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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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क्या सच में भारत का तिरंगा 6 ट्रायल के बाद मुस्लिम महिला सुरैया तैयबजी से मिला है?

Information Komal Yadav 20 February 2021
क्या सचमे भारत का तिरंगा 6 ट्रायल के बाद मुस्लिम महिला सुरैया तैयबजी से मिला है_

हम जब भी अपने देश के तिरंगे को देखते हैं तो हमारा सीना गर्व से फूल जाता है। तिरंगा हमारे देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है। यह भारत की पहचान का प्रतीक है। हमारे देश के ज़्यादातर लोग यही जानते हैं, कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) ‘पिंगली वेंकैया’ ने बनाया था। हाँ लेकिन बहुत कम ये जानते है कि अभी जो डिजाईन भारत के तिरंगे में है, वो एक मुस्लिम महिला सुरैया तैयबजी (Suraiya Tyabji) ने बनया था।

साल 1919 में सुरैया का जन्म हुआ था। सुरैया एक कलाकार थीं, उन्हें समाज के लिए अपने विचारों के लिए पहचाना जाता है। सुरैया की शादी बदरुद्दीन तैयबजी से हुई, जो भारतीय सिविल के अधिकारी थे जो और बाद में वो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति  थे। अंग्रेजी इतिहासकार ट्रेवर रोयेल ने अपनी एक किताब ‘द लास्ट डेज़ ऑफ़ राज’ में ये लिखा है कि भारत के वर्तमान तिरंगे की डिजाइन सुरैया तैयबजी ने बनाई थी।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज में कई बार बदलाव हो चुके हैं। इस तिरंगे को हमारे स्‍वतंत्रता संग्राम के समय पर बनाया गया था। भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज को इस रूप में लाने के लिए अनेक ट्रायल्स से गुजरा गया है।

आइये जानते है वर्तमान में दिखने वाला भारत का तिरंगा झंडा आखिर कितने रूप में बदल चूका है

1906 में भारत का प्रथम  तिरंगा

भारत का पहला तिरंगा 7 अगस्‍त 1906 को एक पारसी बागान चौक कलकत्ता में फहराया गया था। इस तिरंगे को लाल, पीले और हरे रंग की पट्टियों से बनाया गया था। जिसमे ऊपर हरा, बीच में पीला और एकदम नीचे लाल रंग दिया गया था। उसके अलावा इसमें कमल के फूल और चांद-सूरज भी बना हुआ था।

1907 में बर्लिन में फहराया गया तिरंगा

भारत का दूसरा तिरंगा पेरिस में मैडम भीखाजी कामा और उनके साथ रहने वाले कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। वैसे तो ये 1907 में हुआ था लेकिन कई लोगों का यह कहना है कि ये घटना 1905 में हुई थी। इसको भी पहले ध्‍वज के जैसा ही बनाया गया था। इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल और सात तारे थे जो सप्‍तऋषि को दर्शाते है। यह झंडा बर्लिन के समाजवादी सम्‍मेलन में भी लहराया गया था।

1917 में  घरेलू शासन के आंदोलन के पर फहराया गया था तिरंगा

तीसरा राष्ट्र ध्वज 1917 में डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन के आंदोलन के समय फहराया था। इस झंडे में 5 लाल पट्टियाँ और 4 हरी आडी पट्टियां एक के बाद एक लगायी गयी थी। और उसके साथ ही सप्‍तऋषि के प्रतीक में बने सात सितारे भी थे। तिरंगे की बांई और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक भी बांया गया था। और एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।

1921 में इस ध्वज को गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के समय आंध्र प्रदेश के एक वयक्ति ने यह झंडा बनाया और गांधी जी को एक कार्यकर्म में दे दिया । यह कार्यक्रम साल 1921 मे विजयवाड़ में किया गया था। यह झंडा दो रंगों का बना था, लाल और हरा रंग जो हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है। गांधी जी ने बताया कि भारत के बचे समुदाय दर्शाने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और इसको राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए ।

 

यह तिरंगा भारतीय राष्‍ट्रीय सेना का संग्राम चिन्‍ह था

ईस्वी 1931 ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार रहा। इस तिरंगे को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए प्रस्‍ताव पारित किया गया था। यह तिरंगा वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है जोकि केसरी, सफेद और बीच में गांधी जी का चलता हुआ चरखा दर्शाता था। हालाँकि यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया था इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं था और इसकी व्‍याख्‍या इस प्रकार की जानी थी।

1947 में बनाया गया भारत का वर्तमान तिरंगा

इसके बाद  1947 में एक झंडा और पेश हुआ जो 1931 वाले झंडे से थोड़ा बोहोत अलग था। इसमें चरखे की जगह पर अशोक चक्र था।। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा  स्‍वतंत्र भारत का तिरंगा ध्‍वज बना।

Komal Yadav

Komal Yadav

A Writer, Poet and Commerce Student