
बिता कल हमारे देश का बहुत ही दुखदायी,असहनीय दर्द भरा था। कई ऐसी घटनायें घटी थी, जिसने न केवल तब दर्द दिया, जब ये घटी थीं, बल्कि आज भी इनकी यादें दर्द ही देती हैं। इन घटनाओं में छिपा दर्द आज भी इनकी यादों से टपकता है। इन्हीं घटनाओं से जुड़े भारतीय इतिहास के 10 काले दिनों के बारे में यहां हम आपको बता रहे हैं।
भारत के लिए यह सबसे बड़ा काला दिन था, जब भारत का बंटवारा करके पाकिस्तान नाम का पृथक राष्ट्र बना। इसकी वजह से हुए दंगों में जिस कदर खून बहा, जितने बड़े पैमाने पर बलात्कार हुए और जिस तरह से लोग अपनों से बिछुड़े, इतना दर्द तो कभी किसी घटना ने लोगों को नहीं दिया। करोड़ों की जिंदगी इससे प्रभावित हुई।
जालियांवाला बाग में इकट्ठा हुए निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों, जिनमें बुजुर्गों से लेकर महिलाएं और बच्चे तक शामिल थे, उन पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी थीं, जिनकी वजह से बड़ी संख्या में लोग मारे गये थे। गोलियों के निशान आज भी यहां की दीवारों पर देखने को मिल जाते हैं।
गुजरात का भुज भारत के 52वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भयानक भूकंप से तबाह हो गया था। इस भूकंप में करीब 12 हजार 300 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। शहर में हर ओर इमारतों और मकानों के मलबे पसरे थे। मातम के आगोश में जैसे पूरा शहर समा गया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जो आपातकाल लगाया और जो 1977 तक 21 माह की अवधि तक लागू रहा, इस दौरान लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया। यहां तक मानवाधिकरों के उल्लंघन के मामले भी प्रकाश में आये। चुनाव के निलंबन से लेकर नागरिकों की स्वतंत्रता तक छीनने जैसे कदम सरकार द्वारा उठाये गये थे। इसी वजह से इसे भी भारतीय इतिहास का काला दिन कहा जाता है।
बिहार के भागलपुर में वर्ष 1979 के दौरान पुलिस ने बेहद क्रूरता से 31 अपराधियों की आंखों में तेजाब डालकर उन्हें अंधा बना दिया था। पुलिस के इस भयानक कृत्य को याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी मूल मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला इसे पहली बार मानते हुए मुआवजे तक का आदेश दिया था।
भारतीय इतिहास में 26 नवंबर, 2008 भी काले दिन के रूप में ही याद किया जायेगा, क्योंकि इस दिन आतंकियों के मुंबई में कई जगहों पर एक साथ हमला करने से 164 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी और 308 लोग इसमें घायल हो गये थे। इसके जख्म लोगों के दिलों में आज भी हरे हैं।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों लोगों की जान चली गई थी। इन दंगों की भयावहता ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। भारतीय लोकतंत्र पर ये दंगे काले धब्बे से कम नहीं थे। इनकी भयावह यादें आज भी पीड़ितों के जेहन से निकल नहीं सकी हैं।
गुजरात में जो वर्ष 2002 में दंगे हुए, उसकी आग में न जाने कितने झुलस गये। इसकी आंच से केवल गुजरात ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्से भी प्रभावित हुए। गुजरात दंगों ने भारतीय इतिहास में काला अध्याय लिख दिया, जिसे याद करके भारतीय लोकतंत्र हमेशा ही शर्मसार होता रहेगा।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 3 दिसंबर, 1984 को यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक हानिकारक गैस के रिसाव की वजह से बड़ी तादाद में लोग मौत के आगोश में समा गये। इस घटना के बाद शहर में जैसे मातम सा पसर गया। यह दिन भी भारतीय इतिहास में काले दिन से कम नहीं रहा।
हिंद महासागर में आई इस सुनामी ने न केवल भारत, बल्कि कई पड़ोसी देशों को भी झकझोर कर रख दिया। बताया जाता है कि इसमें दो लाख से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। जिस भूकंप की वजह से सुनामी आई, उस भूकंप को हिरोशिमा पर गिराये गये परमाणु बमों से भी अधिक शक्तिशाली माना गया था। मौत का जो खौफनाक मंजर इसके बाद फैला था, उसकी यादें आज भी विचलित कर देती हैं।
इन सबके अलावा वर्ष 2013 में उत्तराखंड की त्रासदी, वर्ष 1876 का अकाल, वर्ष 2012 का निर्भया कांड, विवादित बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराये जाने के बाद भड़के दंगे, उरी और पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर आतंकी हमले आदि भी भारतीय इतिहास में काले दिनों के रूप में ही याद किये जाएंगे। फिर भी भारत की यह मजबूत इच्छाशक्ति ही है कि इतने जख्म झेलने के बाद भी आज भी यह तटस्थ है और हर दिन कामयाबी की नयी इबारतें लिख रहा है।