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एक और बैंक बंद, क्या सब चंगा है मोदी जी!

पीएमसी बैंक के डूबने से उसके हजारों ग्राहकों को हुई भारी तकलीफ और 10 से ज्यादा की मौत की खबर अभी ज्यादा पुरानी भी नहीं हुई कि एक और सहकारी बैंक पर संकट के बादल छा गए हैं।
Information Logic Taranjeet 18 January 2020

पीएमसी बैंक के डूबने से उसके हजारों ग्राहकों को हुई भारी तकलीफ और 10 से ज्यादा की मौत की खबर अभी ज्यादा पुरानी भी नहीं हुई कि एक और सहकारी बैंक पर संकट के बादल छा गए हैं। रिजर्व बैंक ने 10 जनवरी को बंगलौर के श्री गुरु राघवेंद्र सहकारी बैंक के सामान्य कामकाज पर रोक लगाते हुए कहा कि उसमें पैसा जमा करने वाला कोई ग्राहक अगले आदेश तक अपने खाते से 35 हजार रुपए से अधिक नहीं निकाल पाएगा, चाहे खाते में कितनी भी रकम क्यों न जमा हो। रिजर्व बैंक ने इस बैंक को कोई नया कर्ज देने से भी रोक दिया है। वहीं येस बैंक के बारे में भी पिछले दिनों कई गड़बड़ी की खबरें आई हैं। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बारे में तो सभी जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में डूबे कर्जों की वजह से हुए घाटे के कारण सरकार को उनके चलते रहने के लिये 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी लगानी पड़ी है।

पूरी तरह से दिवालिया हो गया है बैंक

इस बैंक की बंगलौर में 8 शाखाएं हैं और 31 मार्च 2018 को इसके 8614 सदस्य थे, जिन्होंने बैंक में 52 करोड़ की शेयर पूंजी का निवेश किया हुआ था। बैंक में कुल राशि 1566 करोड़ थी और इसके द्वारा दिए गए कुल कर्ज 1150 करोड़ रुपये थे। लेकिन 9 महीने से अधिक गुजर जाने पर भी बैंक ने साल 2018-19 के ऑडिट किए हुए वित्तीय खाते अभी तक घोषित नहीं किये थे जो इसकी वित्तीय स्थिति पर पहले ही संदेह खड़ा कर रहे थे। दिसंबर में रिजर्व बैंक द्वारा इसका निरीक्षण करने पर पता चला कि बैंक कई साल से कर्जों मेें उलझा हुआ था।

बैंक द्वारा दिए गए कर्ज में से 62 खाते या 372 करोड़ रुपये के कर्ज एनपीए हो गये हैं जो बैंक की कुल शेयर पूंजी 52 करोड़ के 7 गुने से भी अधिक है यानी की बैंक पूरी तरह से दिवालिया हो चुका है। ये राशि बैंक में जमा कुल रकम की लगभग एक चौथाई है, अगर इतना ही कर्ज डूबा हो तब भी बैंक के लिए जमाकर्ताओं की रकम लौटाने में काफी दिक्कत आने वाली है। इसके अतिरिक्त अगर और भी कर्ज एनपीए हुए तो जमाराशि को लौटाने की दिक्कत और भी बढ़ने वाली है।

बैंकिंग व्यवस्था में ऐसी ही घटनाओं के अनुभव से यहां कुछ निष्कर्ष और भी निकाले जा सकते हैं। पहला की डूबे हुए कर्जों की तादाद 372 करोड़ रुपये से अभी और भी बढ़ने वाली है। दूसरा अभी 62 एनपीए खातों का जिक्र किया जा रहा है पर कुल डूबने वाली रकम का बड़ा हिस्सा दो-चार बड़े कर्ज खातों में ही फंसा होता है। हालांकि ये एक छोटा बैंक है मगर इसके जरिये हम अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सिस्टम की वर्तमान स्थिति पर कुछ विश्लेषण कर सकते हैं।

पूंजीपति कर रहे हैं परेशानी?

आज एक ओर उत्पादन के क्षेत्र में पहले ही पूंजी की कमी होने से बाजार के विस्तार की संभावनाएं बहुत सीमित हैं, दूसरी ओर हर उद्योग में कुछ पूंजीपतियों का एकाधिकार कायम हो चुका है। इसलिए दूसरे को पछाड़कर आगे बढ़ने की ये होड़ है। इसलिए सभी पूंजीपतियों के लिए वित्तीय पूंजीपतियों से अधिक पूंजी प्राप्त कर अपने कारोबार को निरंतर विस्तारित करने का दबाव हमेशा बना रहता है। फिर बैंक, बीमा, आदि वित्तीय पूंजीपतियों में भी एकाधिकार की होड़ है और उन्हें भी आवश्यकता रहती है कि वो अपना बाजार हिस्सा बढ़ाने हेतु ज्यादा से ज्यादा कारोबारियों का वित्तीय पोषण कर उनके द्वारा कमाए लाभ में से अपनी हिस्सेदारी और मुनाफा सुनिश्चित करें। दोनों का ये परस्पर हित सुनिश्चित करता है कि बैंक उद्योग-व्यापार की अधिक से अधिक कंपनियों को लगातार एक के बाद एक पहले से बड़े कर्ज देते रहें।

वास्तविकता ये है कि ये बड़े पूंजीपति कभी कोई कर्ज वापस नहीं करते। बल्कि वो हर बार पहले से बड़ा कर्ज लेते हैं, जिससे पिछले कर्ज को जमा दिखाया जाता है। इसके बल पर ही वो बड़े पूंजीपति बनते हैं। इस पूंजी से ही उनका मुनाफा आता है और बैंकों को कर्ज पर ब्याज और कमीशन मिलता है। ये चक्र जब तक चलता है तब तक सब सामान्य रहता है, मगर जब ये टूटता है तो इसे फ्रॉड का नाम दे दिया जाता है।

लगातार अर्थव्यवस्था में गिरावट हैं बैंकों के बंद होने का कारण

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था में भी यही स्थिति है। पूंजीपतियों ने भारी मात्रा में बैंक कर्ज लेकर उत्पादन क्षमता में जो निवेश किया है वो बाजार में मौजूद मांग से अधिक है और उद्योगों को लगाई गई क्षमता पर नहीं चलाया जा पा रहा है। रिजर्व बैंक पिछले कई सालों से बता रहा है कि उद्योगों की जितनी उत्पादन क्षमता है वे उसके 65-75% के बीच ही उत्पादन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर बिक्री न होने की वजह से पिछले वर्ष अधिकांश कार/दुपहिया वाहन बनाने वाले कारखाने हर महीने दसियों दिन तक उत्पादन बंद रखने के लिए विवश थे। हालत यहां तक पहुंच गई है कि उद्योगों के बंद होने से बिजली की माँग कम हो गई है और पिछले 5 महीने से बिजली का उत्पादन कम करना पड़ रहा है।

मगर वास्तविकता यही है कि इतने सारे कर्जों के चुकाये जाने में दिक्कत का मूल कारण अर्थव्यवस्था में गहराता जा रहा संकट है और इसी संकट का नतीजा एक के बाद एक बैंकों के धराशायी होने में नजर आ रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई बड़े बैंक भी इस दिवालिया होने के नतीजे से सिर्फ इसलिए बच पाए हैं क्योंकि सरकार ने उन्हें जिंदा रखने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी झोंकी है जो आम मेहनतकश जनता पर लगाये गए भारी टैक्स और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी सेवाओं पर खर्च में कटौती से जुटाई गई है।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.