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बेटी के राजनीति करने से नाराज पिता ने मायावती से तोड़ लिया था रिश्ता

सबसे बड़ा झटका तो उन्हें अपने घर से ही लगा, जब उनके पिता ने उनके राजनीति में जाने के निर्णय को लेकर उनसे अपना नाता हमेशा के लिए तोड़ दिया।
Information Anupam Kumari 3 March 2020
बेटी के राजनीति करने से नाराज पिता ने मायावती से तोड़ लिया था रिश्ता

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती का क्या स्थान है, यह हर कोई जानता है। सबसे ज्यादा चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं मायावती। सबसे बड़ी दलित नेता के रूप में मायावती की पहचान है। राजनीति में अपने तल्ख अंदाज के लिए मायावती जानी जाती हैं। आयरन लेडी के नाम से वे राजनीति में मशहूर हैं। राजनीतिक आलोचक भले ही मायावती को उनके सख्त अंदाज की वजह से कई बार तानाशाह भी कह कर पुकारते हैं, लेकिन मायावती ने जो राजनीति में अपने लिए मुकाम हासिल किया है, वह आज तक किसी भी महिला दलित नेता के बस की बात नहीं रही है।

कठिन थी डगर

राजनीति में मायावती का सफर आसान नहीं रहा है। बड़े ही संघर्षों के बाद वे आज उस मुकाम तक पहुंच सकी हैं, जहां वे हैं। भारत में आजादी के बाद बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के बाद यदि सबसे बड़ा कोई दलित नेता कोई हुआ तो वे थे मान्यवर कांशीराम। कांशीराम ने ही मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इसके बाद से ही मायावती ने राजनीति में कदम रख दिया। उसके बाद से कभी भी मायावती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बनना था IAS

दिल्ली में प्रभु दयाल और रामरती के घर में 15 जनवरी, 1956 को मायावती ने जन्म लिया था। मायावती के जन्म लेने के करीब 11 महीने के बाद बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। परिवार में पैसों की तंगी थी। आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। फिर भी मां-बाप ने अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। कालिंदी कॉलेज से मायावती ने एलएलबी की डिग्री हासिल कर ली। इसके बाद उन्होंने बीएड भी किया। आईएस बनना चाह रही थीं मायावती। इसलिए वे जोर-जोर से पढ़ाई में लगी हुई थीं।

पिता से दूर होने का गम

काशीराम जिन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी, वर्ष 2001 में उन्होंने यह घोषणा की थी कि मायावती उनकी उत्तराधिकारी होंगी। पहली बार वर्ष 2003 में वह मौका आया जब मायावती बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं। राजनीति में तो मायावती ने कदम रख दिया, लेकिन शुरूआत उनके लिए काफी संघर्षमय रही। सबसे बड़ा झटका तो उन्हें अपने घर से ही लगा, जब उनके पिता ने उनके राजनीति में जाने के निर्णय को लेकर उनसे अपना नाता हमेशा के लिए तोड़ दिया। इस तरह से मायावती के राजनीति में कदम रखने के बाद अपने पिता से उनका नाता टूट गया था।

नरसिम्हा राव का कटाक्ष

मायावती को पहली बार 1995 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला था। कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने मायावती पर कटाक्ष किया था। मायावती के मुख्यमंत्री बनने को उन्होंने लोकतंत्र का चमत्कार बता दिया था। यही नहीं उन्होंने मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर यह सवाल भी उठाए थे कि आखिर समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग की महिला किस तरह से इतने बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गई है?

चार प्रतिमाओं का अनावरण

हालांकि, जिस तरीके से मायावती की व्यक्तिगत संपत्ति में इजाफा होता गया, उसे लेकर मायावती पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे। पहली बार वर्ष 2004 में मायावती के खिलाफ अनुपातहीन संपत्ति यानी कि डीए का मामला दर्ज किया गया था, जो कि ताज कोरिडोर से जुड़ा हुआ था। मायावती पर जब दबाव बढ़ने लगा था तो उन्होंने अपनी संपत्ति के बारे में बताया था कि उन्हें उपहार स्वरूप अपने प्रशंसकों से इतना धन प्राप्त हुआ है। वर्ष 2008 में मायावती फिर चर्चा में आ गईं जब उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चार प्रतिमाएं बनवाईं। इनमें से पहली प्रतिमा बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की थी। दूसरी प्रतिमा थी उनकी पत्नी रमाबाई की। तीसरी प्रतिमा उन्होंने काशीराम की बनवाई थी और चौथी प्रतिमा उनकी खुद की थी।

एकला चलो की राह पर

जब वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथों मायावती को हार का सामना करना पड़ा तो उसके बाद उन्होंने पार्टी के प्रमुख के तौर से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राज्यसभा के लिए वे चुन ली गई थीं। हालांकि, वर्ष 2018 में मायावती ने राज्यसभा की अपनी सदस्यता से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि दलितों के लिए उन्हें सदन में बोलने से रोका जा रहा है। मायावती ने बीता लोकसभा चुनाव अपने कट्टर दुश्मन समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन इसके बाद फिर से वे एकला चलो की राह पर चल पड़ी हैं।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान