हैदराबाद में एक महिला वेटेनरी डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है और उसे जला दिया गया है। पूरा देश आक्रोशित है। दोषियों को फांसी दिये जाने की मांग पूरे देश में की जा रही है। हर कोई यही कह रहा है कि फांसी की सजा से कम इनके लिए और कोई सजा नहीं हो सकती। दोषियों को फांसी की सजा होगी या नहीं, यह तो अदालत तय करेगी, मगर यहां हम आपको बता रहे हैं कि भारत में आजादी के बाद फांसी दिये जाने के सबसे चर्चित मामले कौन-कौन से रहे हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का दोषी था नाथूराम गोडसे। प्रार्थना में जाने के वक्त उसने भारी भीड़ के बीच गांधी जी पर सामने से गोली चलाकर उनकी हत्या कर दी थी। उसने मौके से फरार होने की भी कोशिश नहीं की थी। पाकिस्तान को महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद मिली मदद से आहत होकर उसके मुताबिक उसने यह कदम उठाया था। आजाद भारत में पहली फांसी नाथूराम गोडसे को ही महात्मा गांधी की हत्या के लिए दी गई थी।
वर्ष 1978 में एक सैन्य अधिकारी के बच्चों को रंगा और बिलला ने पहले अगवा किया और फिर उनके साथ दुष्कर्म करके उनकी हत्या कर दी थी। दोनों को मुकदमा चलने के बाद फांसी पर लटका दिया गया था। रंगा का नाम कुलजीत सिंह और बिलला का नाम जसबीर सिंह था। संजय और गीता नामक भाई-बहनों को उन्होंने फिरौती के लिए अपहृत किया था और फिर दुष्कर्म करके उनकी हत्या कर दी थी। एक ट्रेन से दोनों गिरफ्तार किये गये थे और चार वर्षों की सुनवाई के बाद 1982 में उन्हें फांसी पर लटकाया गया। इसके बाद दोनों बच्चों के नाम पर हर साल दिये जाने वाले वीरता पुरस्कार की शुरुआत भी कर दी गई।
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और आयरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी के दोषी पाये गये थे सतवंत सिंह और केहर सिंह। इन दोनों को फांसी पर लटका दिया गया था। हालांकि, दोनों को खालिस्तानी समर्थकों की ओर से शहीद घोषित कर दिया गया था और इनकी फांसी के बाद खूब बवाल भी मचा था।
भारत की संसद पर 2001 में हुए आतंकी हमलों का मास्टर माइंड और इस मामले में मुख्य आरोपी मोहम्मद अफजल गुरु को पाया गया था। अफजल गुरु को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी 9 फरवरी 2013 की सुबह दे दी गई थी। इसके शव को इसके परिवार वालों को न सौंपकर तिहाड़ जेल के परिसर में ही दफना दिया गया था।
भारतीय सुरक्षा बलों पर कई हमले करने वाला और सीआईडी अधिकारी अमर चंद की हत्या करने वाला मकबूल भट्ट जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) का अध्यक्ष था, जिसे फांसी राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किये जाने के बाद 11 फरवरी, 1984 को दी गई थी। बर्मिंगम में भारतीय डिप्लोमैट रविंद्र महात्रे की जेकेएलएफ के सदस्यों ने 6 फरवरी, 1984 को हत्या करके मकबूल भट्ट को रिहा करने की मांग की थी, जिसके बाद राष्ट्रपति द्वारा इसकी दया खारिज करते हुए दिल्ली के तिहाड़ जेल में इसे फांसी पर लटका दिया गया था।
26 नवंबर, 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादियों का हमला हुआ और अगले चार दिनों तक आतंकवादी यहां दहशत मचाते रहे। यहां कत्लेआम मचाने वाले 10 आतंकियों में से आमिर कसाब ही जिंदा पकड़ में आया था। इसे 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई। आरंभ में तो पाकिस्तान ने इसे अपना नागरिक ही मानने से मना कर दिया था। हालांकि, बाद में यह पूरी तरह से साफ हो गया कि कसाब एक पाकिस्तानी आतंकवादी ही था।
पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी पर 14 साल की बच्ची का बलात्कार करने और उसकी हत्या करने का आरोप लगा था। बाद में अदालत में उसका गुनाह साबित कर दिया गया और उसे फांसी की सजा सुना दी गई। 21वीं सदी में भारत में पहली फांसी धनंजय चटर्जी को ही दी गई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, जो कि फांसी की सजा का विरोध करते थे, उन्होंने खुद धनंजय चटर्जी की दया याचिका को खारिज कर दिया था। धनंजय चटर्जी ने अंतिम समय तक खुद को निर्दोष बताया था।
वर्ष 1993 के मुंबई ब्लास्ट मामले में फांसी की सजा पाने वाले याकूब मेमन की दूसरी क्यूरेटिव पिटिशन को भी सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। इसे 2015 में फांसी दिये जाने से एक दिन पहले तक सुनवाई चली थी।
बेहद कुख्यात माने जाने वाले तमिलनाडु में ऑटो शंकर को 1980 के दशक में 6 लोगों की हत्या करने का दोषी पाये जाने के बाद 1995 में फांसी पर लटका दिया गया था। गौरी शंकर उर्फ ऑटो शंकर ऑटो रिक्शा चलाता था।
शादी का झांसा देकर महिलाओं को अपने जाल में फंसाकर और गर्भ निरोधक गोली खिलाने के बहाने साइनाइड देकर उनके गहने लूटने वाले कर्नाटक में 20 महिलाओं की हत्या का दोषी 2009 में पुलिस की गिरफ्त में आया था और दिसंबर, 2013 में उसे फांसी पर लटका दिया गया था।
नोएडा के चर्चित निठारी कांड में मुख्य दोषी सुरिंदर कोली को मौत की सजा दी गई थी। कोली पर महिलाओं व बच्चों के साथ बलात्कार करने, उनकी हत्या करने और शवों को खा जाने तक का आरोप लगा था। उसे 5 की हत्या के मामले में दोषी पाये जाने के बाद फांसी पर लटकाया गया था।
आजाद भारत में फांसी की सजा अब तक 57 लोगों को दी गई है। दिल्ली के निर्भया कांड के दोषियों को आज तक फांसी की सजा नहीं दी गई है। बहुत से लोगों का मानना है कि यदि उन्हें फांसी दे दी गई होती तो शायद हैदराबाद की इस डॉक्टर के साथ इतनी वीभत्स घटना नहीं घटती।