा है। सूखता जा रहा है। अकेला यह दुनिया का इस तरह का समुद्र है। अब तो बस 10 फीसदी ही यह बचा है।

अरबों साल पहले थार में समुद्र था। कजाकिस्तान तक फैलाव था इसका। ठोस प्रमाण तो वैसे अब भी नहीं है। फिर भी समय-समय पर मिली चीजें इसकी गवाही तो देती ही हैं।

Anupam Kumari

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