Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

प्रजातंत्र स्थापित करने वाला पहला देश बना था अमेरिका, मगर राह में थे इतने कांटे

Information Anupam Kumari 20 January 2021
प्रजातंत्र स्थापित करने वाला पहला देश बना था अमेरिका, मगर राह में थे इतने कांटे

अमेरिका इस दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में से एक है। अमेरिका के बारे में सबसे पहले क्रिस्टोफर कोलंबस ने बताया था। अमेरिका का पता चलने के बाद यूरोप के कई देश यहां पहुंच गए। इनमें पुर्तगाल, फ्रांस, स्पेन, इंग्लैंड और हॉलैंड शामिल थे। यहां वे अपनी बस्तियां बसाने लगे थे। अंग्रेज भी इनमें से एक थे।

जॉर्ज तृतीय की चाहत

बाद में जॉर्ज तृतीय उपनिवेश पर अपना कब्जा चाह रहा था। ऐसे में यहां विद्रोह शुरू हो गया था। इसी को अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं। अमेरिका के लिए यह विद्रोह बहुत जरूरी था। इसलिए कि इसने अमेरिका को बहुत कुछ दिया। वंशानुगत राजतंत्र इससे यहां खत्म हो गया। इसके बाद यहां प्रजातंत्र स्थापित हो गया। ऐसा करने वाला अमेरिका पहला देश भी बन गया।

संघर्ष तो होना ही था

इंग्लैंड के साथ तो अमेरिकी उपनिवेशों का संघर्ष होना ही था। राजनीतिक जीवन उनका बिल्कुल अलग था। धार्मिक जीवन भी अलग था। आर्थिक स्थिति में भी भिन्नता थी। यहां तक की सामाजिक स्थिति भी मेल नहीं खाती थी। ऐसे में भला इनका संबंध मधुर कैसे रह सकता था। अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के पीछे कई वजह रही।

इंग्लिकनिज्म के प्रति झुकाव

इंग्लैंड के लोग इंग्लिकनिज्म को मानते थे। बिशप पर उनका अटूट विश्वास था। धर्म को वे सर्वोपरि मानते थे। दूसरी ओर उपनिवेशवासी एकदम अलग थे। वे प्यूरिटन को मानते थे। एंग्लिकन उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थे। यहां तक कि बिशप व्यवस्था भी उन्हें पसंद नहीं थी। धर्म को भी वे सर्वोपरि नहीं रहना चाहते थे। यही वजह थी कि इंग्लैंड के साथ इनका मतभेद बढ़ने लगा।

चाह रहे थे आजादी

उपनिवेशों में रहने वाले आजादी चाह रहे थे। वे स्वराज्य चाहते थे। गुलामी की जंजीरों से जकड़ कर वे बिल्कुल भी नहीं रहना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि उनकी ही जाति के लोग उन पर शासन करें। ऐसे में उनका असंतोष बढ़ता जा रहा था। विद्रोह की ज्वाला धीरे-धीरे सुलग रही थी।

बड़े-बड़े पदों पर अंग्रेज

इंग्लैंड वाले यहां अपनी मान्यताएं लेकर आए थे। राजनीतिक अधिकार उपनिवेशवासियों को मिले नहीं थे। ब्रिटिश शासक उपनिवेशवासियों को अयोग्य मानते थे। उनका मानना था कि वे शासन नहीं कर सकते हैं। अंग्रेज बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त हुआ करते थे। उपनिवेशवासी इससे असंतुष्ट होते जा रहे थे।

इनका पड़ा प्रभाव

क्रांति की शुरुआत हो गई थी। जाहिर सी बात है कि बुद्धिजीवी वर्ग इसका नेतृत्व करने वाला था। वाल्टेयर, मोन्टेस्क्यु, रूसो ऐसे दार्शनिक थे, जिनका प्रभाव उपनिवेशों में रहने वालों पर पड़ा था। लोग अब जागृत होते जा रहे थे। राजा के दैवीय अधिकारों के खिलाफ वे आवाज उठा रहे थे।

दूरी का असर

इंग्लैंड से अमेरिका की दूरी बहुत थी। उपनिवेश में इंग्लैंड की सरकार को ज्यादा रुचि थी नहीं। दूरी बहुत थी। यातायात के साधन भी कम थे। ऐसे में उपनिवेश पर नियंत्रण रखना इतना भी आसान नहीं था। उपनिवेश में रहने वाले खुद का शासन चाह रहे थे। ऐसे में उन्होंने खुद के शासन के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया था। प्रजातांत्रिक परंपरा वे चाह रहे थे।

इन्होंने किया नेतृत्व

सप्तवर्षीय युद्ध का भी बड़ा ही प्रभाव पड़ा था। उसके साथ अंग्रेजों का युद्ध हुआ था। अमेरिकी सैनिकों ने भी लड़ाई लड़ी थी। वे समझ गए थे कि अंग्रेजों से लड़ना उनके लिए संभव है। मध्यमवर्ग ने जन्म ले लिया था। राजनीतिक स्वतंत्रता वे चाह रहे थे। उन्होंने ही एक तरह से क्रांति का नेतृत्व किया

बहुत से कैथोलिक उपनिवेश में जाकर बसे थे। इंग्लैंड में उन्हें बहुत सताया गया था। अब वे आजादी के साथ रहना चाहते थे। यहां पर भी इंग्लैंड की सरकार उसी तरह से पेश आ रही थी। अन्याय इनके ऊपर बढ़ता जा रहा था। ऐसे में विद्रोह तो इन्हें करना ही था।

प्रतिबंधों का प्रभाव

औद्योगिक प्रतिबंध लगे हुए थे। व्यापारिक प्रतिबंध भी लगे हुए थे। उपनिवेश में रहने वालों को बड़ी दिक्कत हो रही थी। व्यापारिक प्रगति तो वहां हो ही नहीं रही थी। उपनिवेशवासियों में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा था। वे खुली हवा में सांस लेना चाहते थे। वस्तुओं का आयात-निर्यात हो नहीं पा रहा था। व्यापार संबंधी कानून भी बड़े जटिल थे। इस वजह से भी उपनिवेश में रहने वाले अब और सहन के मूड में नहीं थे।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान