ठग बेहराम एक सीरियल किलर, यह एक ऐसा नाम है, जिससे एक वक्त दुनिया कांप रही थी। इसने 900 से भी ज्यादा कत्ल किए थे। जी हां, रुमाल से यह कत्ल करता था। इसका जन्म 1675 में हुआ था। यह बाद में पकड़ा भी गया था। तब इसकी उम्र 75 साल की थी। इसे फांसी पर 1840 में लटकाया गया था।
जेम्स पैटोन ने इसके बारे में लिखा है। वह तब ठगों और डकैतों पर काम करते थे। जेम्स पैटोन के मुताबिक 931 लोगों की ठग बेहराम ने हत्या की थी। उनके मुताबिक उसने हत्या करने की बात उनके सामने ही कबूली थी। कहा जाता है कि इसने 1790 से 1840 के बीच ये हत्याएं की थी। उसे पकड़ने की जिम्मेवारी कैप्टन विलियम स्लीमैन को अंग्रेज सरकार ने दी थी।
आतंक उसका बढ़ता ही जा रहा था। उससे सब डरने लगे थे। उसने पर्यटकों को अपना शिकार बनाया था। सैनिकों को भी उसने नहीं छोड़ा था। तीर्थयात्री उसका शिकार बने थे। व्यापारी भी उसका शिकार बन रहे थे। उसकी हत्या से आतंक मच गया था। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी उसका नाम दर्ज रहा है। एक गैंग उसने बना कर रखा था। कहा जाता है कि इसमें 200 लोग लगभग शामिल थे। ये लोग अपराध में उसका साथ दिया करते थे।
मानवीय इतिहास के सबसे कुख्यात सीरियल किलर में इसकी गिनती होती है। इसका कत्ल करने का अंदाज ही ऐसा था कि यह बेरहम के नाम से भी जाना गया। यह बड़ा ही खूंखार प्रवृत्ति का था। जहां से यह गुजरता था, कहा जाता है कि लाशों की ढेर वहां लग जाती थी। दिल्ली से लेकर जबलपुर और ग्वालियर तक इसका खौफ फैला हुआ था। व्यापारी इससे इतना डर गए थे कि रास्ते से गुजरना उन्होंने बंद कर दिया था।
कई रिपोर्ट्स बताते हैं कि वह बहुत सीधा-साधा था। बचपन में वह बिल्कुल भी अपराधी प्रवृत्ति का नहीं था। उसकी दोस्ती ने उसे ऐसा बना दिया। वह सैयद अमीर अली की संगति में पड़ गया था। उसकी उम्र सीरियल किलर बेहराम से 25 साल अधिक थी। वह एक कुख्यात ठग हुआ करता था। ठग बेहराम को उसने ही ऐसा बनाया था। उसी ने खूंखार दुनिया से उसे रू-ब-रू करवाया था। एक महिला भी बेहराम के साथ काम करती थी। इस महिला का नाम डॉली था। बाद में वैसे दोनों के रास्ते अलग हो गए थे।
जुर्म की दुनिया से सिर्फ 25 साल में ही वह सीरियल किलर जुड़ गया था। पीले रंग का एक रुमाल हमेशा उसके पास हुआ करता था। एक सिक्का वह रुमाल के अंदर रखता था। इसी से वह किसी की भी हत्या करता था। जो व्यापारी गुजरते थे, उनका सामान वह लूट लिया करता था। बेहराम का खौफ इस तरह से तेजी से फैलने लगा था। 10 साल में ही वह बहुतों को मौत के घाट उतार चुका था। मध्यप्रदेश के जबलपुर में उसका जन्म हुआ था। उस वक्त यह इलाका मध्य भारत के नाम से जाना जाता था।
पूरे के पूरे काफिले को वह गायब कर देता था। लोगों की लाश तक नहीं मिल पाती थी। अंग्रेज सरकार भी इससे बहुत परेशान हो गई थी। एक विभाग बना दिया गया था इसे पकड़ने के लिए। जबलपुर में इसका मुख्यालय बनाया गया था। ठगों के खिलाफ यह विभाग काम कर रहा था। दिल्ली से लेकर जबलपुर तक जो हाईवे बना था, उसके किनारे के जंगल साफ कर दिए गए थे। गुप्तचर बड़े पैमाने पर फैल गए थे। बेहराम के बारे में पता लगाने की कोशिश की जा रही थी।
ठगों की भाषा को भी समझने का प्रयास किया जा रहा था। दरअसल, एक विशेष भाषा में इनकी बातचीत होती थी। इस भाषा को रामोसी के नाम से जानते हैं। इसी संकेतिक भाषा का इस्तेमाल वे बातचीत के लिए करते थे। खासकर शिकार को खत्म करने के दौरान वे इसे प्रयोग में लाते थे। ठगों का यह गिरोह योजनाबद्ध तरीके से काम करता था। ये व्यापारियों का भेष बना लेते थे। जंगलों में ये घूमते रहते थे।
गिरोह के बाकी सदस्य भी पीछे-पीछे रहते थे। कोई भी काफिला जंगल से गुजरता था तो वे इस पर हमला कर देते थे। उसे शिकार बना लेते थे। बाबड़ी और धर्मशाला के पास भी यह गिरोह खूब सक्रिय रहा था। ये सारी जानकारी गिरफ्तार हुए ठग बेहराम ने कैप्टन स्लीमैन दी थी। गिरोह के बाकी सदस्य भी बाद में पकड़े गए थे।