
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी भले ही सत्ता से दूर हैं, लेकिन प्रदेश में इन दोनों पार्टियों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए साथ में आ गई थीं। दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। हालांकि इसके बाद एक बार फिर से दोनों के रास्ते अलग हो गए। दोनों के साथ आने की पहले से कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी, क्योंकि इन दोनों के बीच 1995 में एक ऐसी दुश्मनी पैदा हो गई थी, जिसके बाद से दोनों का साथ आना लगभग नामुमकिन था। फिर भी जब दोनों पार्टियां लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए साथ आई थीं तो हर कोई हैरान रह गया था। यहां हम आपको बता रहे हैं कि आखिर उन्हें 1995 में ऐसी कौन सी घटना घटी थी, जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी एक-दूसरे की जानी दुश्मन बन गई थीं। इस घटना को लखनऊ गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है।
यह दिन था 1 जून, 1995 का। इस वक्त प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। मुलायम को यह पता चला कि बहुजन समाजवादी पार्टी उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने जा रही है। मुलायम हैरान रह गए कि कांशीराम ने तो ऐसी किसी भी योजना से उन्हें अवगत नहीं कराया है। भले ही बीते कुछ समय से खींचतान चल रही थी, लेकिन ऐसा कोई इरादा उन्होंने तब तक नहीं दिखाया था। करीब डेढ़ साल से बसपा के समर्थन से उनकी सरकार चल रही थी। सपा के कई नेता यह मान रहे थे कि सरकार को बचाने के लिए बसपा को तोड़ने की कोशिश एक बार की जानी चाहिए।
कांशीराम और मायावती अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बसपा के महासचिव के साथ एक बैठक स्टेट गेस्ट हाउस में कर रहे थे। लखनऊ में स्थित इस स्टेट गेस्ट हाउस के बाहर समाजवादी पार्टी के कई विधायक और जिला स्तर के कई नेता भी कार्यकर्ताओं के साथ पहुंच गए थे। यहां इन सभी ने मिलकर गेस्ट हाउस को घेर लिया था। इसे ही कुख्यात गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि मायावती ने इस दौरान खुद को बचाने के लिए एक कमरे में भी बंद कर लिया था।
बताया जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी उस वक्त वहां उपस्थित थे। उन्हें इस बात का अंदाजा था कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता यहां मायावती को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे उन पर शारीरिक हमला भी कर सकते हैं। ऐसे में उन्होंने मायावती को बचाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए थे। यूपी कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव पर दबाव बनाया। इसके बाद केंद्र की कांग्रेस सरकार ने राज्यपाल मोतीलाल वोरा की सिफारिशों पर कार्रवाई करते हुए राज्य की मुलायम सिंह यादव की सरकार को बर्खास्त कर दिया, जिसकी वजह से सदन में उन्हें बहुमत साबित करने का अवसर नहीं मिल पाया। इसी शाम भाजपा के साथ जनता दल के बाहर से समर्थन के आधार पर मायावती ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली थी।
यूपी में यह एक गजब की घटना घटी थी। इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी दोनों एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए थे। यही नहीं, यूपी की राजनीति ने तब एक बड़ा ही रोचक मोड़ ले लिया था। बहुजन समाजवादी पार्टी को भाजपा से मदद लेने में जरा भी हिचक महसूस नहीं हुई थी, जबकि बहुजन समाजवादी पार्टी के विचार पूरी तरह से भाजपा से एकदम अलग थे। इन दोनों का कोई मेल नहीं था। इसके बावजूद केवल सरकार बनाने के लिए बहुजन समाजवादी पार्टी ने भाजपा का समर्थन ले लिया।
विशेषकर मुलायम सिंह यादव के लिए यह बहुत बड़ा झटका रहा था। वह इसलिए, क्योंकि सपा और बसपा के साथ आने की पहल मुलायम सिंह यादव की ओर से ही की गई थी। दिसंबर, 1992 में जब बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया था तो इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। ऐसे में 1993 में विधानसभा चुनाव होने से पहले मुलायम सिंह यादव काशीराम के पास पहुंच गए थे और उनकी ओर से सपा और बसपा के गठबंधन की पहल की गई थी। जब 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो सपा और बसपा गठबंधन को 176, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 177 सीटें मिली थीं। हालांकि, भाजपा को अतिरिक्त समर्थन नहीं मिल पाया और ऐसे में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार यहां बन गई थी। इस तरह से मुलायम सिंह यादव इस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बन गए थे।