
भारत जितना बहादुर है, उतनी ही उसे बहादुरी की कद्र भी है। युद्ध के मैदान में भारतीय सेना अद्भुत पराक्रम दिखाती है। फिर भी मानवतावादी दृष्टिकोण वह कभी नहीं छोड़ती। इसका उदाहरण कारगिल के युद्ध में भी देखने को मिला था।पाकिस्तानी सेना के एक सैनिक कर्नल शेर खां की बहादुरी से भारतीय सेना प्रभावित हुई थी। उस सैनिक के लिए भारत ने लिख कर दिया था कि इसकी वीरता का सम्मान होना चाहिए।जिससे उस सैनिक को पाकिस्तानियो की तरफ से मिला निशान-ऐ -हैदर।
कारगिल का युद्ध 1999 में चल रहा था। टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना के कैप्टन कर्नल शेर खां ने मोर्चा संभाला हुआ था। बहुत बहादुरी से वे लड़ रहे थे। यहां तक कि भारतीय सेना भी उनका लोहा मान रही थी।
भारत की ओर से ब्रिगेडियर MPS बाजवा लड़ाई को कमांड कर रहे थे। उन्होंने भी इसके बारे में एक बार बीबीसी से बातचीत की थी। इसमें बाजवा ने बताया था कि लड़ाई खत्म होने के बाद वे इस पाकिस्तानी ऑफिसर के मुरीद हो गए थे।
बाजवा ने बताया था कि उन्होंने 1971 की लड़ाई भी लड़ी थी। कभी भी एक पाकिस्तानी अधिकारी को लीड करते हुए उन्होंने नहीं देखा था। बाजवा के मुताबिक कुर्ते-पजामे में सभी पाकिस्तानी लड़ रहे थे। केवल शेर खां ने ट्रैक सूट पहना हुआ था।
‘कारगिल अंटोल्ड स्टोरीज फ्रॉम द वॉर’ नाम की एक किताब है। रचना बिष्ट रावत ने ऐसे लिखा है। इसमें उन्होंने कैप्टन कर्नल शेर खां को नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री का बताया है। उनके मुताबिक 5 जगहों पर टाइगर हिल में उनकी चौकियां बनी हुई थीं। इन चौकियों पर नियंत्रण करने की जिम्मेवारी पहले 8 SIKH को मिली थी।
वह इस पर कब्जा करने में नाकाम रही थी। फिर 18 ग्रेनेडियर को उनके साथ लगा दिया गया था। एक चौकी किसी तरह से उनके नियंत्रण में आ गई। हालांकि कैप्टन शेर खां की ओर से जवाबी कार्रवाई कर दी गई। पहली बार शेर खां नाकाम हो गए थे।
पहली नाकामी झेलने के बाद भी शेर खां ने अपने सैनिकों को दोबारा संगठित किया। एक बार फिर से उन्होंने हमला बोल दिया। इस लड़ाई को देखने वाले हैरान थे। उनका कहना था कि यह पूरी तरीके से आत्मघाती कदम था। उन्हें मालूम था कि यह मिशन सफल नहीं होगा। इसलिए कि संख्या बल में भारतीय सैनिक उनसे कहीं अधिक थे।
फिर भी कैप्टन शेर खां ने बड़ी बहादुरी से इस लड़ाई को लड़ा। वे एक लंबे-चौड़े व्यक्ति थे। उन्हें लड़ाई का अनुभव भी था। लड़ाई पूरी बहादुरी से वे लड़ रहे थे। कृपाल सिंह नामक एक भारतीय जवान जख्मी होकर वहां पड़े हुए थे। अचानक से हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने शेर खां को 10 गज की दूरी से एक बर्स्ट मार दिया। शेर खां इसके बाद वहीं गिर पड़े।
शेर खां के मरने के बाद पाकिस्तानी आक्रमण कमजोर पड़ गया। भारतीय जवानों ने 30 पाकिस्तानियों के शव वहां दफना दिए। हालांकि, कैप्टन कर्नल शेर खां की लाश को नीचे मंगवाया गया। पहले तो उसे श्रीनगर के ब्रिगेड हेडक्वार्टर में रखा गया। इसके बाद उसे दिल्ली ले जाया गया।
पाकिस्तान को जब शेर खान की बॉडी लौटाई गई तो उनकी जेब में एक चिट ब्रिगेडियर बाजवा ने रख दिया था। इसमें अंग्रेजी में उन्होंने एक संदेश लिखा था। वह था- Caption Colonel Sher Khan of 12 NLI has fought very bravely and he should be given his due.
इसका मतलब यह था कि बहुत ही बहादुरी से कैप्टन शेर खां लड़े थे। इसलिए इसका श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए। कहने का मतलब था कि उन्हें उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने जंग में बड़ी ही वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में उन्होंने अपनी जान अपने देश के लिए कुर्बान कर दी थी।
अशफाक हुसैन ने ‘विटनेस टू ब्लन्डर नामक एक किताब लिखी है। इसमें उन्होंने बताया है कि ‘कर्नल’ शेर खां के नाम में ही शामिल था। वे लेफ्टिनेंट थे। कई बार फोन पर लेफ्टिनेंट कर्नल शेर खां स्पीकिंग कहने से फोन वाला उन्हें कमांडिंग ऑफिसर समझ लेता था।
ब्रिगेडियर बाजवा ने यदि शेर खां की बॉडी नहीं मंगवाई होती तो उनका नाम कहीं नहीं होता। जोर देकर ब्रिगेडियर बाजवा ने उनकी बॉडी पाकिस्तान भिजवाई। पाकिस्तान में लेफ्टिनेंट कर्नल शेर खां को मरणोपरांत निशान-ए-हैदर प्रदान किया गया। जैसे हमारे यहां परमवीर चक्र है, वैसे पाकिस्तान में निशान-ए-हैदर है। यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार है।
शेरखान के बड़े भाई अजमल शेर ने एक बयान में कहा था कि भारत बुजदिल नहीं है। उन्होंने कहा था कि भारत ने ऐलान करके कहा कि कर्नल शेर खां हीरो है।