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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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हैरान कर देगा भगत सिंह के खुद को नास्तिक कहने के पीछे का ये सच

देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में जिन क्रांतिकारियों की अहम भूमिका रही, उनमें से भगत सिंह भी एक थे, जो बचपन में ही क्रांतिकारी बन गये थे।
Information Anupam Kumari 15 November 2019

देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में जिन क्रांतिकारियों की अहम भूमिका रही, उनमें से भगत सिंह भी एक थे, जो बचपन में ही क्रांतिकारी बन गये थे। विशेषकर जालियांवाला बाग हत्याकांड से वे इतने आक्रोशित थे कि उन्होंने आगे चलकर काॅलेज की अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी और नौजवान भारत सभा की स्थापना कर दी। अंग्रेज अधिकारी सैंडर्स की हत्या के आरोप में दोषी ठहराये जाने के बाद फांसी की सजा के लिए जब 23 वर्ष वे जेल में बंद थे तो उन्होंने एक लेख लिखा था। इस लेख के जरिये वे एक धार्मिक व्यक्ति को जवाब देना चाहते थे, जिसने भगत सिंह पर नास्तिक होने का आरोप मढ़ा था।

इस लेख में भगत सिंह ने लिखा था कि मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा को नहीं मानता हूं। उन्होंने यह भी लिखा था कि मैं इसलिए नास्तिक नहीं बना हूं कि मुझे किसी तरह का अभिमान है या मेरे अंदर कोई पाखंड है या फिर मैं निरर्थक हूं। ना तो मैं किसी का अवतार बना हूं और ना ही मुझे किसी ईश्वर ने दूत की तरह भेजा है। मैं खुद को परमात्मा भी नहीं मानता। मेरी जिंदगी एक मकसद के लिए न्योछावर होने जा रही है। मुझे लगता है कि इससे बड़ा आश्वासन और कुछ नहीं हो सकता है।

बिना किसी आशा के

भगत सिंह ने इस लेख में यह भी लिखा था कि एक हिंदू यह उम्मीद रख सकता है कि अगले जन्म में वह राजा बने। एक मुस्लिम और ईसाई की भी इच्छा हो सकती है कि वह स्वर्ग में जाकर सुख भोगे। मुझे किसी तरह की कोई आशा नहीं है। जैसे ही फांसी का फंदा मेरी गले में लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख्त हटेगा, वह अंतिम समय होगा। बिना किसी स्वार्थ भावना के मैं अपनी जान न्योछावर करने जा रहा हूं। किसी पुरस्कार की इच्छा मुझे नहीं है। जिंदगी मेरी आजादी के नाम ही हो गई है।

नास्तिक बनने की वजह

अपने नास्तिक होने को लेकर भगत सिंह ने लिखा था कि किसी घमंड की वजह से मैं नास्तिक नहीं बना हूं। ईश्वर पर जो मेरा अविश्वास है, उसकी वजह से आज सभी परिस्थितियां मेरी प्रतिकूल बन गई हैं। संभव है कि यह और ज्यादा बिगड़ सकती है। हो सकता है कि थोड़ा सा अध्यात्म इस स्थिति को एक अलग दिशा दे। फिर भी अपने अंत से जो मैं मिलने जा रहा हूं, उसके बारे में कोई तर्क देना मैं उचित नहीं समझता।

करते थे पूजा-अर्चना

अपने इस लेख में उन्होंने लिखा था कि भगवान पर बचपन में मेरा भरोसा रहा था। मैं तो पूजा-अर्चना भी करता था। मेरे पिता जिन्होंने मुझे पाला वे आर्य समाजी थे। उन्हीं की वजह से मैंने खुद को देश के लिए समर्पित करने का सोचा। कॉलेज के समय से ही मैं रिवॉल्यूशनरी पार्टी में शामिल हो गया। यहां सचिंद्र नाथ सान्याल के बारे में मुझे जानकारी हुई, जिनको काकोरी षड्यंत्र में जेल की सजा हुई थी। यहीं से मेरी जिंदगी को एक नया मोड़ मिला। भगत सिंह ने लिखा कि मुझे तब यह समझ में आ गया कि मानव की कमजोरी का परिणाम ही धर्म है। यही मानव के ज्ञान की सीमा है।

स्वार्थी न हो प्रार्थना

भगत सिंह ने अपने इस लेख में एक बड़ी ही महत्वपूर्ण बात लिखी थी कि तर्क के प्रहार को यदि आस्था सहन नहीं कर पाती है तो वह बिखर जाती है। अंग्रेजी शासन को लेकर उन्होंने लिखा था कि ईश्वर की कृपा से नहीं, बल्कि अंग्रेजों ने हमें बंदूकों गोलियों और अपनी सेना के बल पर काबू में रखा है। साथ ही भगतसिंह का मानना था कि स्वार्थी होकर कभी भी परमात्मा से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। वे चाहते थे कि इस देश के वासी इतने मजबूत बन जाएं कि वे अंग्रेजों का सामना कर सकें।

खूब हुआ था लोकप्रिय

शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने जिस वक्त यह लेख लिखा था, उस वक्त उनकी उम्र 23 साल की थी। वर्ष 1934 में जब यह लेख प्रकाशित हुआ था तो इससे युवाओं को बड़ी प्रेरणा मिली थी। उनका यह लेख बेहद लोकप्रिय हो गया था। इस किताब की प्रतियां खूब बिकने लगी थीं। आज भी भगत सिंह के इस लेख को पढ़कर युवाओं के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भगत सिंह के इस लेख से पता चलता है कि उनकी नास्तिकता का अर्थ ईश्वर से खिलाफत नहीं था, बल्कि इस मतलब था खुद में यकीन करना और अपने कर्मों से आजादी का मार्ग प्रशस्त करना।

आपको भी यदि भगत सिंह के बारे में यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसके दूसरों तक जरूर पहुंचाएं। याद रखें कि प्रेरणा पाने और शेयर करने से ही देश बनता है।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान