
भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर तनाव बना ही रहता है, क्योंकि पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आता और बार-बार वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत को आतंकवाद एवं अन्य सैनिक कार्रवाई के जरिए परेशान करता ही रहता है। भारत की ओर से जब-जब पाकिस्तान को ठोस जवाब दिया गया है, तब-तब पाकिस्तान की ओर से परमाणु हमला करने तक की गीदड़भभकी दी गई है। हालांकि, जो पाकिस्तान आज परमाणु शक्ति से संपन्न है और जो हमेशा भारत को अपने परमाणु शक्ति से संपन्न होने का धौंस दिखाता है, उसके लिए आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एक भारतीय प्रधानमंत्री ही जिम्मेवार रहे हैं। जी हां, पाकिस्तान यदि आज परमाणु शक्ति से संपन्न है तो भारत के एक प्रधानमंत्री का इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है। यहां इस लेख में हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं।
इसके बारे में जानने के लिए आपको ऑपरेशन कहुता के बारे में जानना पड़ेगा। भारत की गुप्तचर एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी कि RAW द्वारा वर्ष 1971-72 दौरान एक ऑपरेशन चलाया गया था। इसी ऑपरेशन को ऑपरेशन कहुता का नाम दिया गया। इसका उद्देश्य हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की सैन्य गतिविधियों का पता लगाना था। इसका मतलब यह हुआ कि इस ऑपरेशन के जरिए भारत पाकिस्तान के सैन्य कार्यक्रमों का पता लगाने के साथ-साथ उसके इन ठिकानों की तलाश करने जा रहा था। ऐसा कहा जाता है कि इजरायल की प्रमुख गुप्तचर एजेंसी मसाद भी भारत के इस ऑपरेशन में मदद करने के लिए तैयार हो गयी थी।
भारत ने जब उन्हें 1971 में अपना परमाणु परीक्षण कर लिया और परमाणु शक्ति से संपन्न हो गया तो पाकिस्तान इससे जल-भुन गया था। अब वह किसी भी हालत में खुद भी परमाणु शक्ति से संपन्न होना चाहता था। ऐसे में पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने अपने वैज्ञानिक एक्यू खान को परमाणु ऊर्जा से देश को संपन्न बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आयरलैंड में काम करने के लिए भेजा। एक्यू खान का प्रमुख मकसद किसी भी तरीके से उन जानकारियों को चुराना था, जिनके बल पर वे पाकिस्तान को परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्र बना सकें। उन्होंने किया भी बिल्कुल यही। एक दिन पूरे परिवार के साथ वे अचानक से आयरलैंड से भाग निकले। पाकिस्तान पहुंचकर वे कहीं छुप गए और गुपचुप तरीके से परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान में बहुत से ऐसे गुप्त ठिकाने थे, जहां पर पाकिस्तान हथियार बनाने में जुटा हुआ था। ऐसे में यह पता कर पाना बहुत ही मुश्किल था कि इनमें से वह कौन-सी जगह है, जहां पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है।
यह पता लगाने की जिम्मेवारी रॉ ने उठाई। उसने अपने विश्वस्त अफसरों को इस काम में लगा दिया। इन लोगों ने पाकिस्तान में एक नेटवर्क बनाना शुरू किया, जिसकी मदद से पाकिस्तान में उन ठिकानों का पता लगाया जा सके, जहां पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा संवर्धन कार्यक्रम को चला रहा था। यह आसान तो नहीं था। फिर भी आठ से नौ वर्षों में रॉ के ये विश्वस्त अधिकारी पाकिस्तान में एक ऐसा जाल बिछा पाने में कामयाब हो गए जो कि पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के करीब पहुंच गए थे। पाकिस्तान में जो भी लोग परमाणु उपकरण बनाने में शामिल थे, उन पर अब इन्होंने नजर रखना शुरू कर दिया। फिर भी यह पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर ये लोग काम कहां पर कर रहे हैं। इसी दौरान रॉ के अधिकारियों ने एक चीज नोटिस की। उन्होंने देखा कि एक छोटे से शहर कहुता में कुछ अलग तरह की गतिविधि चल रही है। यहां काम करने वाले सभी वैज्ञानिक उन्हें एक ही सैलून में बाल कटाने के लिए जाते हुए दिखे। इन्होंने यहां से बालों का सैंपल इकट्ठा किया और किसी तरीके से जांच के लिए भारत भेज दिया। यहां जांच के दौरान इन बालों में यूरेनियम पाए गए। इससे यह साफ हो गया कि पाकिस्तान का परमाणु ऊर्जा संवर्धन कार्यक्रम यहीं खान रिसर्च लैबोरेट्री में चल रहा था, जो कि पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी के पास एक छोटे से शहर कहुता में स्थित था।
जब रॉ को यह जानकारी मिल गई कि परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पाकिस्तान कहां पर चला रहा है तो अब उसका अगला मकसद किसी भी तरीके से पाकिस्तान को ऐसा करने से रोकना था। ऐसे में अधिकारियों ने काफी प्रयास के बाद यहां काम कर रहे एक पाकिस्तानी वैज्ञानिक तक अपनी पहुंच बना ली। वह वैज्ञानिक भारत को इस बारे में और जानकारी देने के लिए राजी हो गया, लेकिन वह पैसे की मांग कर रहा था। रॉ को पैसे देने के लिए प्रधानमंत्री की मदद की जरूरत थी, क्योंकि पैसे केवल प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर से ही दिए जा सकते थे। उस वक्त जनता दल के मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे। रॉ के प्रमुख मोरारजी देसाई से इसे लेकर मिले। उन्होंने उन्हें पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ मिलकर उनके पास पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को बर्बाद करने की पूरी प्लानिंग है। उन्होंने जानकारी के एवज में पाकिस्तानी वैज्ञानिक को पैसे देने की भी बात बताई और प्रधानमंत्री से इसके लिए पैसे की मांग की, मगर मोरारजी देसाई ने रॉ प्रमुख पर जबरदस्त गुस्सा किया। उन्होंने तुरंत इस ऑपरेशन को रोकने का आदेश दे दिया। साथ ही यह भी कहा कि पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का भारत के पास कोई अधिकार नहीं है।
इतना ही नहीं कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने एक और बड़ी मूर्खता यह कर दी कि एक दिन बातों-ही-बातों में उन्होंने पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक को फोन करके सारी बातें बता दी। कहा जाता है कि इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई को रॉ के लिए काम कर रहे लोगों का पता लगाने की जिम्मेदारी दे दी। उसने बहुत से रॉ एजेंट की पहचान कर ली। बहुत से एजेंट मार दिए गए और बहुत से रॉ एजेंट को अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से भागना पड़ा। इस तरह से आजाद भारत का एक बहुत ही बड़ा और बेहद सफल होने के नजदीक पहुंच चुका मिशन नाकामयाब हो गया। इसका बहुत बड़ा नुकसान रॉ को उठाना पड़ा, क्योंकि इसके बहुत से काबिल एजेंट इस दौरान मार दिए गए। जरा सोचिए कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि पाकिस्तान के पास परमाणु शक्ति नहीं होती तो भारत शायद अब तक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को अपने कब्जे में वापस ले लिया होता। शायद यह भी संभव था कि भारत को अपनी सामरिक शक्ति पर पाकिस्तान की वजह से जितना खर्च करना पड़ रहा है, उसकी भी जरूरत नहीं पड़ती।