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नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन के लिए केवल नेहरू ही ये कर सकते थे

नेहरू ने इसी चिट्ठी में एक मांग रखी थी। उन्होंने एक लाख रुपये का सालाना ग्रांट मांगा था। रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए ये ग्रांट चाहते थे।
Information Anupam Kumari 7 September 2020
नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन के लिए केवल नेहरू ही ये कर सकते थे

पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। वे बड़े ही दूरदर्शी थे। स्वतंत्रता संग्राम में उनका बड़ा योगदान रहा था। आजादी के बाद देश की तरक्की ही उनके जीवन का उद्देश्य था। देश आजाद होने के बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। विज्ञान के क्षेत्र में वे देश की प्रगति चाहते थे। इसलिए वैज्ञानिकों को वे पूरा सम्मान देते थे।

वैज्ञानिकों का महत्व

विज्ञान के क्षेत्र में देश का विकास तो वे चाहते ही थे, साथ में वैज्ञानिक भी उनके लिए महत्वपूर्ण थे। वैज्ञानिकों को हर तरह का सम्मान वे दिलाना चाहते थे। शांति स्वरूप भटनागर उस वक्त के लोकप्रिय वैज्ञानिक थे। चंद्रशेखर वेंकटरमन भी पूरी दुनिया में प्रख्यात थे। इन वैज्ञानिकों की गरिमा अधिक थी। ऐसे में नेहरू ने इनके लिए पद सृजित किए थे। इनके कार्यकाल को इन्होंने आगे बढ़ाया था।

लिखा था ये नोट

इसके लिए पंडित नेहरू ने एक नोट लिखा था। उन्होंने अपने प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेट्री को 11 जनवरी, 1949 को इसे लेकर एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में डॉक्टर सीवी रमन के लिए उन्होंने कई सारी बातें लिखी थीं।

नेहरू ने लिखा था कि नेशनल प्रोफेसरशिप ऑफ फिजिक्स 1948 में डॉक्टर सीवी रमन के लिए बनाई गई थी। केवल उन्हीं के लिए इसे सृजित किया गया था। केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया में वे विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी हस्ती हैं। विज्ञान के क्षेत्र में डॉक्टर सीवी रमन ने गजब का योगदान दिया है। इनकी सेवाओं का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल भारत सरकार करना चाहती है। ऐसे में यह जरूरी है कि वे अपनी इच्छानुसार शोध कर सकें।

उचित सम्मान मिलना जरूरी

ऐसे चिट्ठी में उन्होंने यह भी लिखा था कि डॉ सीवी रमन को उनके काम के अनुपात में उचित सम्मान अवश्य मिलना चाहिए। दो साल के लिए यह पद सृजित किया गया था। ढाई हजार रुपये तक हर महीने मिलते थे। इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस के साथ इसे जोड़ दिया गया था।

एक विशेष परंपरा की शुरुआत

देश के महान वैज्ञानिकों के लिए पद का सृजन तो करना ही था। नेहरू ने इसके लिए एक विशेष परंपरा शुरू की। ऐसी नियुक्तियों में तकनीकी परेशानियां थीं। स्थाई तौर पर इनकी नियुक्ति नहीं हो सकती थी। ऐसे में समय तय कर दिया गया था। हालांकि, यह कोई खास महत्व नहीं रखता है। बेहतर यही होता कि कोई समय सीमा इसके लिए निर्धारित नहीं होती। इसकी जगह 6 महीने का नोटिस देकर काम से अलग होने के बारे में कहा जा सकता था।

सीवी रमन को बताने को कहा

नेहरू ने वित्त मंत्रालय के जरिये इसे करना उचित नहीं समझा। उनके मुताबिक इसमें बड़ी दिक्कतें थीं। सीवी रमन को इसके बारे में उन्होंने बताने के लिए कहा। उनकी सेवाएं देश अनंत समय तक चाहता था। उन्होंने कहा था कि निजी तौर पर भी उनकी नियुक्ति करना संभव है। जरूरी नहीं कि इंडियन अकैडमी आफ साइंसेज से उन्हें अटैच कर दिया जाए।

सालाना ग्रांट की मांग

नेहरू ने अपनी इसी चिट्ठी में एक मांग भी रखी थी। उन्होंने एक लाख रुपये का सालाना ग्रांट मांगा था। प्रोफेसर रमन के द्वारा रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए ये ग्रांट चाहते थे। उन्होंने कहा था कि वित्त मंत्रालय के पास इसे नहीं भेज सकते। इस तरह के ग्रांट को मंत्रालय पहले ही रोक चुका है। कई ग्रांट कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं के बारे में भी थे। देश के वित्तीय हालात ठीक नहीं थे। ऐसे में ग्रांट को अस्वीकार करने के लिए मंत्रालय को मजबूर होना पड़ा।

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना

फिर भी नेहरू ने एक और बात कही थी। उन्होंने कहा था कि रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट का महत्व इससे बिल्कुल भी कम होने वाला। डिपार्टमेंट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए पूरी तरीके से प्रतिबद्ध है। जितना भी संभव हो सकता है, इसके लिए वह फंड अवश्य देगा। वर्ष 1948 में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई थी। बंगलुरु में सीवी रमन ने इसकी स्थापना की थी।

नेहरू और सीवी रमन के बीच अच्छी पटती थी। विज्ञान को लेकर दोनों बड़ी चर्चा करते थे। यह 1938 का समय था। जर्मनी में हिटलर बहुत अत्याचार कर रहा था। यहूदी वैज्ञानिक परेशान थे। नेहरू और रमन इन्हें भारत लाना चाहते थे। अल्बर्ट आइंस्टीन भी यहूदी वैज्ञानिकों में से एक ही थे। सुभाष चंद्र बोस तब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे इस योजना के पक्ष में नहीं थे। इस वजह से यह संभव नहीं हो पाया था।

Anupam Kumari

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