
वे सरदार पटेल थे। कोई काम उनके लिए मुश्किल नहीं था। लौह पुरुष के नाम से जाने गए। इससे लगता है कि वे बड़े कठोर थे। मगर ऐसा है नहीं। लौह पुरुष वे जरूर थे, लेकिन हंसी-मजाक भी खूब करते थे। व्यंग्य तो उनका कमाल का होता था।
मजाक भी बड़ा गजब का करते थे। हर कोई इसे पसंद करता था। महात्मा गांधी खुद उनके व्यंग्य के कायल थे। गांधी ने एक बार खुद कहा था कि मुझे पटेल मुझे बहुत हंसाते हैं। कई बार एक दिन में हंसा देते हैं। राजमोहन गांधी की किताब पटेल: अ लाइफ में इसका जिक्र है।
सरदार पटेल को अधिकतर लोग ठीक से नहीं जानते। बहुतों को नहीं मालूम कि उनका ह्यूमर कितना कमाल का होता था। कटाक्ष वे कितना सटीक करते थे।
फिल्म इंडिया एक लोकप्रिय फिल्म मासिक रही है। बाबूराव पटेल इसके संपादक रहे हैं। सरदार पटेल को उन्होंने कांग्रेस का बड़ा जानकार व्यक्ति बताया था। अक्टूबर, 1942 के अंक में उन्होंने ऐसा लिखा था। उन्होंने पटेल को बढ़िया मैपमेकर भी बताया था। इसका मतलब था कि पटेल बहुत ही अच्छा नक्शा बनाते थे।
बात बताते हैं आपको सरदार पटेल के बचपन की। इसका जिक्र राजमोहन गांधी ने किया है। किताब का नाम है पटेल: अ लाइफ। स्कूल में भाषा चुनने की बारी थी। बच्चे संस्कृत को चुन रहे थे। पटेल ने संस्कृत नहीं चुना। उन्होंने गुजराती का चुनाव कर लिया।
गुजराती शिक्षक इससे नाराज हो गए। उन्होंने कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत हर हिंदू छात्र को सीखनी चाहिए। सरदार पटेल भी अड़े रहे। उन्होंने कमाल का उन्हें जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सबका संस्कृत चुनना क्यों जरूरी है? ऐसा हुआ तो आपको तो फिर घर में ही बैठना पड़ेगा।
पटेल काफी पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। लंदन से उन्होंने पढ़ाई की थी। वे एक बैरिस्टर भी थे। फिर भी अपने आप को वे अशिक्षित की तरह दिखाते थे। ऐसे दिखाते थे लगता था कि चौथी पास हैं। भाषण वे इसी तरह से देते थे। शिक्षा के लिए वे कुछ बढ़िया करना चाहते थे। इस पर उनका पूरा जोर भी रहता था।
वर्ष 1930 की बात है। दांडी मार्च होने वाला था। गुजराती विद्यापीठ में छात्रों को संबोधित करने वे पहुंचे थे। उन्हें इसका आमंत्रण मिला था। महात्मा गांधी इसके संस्थापक थे। पटेल बड़े हैरत में पड़े हुए थे। वे सोच रहे थे कि मैं तो बड़ा अशिक्षित हूं। फिर मुझे क्यों मुख्य अतिथि बनाया गया है।
बातें पटेल की बड़ी तर्कसंगत होती थीं। उन का ह्यूमर बहुत गहरा होता था। चरित्र निर्माण पर उनका ध्यान होता था। किताबी शिक्षा को वे नकारते थे। एक कहानी उन्होंने तब सुनाई थी। काशी के एक संस्कृत के विद्वान के बारे में बताया था।
कहा था कि वह एक दुकान चलाता है। मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार का सामान वहां बिकता है। संस्कृत का बड़ा विद्वान है। फिर भी यहां इस संस्कृत से वह क्या कर सकता है। क्या वह बिल संस्कृत में बना सकता है? अब वह मुंबई में है।
वकीलों का भी उन्होंने उदाहरण दिया था। कहा था कि किताबी शिक्षा सिर्फ उन्होंने पाई है। वकील बन गए हैं। फिर भी गुजरात क्लब में बैठे रहते हैं। टाइम पास करते दिखते हैं। आसानी से ऐसे लोग मिल जाते हैं। ऐसी किताबी शिक्षा का फायदा क्या?
जरा लौह पुरुष के एक और कटाक्ष को देखिए। ‘सरदार वल्लभभाई ना भाषणों’ में इसका उल्लेख है। उत्तम चंद शाह ने इसे लिखा है। 1928 का यह वक्त था। बारदोली सत्याग्रह चल रहा था। सरदार की उपाधि उन्हें यही मिली थी। सरकार लोगों की भैंसें ले रही थी उनकी संपत्ति जब्त कर रही थी। कर नहीं चुकाने की वजह से ऐसा हो रहा था। सरदार पटेल ने लोगों को शांत रहने की सलाह दी थी। एक बार उन्होंने टैक्स वसूलने वाले को लेकर कमाल का व्यंग्य किया था।
पटेल ने कहा था कि जो भैंसें जब्त करता है, वह ब्राह्मण है। सुबह 4 बजे उठता तो है, लेकिन भगवान को याद नहीं कर पाता। उसे तो सिर्फ भैंसें याद रहती हैं। वे शिकायत करते हैं कि भैंसें शोर मचाती हैं। वही बता दें की शोर उन्हें नहीं करना चाहिए। हम पर तो वे आरोप लगाते हैं। कहते हैं कि इस मामले में हम लापरवाह हैं। इसका जवाब हां है। सरकारी प्लेग हमारी भैंसों को हो गया है।
बैठक चल रही थी। तभी भैंस की आवाज आ गई। पटेल ने तुरंत कह दिया कि देखो भैंसें भी भाषण दे रही हैं। अब तो इसे समझ लीजिए कि कैसा शासन चल रहा है।