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ISIS के इस गढ़ में भी कभी बोली जाती थी देववाणी संस्कृत

करीब साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया के सीरिया में भूमध्य सागर तक मितन्नी साम्राज्य का शासन था,जहां संस्कृत का उपयोग बड़े पैमाने पर होता था।
Information Anupam Kumari 22 November 2019

सीरिया पिछले कुछ समय से कुख्यात आतंकी संगठन ISIS का गढ़ रहा है, मगर करीब साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया के सीरिया में भूमध्य सागर तक एक बड़े हिस्से में एक ऐसे साम्राज्य का शासन था, जहां संस्कृत का उपयोग बड़े पैमाने पर होता था। इस साम्राज्य का नाम था मितन्नी। जी हां, बोगाजकोई सभ्यता से जो पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं, वे लगभग 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बताये जाते हैं और ये इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि उस वक्त संस्कृत बेहद प्रमुख भाषा हुआ करती थी और कई राजाओं के नाम तक हिंदू देवताओं के संस्कृत नाम पर रखे गये थे। जैसे कि दशरथ, इंद्र और आत्तर्तम आदि।

संस्कृत को देववाणी कहा गया है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति भारत में ही हुई थी। यह एक वैदिक भाषा है। ऐसे में यह बात हैरान जरूर करती है कि आखिर संस्कृत भारत से इतनी दूर भूमध्य सागर तक किस तरह से पहुंच गई? दरअसल, 1500 से 1300 ईसा पूर्व में सीरिया के उत्तर और दक्षिण-पूर्व में एनातोलिया में मितन्नी नामक साम्राज्य की हित्ती भाषा में आर्य शब्द भी मिल जाता है। प्राचीन सीरिया के मितन्नी अभिलेखों के साथ ईरान से मिले कस्साइट अभिलेखों में भी आर्य नाम मिले हैं। एक रिपोर्ट भी आई थी, जिसमें बताया गया था कि वर्तमान पश्चिमी एशिया में यूफ्रेटस और टिगरिस नदी घाटी के ऊपरी इलाके में करीब 3500 वर्ष पूर्व जो मितन्नी राजवंश का शासन था, आज यही इलाका दक्षिण-पूर्वी तुर्की, उत्तरी इराक और सीरिया का हिस्सा है।

संस्कृत में राजाओं के नाम

हिती राजा शुब्बिलिम्मा के साथ मितन्नी राजा मतिऊअजा के बीच जो समझौता हुआ था, उसके प्रमाण के रूप में वैदिक देवताओं इंद्र, नासत्य, वरुण और मित्र के बारे में जानकारी 1400 ईसा पूर्व के बोगाजकोई या मितन्नी अभिलेख में मिल जाती है। हर राजा का नाम इस राजवंश में संस्कृत भाषा में ही हुआ। इनमें सुबंधु, पुरुष, सुवरदत्त, दुश्रत्त और इंद्रोता आदि शामिल हैं। इसकी राजधानी वसुखनि थी, जो भी संस्कृत का ही शब्द था। वर्तमान में जो उत्तरी सीरिया है, उसके इसी साम्राज्य में ऋग्वैदिक संस्कृत के लिखित प्रमाण हासिल हुए हैं। मितन्नी राजवंश के राजाओं में बरात्तर्ण, सत्वर्ण, कीर्त्य, सत्वर्ण, आर्ततम, वरतर्ण, अर्थसुमेढ़, मतिवाज, क्षत्रवर, तुष्यरथ और वसुक्षत्र आदि शामिल थे। जहां कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वे महाभारत के बाद भारत में आकर बसे, वहीं कुछ इतिहासकार इन्हें वेद की मैत्रायणीय शाखा के प्रतिनिधि के तौर पर देखते हैं।

हिंद-आर्य भाषा के रूप में

जिस परिवार से वैदिक संस्कृत आती है, प्रोटो-इंडो-यूरोपीयन को उसकी संस्थापक भाषा, जबकि प्रोटो-इंडो-ईरानी को इसकी बेटी के रूप में देखा जाता है। उत्तर भारत और ईरान में जो भाषाएं फैलीं, उनका स्रोत दरअसल इसे ही माना जाता है। वैदिक संस्कृत की जानकारी तो 2000 ईसा पूर्व से ही मिलती है और संस्कृत को हिंद-आर्य भाषा के रूप में देखते हुए हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का ही हिस्सा माना जाता है और यह भी कहा जाता है कि हिंदी, पंजाबी, मराठी, सिंधी और नेपाली जैसी भाषाएं संस्कृत से ही उपजी हैं। इस तरह से आदिम हिंद-ईरानी भाषा के बेहद निकट रहने वाली वैदिक संस्कृत को ही आधुनिक संस्कृत की पूर्वज भाषा माना गया है। यही कारण है कि प्राचीन ईरान की अवस्ताई भाषा से वैदिक संस्कृत काफी हद तक मिलती-जुलती नजर आती है।

संस्कृत में नामों का मतलब

मितन्नी शासकों के साथ उनकी राजधानी के नाम हिंद-ईरानी भाषा में ही मिलते थे। जैसे कि हिंद-ईरानी तवेसा रथा का ही रूप तुरेट्टा था, जिसका तात्पर्य रथ के मालिक से है। उसी तरह से सत्वअरा भी सतवर से ही निकला था, जिससे अभिप्राय योद्धा से था। मितन्नी साम्राजय की राजधानी वाशुकानी संस्कृत शब्द वासुखानी से मिलती-जुलती है, जिसका अर्थ धन की खान होता है। मितन्नी के कई राजाओं के नाम में प्राचीन फारसी शब्द जैसे कि अर्शा, अर्ता और आदि भी मिले हैं, जिनका अर्थ आदेश और सत्य होता है। यदि अर्ता को संस्कृत में बदल देते हैं तो यह फिर रता हो जाता है।

वैदिक भाषा से भी पुरानी

सीरिया एवं बोगजकोई आदि की भाषा वैदिक भाषा के समकालीन मानी जाती है, जबकि ईरानी भाषा को वैदिक भाषा से भी पुराना माना जाता है। पामीर के पठार को वह स्रोत माना जाता है, जहां से आर्य ईरान और सीरिया पहुंचे होंगे। भारत के कई आर्य देवताओं जैसे बुगुस, सूरिअ, इंद्रस और मरुत्तस आदि के नाम पर बेबीलोन के कस्साइट के राजाओं के नाम मिलते हैं। हिंद-यूरोपियन परिवार के परस्पर संबंध नहीं रखने वाली कई भाषाएं भी संस्कृत से जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए यूनानी पोलिस, लिथुआनी ओजी, ट्यूटोनिक चुनिग, अवेस्ता हैजा और लातिनी उलुकुस के लिए संस्कृत में क्रमशः पुरस, अज्ञ, जनक, सहस्त्र और उलुकस शब्द हैं। यही वजह है कि आर्यों के मूल प्रदेश को ही संस्कृत का भी मूल प्रदेश मान लिया गया है।

दूर-दूर तक विस्तार

पूर्वोत्तर सीरिया, उत्तर-पश्चिम ईरान, उत्तरी इराक, दक्षिण-पूर्वी तुर्की, और वर्तमान में कुर्द आबादी वाले कुछ क्षेत्रों पर 15वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक मितन्नी शासक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण स्थापित किये हुए थे। मितन्नी को हुर्रियन भाषा बोलने वाले राज्यों का एक ऐसा संघ भी बताया जाता है, जहां लोग संस्कृत से मेल खाती हिंद-ईरानी भाषा का प्रयोग करते थे। इस तरह से संस्कृत के बारे में कहा जा सकता है कि वाकई में यह बेहद प्राचीन भाषा है और इसका विस्तार दूर-दूर तक रहा है।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान