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और इस तरह से इस देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे मुलायम सिंह यादव

उत्तर प्रदेश में राजनीति करते-करते देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाने वाले मुलायम सिंह यादव इस देश के एक ऐसे नेता है, जिनके पास राजनीति का इतना अनुभव है
Information Anupam Kumari 3 January 2020
और इस तरह से इस देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे मुलायम सिंह यादव

उत्तर प्रदेश में राजनीति करते-करते देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाने वाले मुलायम सिंह यादव इस देश के एक ऐसे नेता है, जिनके पास राजनीति का इतना अनुभव है कि राजनीति में कदम रखने वाले बहुत से युवा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। मुलायम सिंह यादव जो कि इटावा के सैफई में 1939 में जन्मे थे और कुछ समय तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज के प्राध्यापक भी रहे, वे पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे। राजनीति की दांवपेच को मुलायम सिंह यादव बहुत ही अच्छी तरह से समझते हैं। यही वजह है कि कई बार उन्होंने आखिरी क्षणों में ऐसा दांव चल दिया है, जिससे विरोधी तो एकदम चारों खाने चित ही हो गए हैं। मुलायम सिंह यादव के परिवार में से कम-से-कम 20 लोग तो आज समाजवादी पार्टी का हिस्सा बने हुए हैं। यह एक ऐसी पार्टी है, जो लोहिया के आदर्शो पर चलने का तो दावा करती ही है, वहीं दूसरी ओर नेहरू के परिवारवाद की राजनीति की भी जमकर आलोचना भी करती रही है।

मुलायम सिंह यादव के पिता सुधर सिंह तो यही चाहते थे कि मुलायम सिंह यादव एक अच्छे पहलवान बन जाएं, लेकिन मुलायम सिंह यादव के तो मन में ही इच्छा जाग चुकी थी कि उन्हें जाना राजनीति में है। भले ही पहलवानी की वे जमकर प्रैक्टिस कर रहे थे, लेकिन एक बार मैनपुरी में जब एक कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित हुई तो यहां उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह को बड़ा प्रभावित कर लिया। उन्हीं के मार्गदर्शन में हुए आगे बढ़ने लगे और नत्थू सिंह का जो परंपरागत विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर था, वहां से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कर ली।

लगा रहा उतार-चढ़ाव

अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर मुलायम सिंह यादव राजनीति में लगातार आगे बढ़ते गए। केवल 28 वर्ष की उम्र में ही मुलायम सिंह यादव विधायक बन गए थे। उनके पीछे किसी भी तरह का कोई भी राजनीतिक आधार नहीं था, फिर भी वे आगे बढ़ते चले गए। वर्ष 1967 में पहली बार उन्होंने चुनाव जीता और विधानसभा में पहुंच गए। यह जीत उन्हें संघट सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर इटावा के जसवंतनगर सीट से मिली थी। पहली बार वे मंत्री 1977 में बने जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता पार्टी की सरकार बन गई थी। राजनीति में मुलायम का जनाधार अब बनने लगा था। वर्ष 1980 में वे उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष भी बन गए थे, जिसका विलय बाद में जनता दल में हो गया था। पहली बार 1989 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। 1990 के नवंबर में केंद्र में जब वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो इस दौरान मुलायम सिंह यादव चंद्रशेखर के जनता दल (समाजवादी) का हिस्सा बन गए। इस तरह से उनके समर्थन के बल पर वे मुख्यमंत्री बने रहे, लेकिन 1991 के अप्रैल में कांग्रेस के समर्थन वापस लेने की वजह से मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई और मध्यावधि चुनाव में उनकी पार्टी के हार जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी का सत्ता पर कब्जा हो गया।

खुद की पार्टी

अभी तक मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में अपनी एक ऐसी पकड़, अपनी एक ऐसी पहचान बना ली थी, जिसके बल पर वे कुछ बड़ा कर सकते थे। तभी तो उन्होंने 1992 में 4 अक्टूबर को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी की स्थापना की घोषणा कर दी थी। इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव का सियासी सफर आगे बढ़ने लगा। हालांकि, मुलायम सिंह यादव के पास उस वक्त बहुत बड़ा जनाधार तो नहीं था, लेकिन अपनी राजनीतिक सूझबूझ से उनका आगे बढ़ना जारी रहा। नवंबर, 1993 में यूपी में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा था तो बीजेपी को फिर से सत्ता में आने से रोकना उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। इस दौरान उन्होंने एक बड़ा प्रयोग किया। बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ उन्होंने गठबंधन कर लिया। इसका फायदा भी मिला, क्योंकि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जो माहौल बना था, उसमें कांग्रेस और जनता दल का भी समर्थन लेकर वे फिर से सत्ता में आकर मुख्यमंत्री बन गए।

राष्ट्रीय स्तर पर

मुलायम सिंह यादव को अब उत्तर प्रदेश की राजनीति से बाहर निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनानी थी। तभी तो 1996 में जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी थी तो उसमें वे भी शामिल हो गए थे। रक्षा मंत्री उन्हें बनाया गया था। हालांकि बनना तो वे प्रधानमंत्री चाह रहे थे। शायद बन भी जाते, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया। इस तरह से मुलायम सिंह यादव उस दौरान प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।

Anupam Kumari

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